हरीश गुसाई  / अगस्त्यमुनि दस्तक पहाड़ न्यूज  - अगस्त्यमुनि के निकटवर्ती गांव फलई की श्रीमती मेघा पंवार ने श्रीनगर बेस चिकित्सालय के प्रबन्धन, चिकित्सकों एवं सपोर्टिंग स्टाफ पर अभद्र व्यवहार करने तथा चिकित्सा के दौरान अनावश्यक रूप से परेशान करने का आरोप लगाया है। बेस चिकित्सालय में कटु अनुभव के कारण उन्होंने गरीब एवं अनपढ़ लोगों खासकर गर्भवती महिलाओं को बेस चिकित्सालय न जाने की अपील की है। दरअसल मेघा पत्नी अतुल पंवार उम्र 24 वर्ष पहली बार गर्भवती हुई तो वे आने वाले बच्चे को

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लेकर काफी उत्साहित थी। गर्भावस्था के दौरान उन्होंने आशा एवं आंगनवाड़ी कार्यकत्रियों के अनुसार सभी जांचे करवाईं। अगस्त्यमुनि सीएचसी के चिकित्सकों द्वारा संभावित तिथि 4 जुलाई बताई गई। परन्तु लेबर पेन न होने के कारण वे 5 जुलाई को फिर से चिकित्सक से मिलीं। उन्हें सलाह दी गई कि जब लेबर पेन होगा तभी वे आयें। 17 जुलाई को उन्हें लेबर पेन होने लगा तो वे अगस्त्यमुनि सीएचसी आ गई। 18 जुलाई को उन्हें रूद्रप्रयाग के लिए रेफर किया गया। उन्होंने सुरक्षा के लिए बेस चिकित्सालय में जाने का निर्णय लिया और वे लगभग एक बजे दोपहर को श्रीनगर पहुंच गई थी। वहां पहुंचने पर डॉक्टर को दिखाया तो देर से आने के लिए उन्हें खूब लताड़ मिली। तत्काल ही ऑपरेशन की तैयारी की गई तथा सायं 7 बजे के आस पास ऑपरेशन से उनकी बेटी हुई। दूसरे दिन दोपहर में उन्हें बताया गया कि कल सांय को टांके सही नहीं लगे हैं और फिर से चार टांके लगाये गये। 20 जुलाई को बच्ची को पीलिया बताया गया। तथा उसे दूसरी मंजिल पर मशीन के अन्दर रखने की सलाह दी गई। जिसके लिए उसे स्वयं न केवल पैदल दूसरी मंजिल पर ले जाना पड़ा बल्कि समय समय पर दूघ पिलाने भी जाना पड़ा। जबकि उनका स्वयं का ऑपरेशन हुआ था। 25 जुलाई को वे डिस्चार्ज होकर घर आ गये। डिस्चार्ज के समय न तो उन्हें बताया गया कि क्या सावधानी बरतनी है और टांके कब कटवाने हैं। 29 जुलाई को टांकों पर दर्द होने पर वे सीएचसी अगस्त्यमुनि आई तो पता चला कि टांके काटने हैं। एक सप्ताह तक बेस चिकित्सालय में रहने पर जो उन्होंने देखा, सुना और समझा उससे उनका तथा उनके परिवार का अनुभव बहुत ही कड़वा रहा। न तो वहां चिकित्सकों का मरीजों के प्रति व्यवहार ही अच्छा है और न ही सपोर्टिंग स्टाफ का ही व्यवहार अच्छा है। इतने रूढ़ होकर बात करते हैं कि कई बार रोना आ जाता है। बात बात पर झिड़कना और गलती न होने पर भी मरीज की ही गलती बताना तो आम है। पहली बार मां बनने का उत्साह इस कटु अनुभव ने फीका कर दिया। इससे वे बहुत निराश हुई हैं। इस एक सप्ताह के अनुभव से इतना तो समझ में आया कि गरीब एवं अनपढ़ की कोई भी सुनवाई बेस चिकित्सालय में नहीं हो पाती है।