गौरीकुंड हादसे ने छीन ली मासूम आँखों की शरारत, बोहरा परिवार के लिए काल बनकर आई थी नियती
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05/08/202311:56 am
दीपक बेंजवाल / गौरीकुंड
दस्तक पहाड़ न्यूज – गौरीकुंड में अंधेरी रात में काल बनकर टूटी प्रकृति ने पलभर में मेहनत मजदूरी करने वाले नेपाली मूल के बोहरा परिवार की मानो पूरी खुशियाँ ही छीन ली हो। इस परिवार के मुखिया अमर बोहरा पुत्र मान बहादुर बोहरा उनकी पत्नी अनिता बोहरा केदारनाथ यात्रा की शुरुआत में ही अपने मासूम बच्चों के साथ गौरीकुंड पहुँच गए थे। पेट की भूख कितनी बेताबी भरी होती है ये इस बोहरा परिवार से बेहतर कौन समझ सकता था। पराये मुल्क में अपना था तो बस पैसा। दिनभर जो कमाया वो गुजर बसर के लिए नाकाफी था लेकिन जितना मिल रहा था वो संतोष भरा था। 28 वर्ष की उम्र में 5 बच्चे अमर बोहरा की मुफ़लिसी की कहानी के लिए बड़े सबक थे। अशिक्षा, गरीबी ने उसे सिर्फ कामगार ही नहीं बनाया बल्कि उन मासूमों की बेकद्री का हिस्सेदार भी बना दिया था। इसलिए पति-पत्नी जब ध्याड़ी मजदूरी करते थे ये बच्चे भी गौरीकुंड की उस संकरी सड़क पर अक्सर यात्रियों का ध्यान खींच लेते। लाठी ले लो, लाठी ले लो की आवाज बहुत सारे यात्रियों को लाठी का सहारा लिवाने पर मजबूर कर लेती। कुछ खुश होकर पैसे देते तो कुछ टाफी लॉलीपॉप भी। गौरीकुंड और पूरे केदारनाथ यात्रा मार्ग में ऐसे एक दो नहीं कई परिवार है जो दो जून की रोटी के लिए संघर्ष कर रहे है। नाता रिश्ता न होने के बाद भी हर रोज होने वाली मुलाकाते इन परिवारों के लिए जान पहचान बन जाती। फुर्सत की इन्हीं दो पलों में इनका सुख दुख साझा होता था। बोहरा परिवार का एक 3 वर्षीय मासूम तो शायद यहाँ सबका चहेता था। जितना मासूम वो खुद था उतना ही अलग उसका नाम ‘वकील’। ये नाम क्यों और कैसे रखा गया ये बताने वाला भी अब कोई नहीं है लेकिन उसकी मासूमियत भरी यादें बताने वाले बहुत सारे लोग आज आँखो के सामने घटी इस क्रूर नियति से सकते में है।
गौरीकुंड में होटल चलाने वाले प्रमेन्द्र रावत बताते है कि अक्सर जब वो खाली समय या घर से आते जाते डाट पुलिया के पास से गुजरते तो ये भाई बहन लाठीयाँ बेचते मिल जाते। मैं अक्सर उन्हे लॉलीपॉप या कुछ खाने के लिए दे देता, कुछ समय बाद ये मुझे पहचानने लगे थे और कभी-कभार इधर आने पर आवाज दे जाते। ये मासूम सा वकील तो मुझे टुकूर टुकूर देखता रहता। हादसे के बाद अब भी वो मासूम आँखे मेरे जेहन को चीर रही है। केदारनाथ की महाआपदा के बाद हम भी जैसे तैसे बचे था, फिर कभी यहाँ लौटने का मन नहीं हुआ पर अब सब कुछ सामान्य हो गया तो मैं और बहुत सारे लोग गौरीकुंड लौट आए। पिछले साल यात्रा ने पुराने सारे रिकार्ड तोड़ डाले थे, इस बार सब कुछ ठीक-ठाक ही चल रहा था लेकिन सावन बीतते बीतते इस हादसे ने पुराने सारे दर्द जेहन में ताजा कर दिए। आज फिर नियति के सामने हम सब लाचार है।
गुरुवार रात हुए इस हादसे में अभी तक 19 लोगों की पहचान हो पाई है, शुक्रवार सुबह से सर्च आपरेशन जारी है, रूक-रूक कर हो रही बारिश सर्च अभियान में परेशानी खड़ी कर रहा है, फिर भी शुक्रवार देर शाम तक 3 शव बरामद हुए है, जिनकी शिनाख्त की जा रही है। इस हादसे से मन्दाकिनी नदी में समा दुकानों का नामोनिशान भी नहीं बचा है, ऐसे में लापता हुए लोगों के बचने की संभावना ना के बराबर है। स्थानीय भी प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार हादसे में लापता लोगों की संख्या अधिक हो सकती है, कुछ यात्री देर रात यहाँ रूके दिखाई दिए थे। हालाँकि पुलिस प्रशासन और रेस्क्यू टीमों की सर्च अभियान और पूछताछ जारी है।
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गौरीकुंड हादसे ने छीन ली मासूम आँखों की शरारत, बोहरा परिवार के लिए काल बनकर आई थी नियती
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दीपक बेंजवाल / गौरीकुंड
दस्तक पहाड़ न्यूज - गौरीकुंड में अंधेरी रात में काल बनकर टूटी प्रकृति ने पलभर में मेहनत मजदूरी करने वाले नेपाली मूल के बोहरा परिवार की मानो पूरी खुशियाँ
ही छीन ली हो। इस परिवार के मुखिया अमर बोहरा पुत्र मान बहादुर बोहरा उनकी पत्नी अनिता बोहरा केदारनाथ यात्रा की शुरुआत में ही अपने मासूम बच्चों के साथ
गौरीकुंड पहुँच गए थे। पेट की भूख कितनी बेताबी भरी होती है ये इस बोहरा परिवार से बेहतर कौन समझ सकता था। पराये मुल्क में अपना था तो बस पैसा। दिनभर जो कमाया
वो गुजर बसर के लिए नाकाफी था लेकिन जितना मिल रहा था वो संतोष भरा था। 28 वर्ष की उम्र में 5 बच्चे अमर बोहरा की मुफ़लिसी की कहानी के लिए बड़े सबक थे। अशिक्षा,
गरीबी ने उसे सिर्फ कामगार ही नहीं बनाया बल्कि उन मासूमों की बेकद्री का हिस्सेदार भी बना दिया था। इसलिए पति-पत्नी जब ध्याड़ी मजदूरी करते थे ये बच्चे भी
गौरीकुंड की उस संकरी सड़क पर अक्सर यात्रियों का ध्यान खींच लेते। लाठी ले लो, लाठी ले लो की आवाज बहुत सारे यात्रियों को लाठी का सहारा लिवाने पर मजबूर कर
लेती। कुछ खुश होकर पैसे देते तो कुछ टाफी लॉलीपॉप भी। गौरीकुंड और पूरे केदारनाथ यात्रा मार्ग में ऐसे एक दो नहीं कई परिवार है जो दो जून की रोटी के लिए
संघर्ष कर रहे है। नाता रिश्ता न होने के बाद भी हर रोज होने वाली मुलाकाते इन परिवारों के लिए जान पहचान बन जाती। फुर्सत की इन्हीं दो पलों में इनका सुख दुख
साझा होता था। बोहरा परिवार का एक 3 वर्षीय मासूम तो शायद यहाँ सबका चहेता था। जितना मासूम वो खुद था उतना ही अलग उसका नाम 'वकील'। ये नाम क्यों और कैसे रखा गया ये
बताने वाला भी अब कोई नहीं है लेकिन उसकी मासूमियत भरी यादें बताने वाले बहुत सारे लोग आज आँखो के सामने घटी इस क्रूर नियति से सकते में है।
गौरीकुंड में होटल चलाने वाले प्रमेन्द्र रावत बताते है कि अक्सर जब वो खाली समय या घर से आते जाते डाट पुलिया के पास से गुजरते तो ये भाई बहन लाठीयाँ बेचते
मिल जाते। मैं अक्सर उन्हे लॉलीपॉप या कुछ खाने के लिए दे देता, कुछ समय बाद ये मुझे पहचानने लगे थे और कभी-कभार इधर आने पर आवाज दे जाते। ये मासूम सा वकील तो
मुझे टुकूर टुकूर देखता रहता। हादसे के बाद अब भी वो मासूम आँखे मेरे जेहन को चीर रही है। केदारनाथ की महाआपदा के बाद हम भी जैसे तैसे बचे था, फिर कभी यहाँ लौटने
का मन नहीं हुआ पर अब सब कुछ सामान्य हो गया तो मैं और बहुत सारे लोग गौरीकुंड लौट आए। पिछले साल यात्रा ने पुराने सारे रिकार्ड तोड़ डाले थे, इस बार सब कुछ
ठीक-ठाक ही चल रहा था लेकिन सावन बीतते बीतते इस हादसे ने पुराने सारे दर्द जेहन में ताजा कर दिए। आज फिर नियति के सामने हम सब लाचार है।
गुरुवार रात हुए इस हादसे में अभी तक 19 लोगों की पहचान हो पाई है, शुक्रवार सुबह से सर्च आपरेशन जारी है, रूक-रूक कर हो रही बारिश सर्च अभियान में परेशानी खड़ी कर
रहा है, फिर भी शुक्रवार देर शाम तक 3 शव बरामद हुए है, जिनकी शिनाख्त की जा रही है। इस हादसे से मन्दाकिनी नदी में समा दुकानों का नामोनिशान भी नहीं बचा है, ऐसे
में लापता हुए लोगों के बचने की संभावना ना के बराबर है। स्थानीय भी प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार हादसे में लापता लोगों की संख्या अधिक हो सकती है, कुछ
यात्री देर रात यहाँ रूके दिखाई दिए थे। हालाँकि पुलिस प्रशासन और रेस्क्यू टीमों की सर्च अभियान और पूछताछ जारी है।