प्राइवेट मेडिकल कालेजों में लूटमार शुरू नीट में 150 नंबर पर भी मिल रहा दाखिला

Featured Image

गुणानंद जखमोला / देहरादून  एक ओर प्रदेश सरकार ‘यू कोट, वी पे‘ योजना चला रही है ताकि राज्य को विशेषज्ञ डाक्टर मिल सके। इसके लिए सरकार डाक्टरों को चार से 6 लाख रुपये महीना वेतन देने को भी तैयार है। इसके बावजूद डाक्टर आने को तैयार नहीं हैं। कारण, जब एक डाक्टर एक करोड़ रुपये देकर एमबीबीएस की डिग्री हासिल करता है और दो से तीन करोड़ में पीजी करता है तो वह 6 लाख की नौकरी क्यों करेगा? प्राइवेट अस्पताल में एक मरीज का दिल, जिगर या किडनी काटी और वसूल लिए 10-15 लाख। उनकी भी क्या गलती, निवेश जितना अधिक होगा, प्राफिट भी तो उतना ही होगा।   नीट स्टेट काउंसिलिंग का पहला राउंड पूरा हो गया। चार सरकारी मेडिकल कालेजों में नीट में 589 अंक हासिल करने वालों को ही दाखिला मिल रहा है। दूसरे या मॉप अप राउंड के बाद दो-चार नंबर ही लिस्ट नीचे आएगी। यानी 585 के आसपास सरकारी कालेजों में दाखिला नहीं मिलेगा। इसके ठीक उलट निजी कालेजों में नीट में 150 वाले या इससे कम को भी एमबीबीएस में दाखिला मिल जाएगा। बस, उसकी जेब में एक करोड़ होने चाहिए। लूटमार का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि निजी मेडिकल कालेज दाखिले के समय छात्र से 24 लाख रुपये तुरंत जमा करवा रहे हैं और दस-दस लाख के पांच पोस्टडेटिड चेक वसूल रहे हैं। यानी जैसे छात्र न हों, लुटेरे हों, जो बाद में मेहुल चौकसी या नीरव मोदी की तर्ज पर देश छोड़ भाग जाएंगे। मजेदार बात यह है कि स्टेट कोटे से भी आल इंडिया कोटे की तर्ज पूर पूरा पैसा वसूला जा रहा है। स्टेट कोटे वाले छात्रों को कहा जा रहा है कि बाद में पांच-पांच लाख वापस हो जाएंगे। किसी सेमेस्टर में बच्चा फेल तो उससे उस पेपर के चार लाख वसूले जाते हैं। गजब की बात है। इंटर्नशिप के लिए 17000 रुपये दिये जाते हैं लेकिन सभी मेडिकल कालेज पांच हजार ही देते हैं और 12 हजार अन्य खर्चों की मद में काट लेते हैं। इंटर्न कर रहे डाक्टर से मैस आदि के एक लाख से अधिक वसूले जाते हैं।   हद है। ये हम कैसी शिक्षा प्रणाली दे रहे हैं। फीस निर्धारण कमेटी ने नौ लाख फीस तय की है जो कि अन्य खर्चों को बढ़कार 24 लाख तक पहुंचा दी गयी है। सरकार का निजी मेडिकल कालेजों पर कोई कंट्रोल नहीं है। न फीस पर न न्यूनतम योग्यता पर। स्टेट कोटे हो या मैनेजमेंट कोटा। सब बराबर। आखिर जब एक करोड़ खर्च करेंगे तो वह मरीज को ग्राहक ही समझेंगे। मैं यह नहीं कह रहा कि निजी मेडिकल कालेजों में सभी नालायक धनाढय बच्चों को दाखिला मिलता है, लेकिन यह सच है कि इनमें अधिकांश नालायक ही होते हैं और जब ये डिग्री लेकर निकलते हैं तो इनके हाथ में स्टेथोस्कोप के साथ ही उस्तरा भी होता है। राम बचाए इनसे। एक नीति बननी चाहिए कि योग्य बच्चों को सरकारी फीस पर ही इन कालेजों में दाखिला मिले। इनकी भी मेरिट लिस्ट हो।