मणिगुह गाँव में बन रही है पिरूल की राखियाँ, देखकर हो रहा है हर कोई दीवाना
1 min read29/08/2023 8:23 am
हरीश गुसाई / अगस्त्यमुनि।
दस्तक पहाड न्यूज ब्यूरो। उत्तराखण्ड के पहले पुस्तकालय गांव मणिगुह की महिलाओं के लिए इस बार राखी का त्यौहार खास बन गया है। हो भी क्यों ना, राखी के इस त्यौहार से उन्होंने आत्म निर्भर बनने की दिशा में पहला कदम सफलता के साथ आगे बढ़ाया है। गांव की महिलाओं ने चीढ़ की पत्तियों से सुन्दर राखियों का निर्माण किया है। जिसे हमारा गांव घर फाउण्डेशन के सहयोग से भारत के कई शहरों में बेचा गया।
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अपने पहले ही प्रयास में महिलाओं ने 12 हजार रू0 से अधिक की राखियां बेची हैं। यह धनराशि शहर के हिसाब से भले ही बहुत कम लग रही हो, परन्तु उत्तराखण्ड के दूरस्थ गांव जहां मूल भूत सुविधाओं का अकाल हो वहां की महिलाओं द्वारा किया गया आत्म निर्भर बनने की दिशा में पहले प्रयास के हिसाब से बहुत बड़ी है। सात महीने पहले जब पुस्तकालय गाँव मणिगुह का उद्घाटन हुआ था तब किस ने सोचा था कि पुस्तकालय गाँव की महिलाएँ छः महीने बाद इतनी सुन्दर राखियाँ बना रही होंगी। राखियाँ भी उन चीड़ के पत्तों से जिन्हें उत्तराखण्ड में अभिशाप माना जाता है। इन महिलाओं ने अपने हुनर से अभिशाप को वरदान में बदल दिया है। यहां बताते चले कि हमारा गांव घर फाउण्डेशन द्वारा 26 जनवरी 2023 को रूद्रप्रयाग जनपद के दूरस्थ गांव मणिगुह में पहला सुसज्जित पुस्तकालय खोला था। इसके साथ ही गांव में जगह जगह पुस्तक मंन्दिरांे की स्थापना कर शिक्षा की अलख जगाई थी। फाउण्डेशन का उद्देश्य गांव को पुस्तकालय के माध्यम से पर्यटन एवं ट्रैकिंग का हब बनाकर इसे रोजगार से जोड़ना था। जिसमें वह काफी हद तक सफल हुए हैं। इसके साथ ही फाउण्डेशन ने गांव की महिलाओं को भी रोजगार से जोड़ने के लिए कई प्रोग्राम बनाये। जिनमें स्थानीय उत्पादों को बढ़ावा देते हुए उन्हें बाजार उपलब्ध कराने पर जोर दिया गया। इसके लिए जून माह में फाउण्डेशन ने एक पिरूल हस्तशिल्प प्रशिक्षण कार्यशाला का आयोजन किया था जिसमें प्रख्यात पिरूल हस्तशिल्पकार श्रीमती मंजू आर साह ने महिलाओं को पिरूल के उत्पाद बनाने का प्रशिक्षण दिया था। इसके बाद रक्षा बन्धन त्यौहार को देखते हुए महिलाओं ने सबसे पहले राखी बनाने पर जोर दिया। और देखते ही देखते इसमें पारंगत होकर ऐसी सुन्दर राखियां बना दीं कि देश के कोने कोने से उनको राखियों के ऑर्डर मिलने लगे। परन्तु समय कम होने पर वे अधिक राखियां नहीं बना पाई। फिर भी भविष्य के लिए आशा का संचार तो कर ही गई। हमारा गांव घर फाउण्डेशन के संस्थापक सुमन मिश्रा ने बताया कि इस कार्य को गाँव की क़रीब 8 महिलाओं ने अपनाया। जिनमंे पाँच महिलाओं का काम सर्वाेत्तम रहा। हमारी क़रीब बारह हज़ार की राखियाँ इस बार बिकी क्योंकि समय बहुत कम था और एक महीने पहले ही महिलाओं ने प्रशिक्षण लिया था। ये राखियां देखने में सुन्दर तो हैं ही साथ ही प्रकृति के साथ जुड़े रहने का अहसास भी कराती हैं। देश भर के विभिन्न राज्यों बिहार, गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र, उत्तराखण्ड, हरियाणा, मध्यप्रदेश और पंजाब आदि में उत्तराखंड की पिरुल से निर्मित ये राखियाँ सब को पसंद आई हैं। इस छोटे से प्रयास से गाँव की महिलाओं का आत्मविश्वास तो बढ़ा ही है साथ ही साथ उन में कुछ रचनात्मक करने की ऊर्जा का भी संचार हुआ है। हमारी योजना है कि बहुत जल्द यहाँ के स्थानीय उत्पाद भी शहरों तक पहुँचाए जाएँ ताकि शिक्षा के साथ साथ क्षेत्र की आर्थिकी में भी सुधार हो।
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