अलविदा डॉ. योगम्बर सिंह बर्त्वाल ! देहरादून में डेंगू के कारण हुआ निधन, आज होगा अंतिम संस्कार
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28/08/20231:24 pm
जगमोहन रौतेला / दस्तक पहाड न्यूज
उत्तराखंड,विशेषकर गढ़वाल, के राजनीतिक एवं सांस्कृतिक चेतना के पुंज डॉक्टर योगम्बर सिंह बर्त्वाल हमारे बीच नहीं रहे। उनके चले जाने की खबर अभी कुछ देर पहले युगवानी के संपादक संजय कोठियाल जी ने देहरादून से मुझे दी। कुछ दिन बीमार रहने के बाद उन्होंने आज 28 अगस्त 2023 इस दुनिया को अलविदा कह दिया। दून अस्पताल में उन्होंने लम्बे समय तक अपनी सेवाएं दी। दून अस्पताल में सेवारत रहने के दौरान वे गढ़वाल के दुर्गम इलाकों से आए मरीजों के नाश्ते और भोजन की व्यवस्था अपने घर से करने में भी चूक नहीं करते थे। गढ़वाल के पुरानी पीढ़ी के नेताओं की कुंडलियां उन्हें मुंह जबानी याद थी। वे लेखन के भी धनी थे। उन्होंने कई किताबें लिखी और कई किताबों का संपादन भी किया। प्रसिद्ध कवि चंद्रकुंवर बर्त्वाल के कविता संसार से हिंदी साहित्य को अवगत कराने में भी उनका बहुत बड़ा योगदान रहा। वे चंद्रकुंवर बर्त्वाल शोध संस्थान के अध्यक्ष भी थे। जिसके माध्यम से वे हर वर्ष 20 अगस्त को चंद्रकुंवर बर्त्वाल की जन्म तिथि को बड़े गौरव के साथ मनाते थे।
उन्होंने मेरे साथ एक लंबी बातचीत करने का वादा किया था। पर इधर ढाई-3 साल से बूल्लूमां के कैंसर पीड़ित होने और अस्पतालों के चक्कर लगने के कारण वह मौका नहीं आ पाया। इसका मुझे हमेशा अफसोस रहेगा। डॉक्टर बर्त्वाल का जाना एक युग का समाप्त हो जाना है।
अलविदा डॉ. योगम्बर सिंह बर्त्वाल ! देहरादून में डेंगू के कारण हुआ निधन, आज होगा अंतिम संस्कार
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जगमोहन रौतेला / दस्तक पहाड न्यूज
उत्तराखंड,विशेषकर गढ़वाल, के राजनीतिक एवं सांस्कृतिक चेतना के पुंज डॉक्टर योगम्बर सिंह बर्त्वाल हमारे बीच नहीं रहे। उनके चले जाने की खबर अभी कुछ देर
पहले युगवानी के संपादक संजय कोठियाल जी ने देहरादून से मुझे दी। कुछ दिन बीमार रहने के बाद उन्होंने आज 28 अगस्त 2023 इस दुनिया को अलविदा कह दिया। दून अस्पताल
में उन्होंने लम्बे समय तक अपनी सेवाएं दी। दून अस्पताल में सेवारत रहने के दौरान वे गढ़वाल के दुर्गम इलाकों से आए मरीजों के नाश्ते और भोजन की व्यवस्था
अपने घर से करने में भी चूक नहीं करते थे। गढ़वाल के पुरानी पीढ़ी के नेताओं की कुंडलियां उन्हें मुंह जबानी याद थी। वे लेखन के भी धनी थे। उन्होंने कई किताबें
लिखी और कई किताबों का संपादन भी किया। प्रसिद्ध कवि चंद्रकुंवर बर्त्वाल के कविता संसार से हिंदी साहित्य को अवगत कराने में भी उनका बहुत बड़ा योगदान रहा।
वे चंद्रकुंवर बर्त्वाल शोध संस्थान के अध्यक्ष भी थे। जिसके माध्यम से वे हर वर्ष 20 अगस्त को चंद्रकुंवर बर्त्वाल की जन्म तिथि को बड़े गौरव के साथ मनाते
थे।
उन्होंने मेरे साथ एक लंबी बातचीत करने का वादा किया था। पर इधर ढाई-3 साल से बूल्लूमां के कैंसर पीड़ित होने और अस्पतालों के चक्कर लगने के कारण वह मौका नहीं आ
पाया। इसका मुझे हमेशा अफसोस रहेगा। डॉक्टर बर्त्वाल का जाना एक युग का समाप्त हो जाना है।
डॉक्टर बर्त्वाल को भावपूर्ण श्रद्धांजलि! आपकी कमी हमेशा रहेगी।