पहाड़ में ‘सावन’ 17 जुलाई से प्रारंभ, कल है कर्क संक्रान्ति, दक्षिणायन के साथ सूर्य करेंगे कर्क राशि में प्रवेश, जानिए पूजा विधान व तिथि
1 min read16/07/2023 10:07 pm
कालिका काण्डपाल / अगस्त्यमुनि
दस्तक पहाड न्यूज – 17 जुलाई 2023 को हरियाली अमावस्या, श्रावण सोमवार के दिन सूर्य का कर्क राशि में गोचर होगा, जिसे कर्क संक्रांति कहते हैं। इस दिन से सूर्य पूर्णत: दक्षिणायन गमन करने लगता है। उत्तराखंड विशेषकर गढ़वाल क्षेत्र में श्रावण मास की विधिवत शुरूआत श्रावण संक्रान्ति से मानी जाती है।
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सूर्य की इस उत्तरायण और दक्षिणायन गति के कारण उत्तरायण के समय दिन लंबा और रात छोटी होती है, जबकि दक्षिणायन के समय में रातें लंबी हो जाती हैं और दिन छोटे होने लगते हैं। सूर्य जब मकर राशि में प्रवेश करता है तो वह उत्तरगामी होता है। उसी तरह जब वह कर्क में प्रवेश करता है तो दक्षिणगामी होता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार उत्तरायण के समय सूर्य उत्तर की ओर झुकाव के साथ गति करता है जबकि दक्षिणायन होने पर सूर्य दक्षिण की ओर झुकाव के साथ गति करता है। इसीलिए उत्तरायण और दक्षिणायन कहते हैं। दक्षिणायन को नकारात्मकता का और उत्तरायण को सकारात्मकता का प्रतीक माना जाता है। इसीलिए कहते हैं कि उत्तरायण उत्सव, पर्व एवं त्योहार का समय होता है और दक्षिणायन व्रत, साधना, तप एवं ध्यान का समय रहता है। मान्यताओं के अनुसार दक्षिणायन का काल देवताओं की रात्रि मानी गई है। हिन्दू धर्मशास्त्रों के अनुसार मकर संक्रांति से देवताओं का दिन आरंभ होता है, जो आषाढ़ मास तक रहता है। आषाढ़ माह में देव सो जाते है। कर्क संक्रांति से देवताओं की रात प्रारंभ होती है। अर्थात देवताओं के एक दिन और रात को मिलाकर मनुष्य का एक वर्ष होता है। मनुष्यों का एक माह पितरों का एक दिन होता है।
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बेंजी गाँव के आचार्य कैलाश बेंजवाल ने बताया कि इस वर्ष श्रावण सौर मान (संक्रांति) के हिसाब से 17 जुलाई संक्रांति से 16 अगस्त मासन्त तक। तथा चान्द्रमान के हिसाब से 4 जुलाई से 31 अगस्त (रक्षाबंधन) तक। प्रत्येक तीसरे वर्ष सोरवर्ष व चान्द्रवर्ष के मान में समानता लाने के लिए एक चान्द्रमास बढ़ा दिया जाता है इस बार श्रावण की वृद्धि हो रही है श्रावण में इस बार दो बार कृष्ण और शुक्ल पक्ष आयेगें ( 4 जुलाई से 17 जुलाई तक श्रावण कृष्ण (शुद्ध) 18 जुलाई से 1 अगस्त शुक्लपक्ष(मलिन) 2 अगस्त से 16 अगस्त श्रावण कृष्ण पक्ष (मलिन) 17 अगस्त से 31 अगस्त (रक्षाबंधन) तक श्रावण शुक्ल पक्ष (शुद्ध) अर्थात इस बार 18 जुलाई से 16 अगस्त तक अधिकमास या मलमास या पुरुषोत्तम मास है(जिस चान्द्रमास में सूर्य की संक्रांति नहीं पड़ती उसे अधिक मास या मलमास कहते हैं) मलमास में सभी मांगलिक कार्य निषेध होते हैं लेकिन भागवत पुराण, शालिग्राम पूजन, रूद्राभिषेक शिव पूजन अत्यंत फल दायक होता है।
14 बातें याद रखें
1. इस दिन प्रात:काल सूर्योदय से पूर्व शुद्ध होकर स्नान करें। 2. तत्पश्चात उदित होते सूर्य के समक्ष कुश का आसन लगाएं।
3. आसन पर खड़े होकर तांबे के पात्र में पवित्र जल लें।
4. उसी जल में मिश्री भी मिलाएं। मान्यतानुसार सूर्य को मीठा जल चढ़ाने से जन्मकुंडली के दूषित मंगल का उपचार होता है।
5. मंगल शुभ हो तब उसकी शुभता में वृद्धि होती है।
6. जैसे ही पूर्व दिशा में सूर्यागमन से पहले नारंगी किरणें प्रस्फूटित होती दिखाई दें, आप दोनों हाथों से तांबे के पात्र को पकड़ कर इस तरह जल चढ़ाएं कि सूर्य जल चढ़ाती धार से दिखाई दें।
7. सूर्य को जल धीमे-धीमे इस तरह चढ़ाएं कि जलधारा आसन पर आ गिरे ना कि जमीन पर।
8. जमीन पर जलधारा गिरने से जल में समाहित सूर्य-ऊर्जा धरती में चली जाएगी और सूर्य अर्घ्य का संपूर्ण लाभ आप नहीं पा सकेंगे।
9. अर्घ्य देते समय यह मंत्र 11 बार पढ़ें- ‘ॐ ऐहि सूर्य सहस्त्रांशों तेजोराशे जगत्पते। अनुकंपये माम भक्त्या गृहणार्घ्यं दिवाकर:।।’
10. फिर यह मंत्र 3 बार पढ़ें- ‘ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय, सहस्त्रकिरणाय। मनोवांछित फलं देहि देहि स्वाहा:।।’
11. तत्पश्चात सीधे हाथ की अंजूरी में जल लेकर अपने चारों ओर छिड़कें।
12. अपने स्थान पर ही 3 बार घूम कर परिक्रमा करें।
13. आसन उठाकर उस स्थान को नमन करें।
14. इसके अलावा सूर्यदेव को अर्घ्य देते समय तांबे के लोटे में जल लेकर उसमें रोली, चंदन, लाल पुष्प डालना चाहिए तथा चावल अर्पित करके गुड़ चढ़ाना चाहिए। इससे सूर्यदेव की कृपा प्राप्त होती है।
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