मंजीत भाई की कहानी आपको रूला देगी, आखिर सरकार के अतिक्रमण हटाओ अभियान से कैसे ख़त्म हो रही युवाओं की उम्मीद
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11/09/20233:19 pm
अतिक्रमण सरकार के अतिक्रमण अभियान के बाद पहाड़ में सैकड़ों युवा बेरोजगार हो गए है। टिहरी जिले में चंबा के नजदीक छोटे से बाजार कद्दूखाल में बीती 28 अगस्त को दुकान तोड़े जाने पर एक युवा सुरेन्द्र सिंह नकोटी भारी सदमे में आ गया, 7 सितंबर की सुबह अवसाद के चलते उसकी मृत्यु हो गई है। यह घटना हृदयविदारक है। उत्तराखंड सरकार के इस अभियान से और भी बहुत से युवा सदमे में है, उनकी दुकाने, आजीविका सारे साधन तोड़ डाले गए है। इधर सीएम ने अतिक्रमण पर पीड़ित पक्ष को जाने बिना कार्यवाही के आदेश दिए है लेकिन बहुत सी दुकाने, ढाबे तबाह कर दिए गए है। केदारघाटी में भी युवाओं के साथ ऐसा धोखा हो गया है। मंजीत सिंह चौहान भी ऐसे पीड़ितों में एक है।
दस्तक पहाड न्यूज। कोविड महामारी के बाद पहाड़ लौटने वाले हजारों युवाओं में एक युवा केदारघाटी के अंतिम छोर पर बसे रेल गाँव का मंजीत भी था। गाँव लौटने पर सबसे बड़ी आवश्यकता रोजगार की थी, सरकार के तमाम दावों के बाद रोजगार के रूप में पहाड़ लौटे बहुत से युवाओं को खास मदद नहीं मिली। लेकिन मंजीत के लिए यह सरकारी तंत्र और गाँव परिवार की जिम्मेदारियों के बीच कुछ नया सोचने और करने का अवसर था। हाथ पर हाथ धरे रहकर बैठने के बजाय 24 वर्षीय मंजीत सिंह चौहान ने केदारनाथ यात्रा मार्ग पर फाटा से आगे ज्वलमुखी श्रोत के पास ढाबा खोल दिया, नाम रखा अपना ढाबा। शुरुआत में खास आमदनी तो नहीं हुई लेकिन काम और यात्रा मार्ग की जरूरतों का अनुभव हो गया। ढाबे में पहाड़ी फूड और लोकल डिश हर किसी लुभाने लगी थी।
इससे प्रेरित होकर कुछ साल बाद मंजीत ने नया स्टार्टअप करने का मन बनाया। और अपने गाँव रेल में अपनी जमीन पर मछली पालन और पोल्ट्री फार्म का काम शुरू कर दिया। हेली सेवा कैम्प नजदीक होने का फायदा मिला और डिमांड बढ़ने लगी।
ट्राउट फिशरी टैंक
अब लोकल फिश के साथ ट्राउट फिश के लिए चार टैंक बनाए, एक टैंक की लागत तकरीबन दो से ढाई लाख की आई। ट्राउट फिश की अच्छी ग्रौ हुई तो देहरादून से भी डिमांड आने लगी। वही पोल्ट्री फार्म में मशहूर ककड़नाथ मुर्गे भी पालने शुरू किए। इनके लिए एक दोमंजिला आधुनिक सुविधाओं वाला भवन तैयार हुआ। इन सब का यहाँ भी अच्छा खासा बाजार था सो डिमांड के साथ उत्पादन भी बढ़ता गया। अब मंजीत ने कुछ स्थानीय युवाओं को भी अपने स्टार्टअप से जोड़ा, लगभग 6 युवाओं के स्टाफ के साथ ढाबा, फिशरी और पोल्ट्री बिजनेस अच्छा खासा चलने लगा। दो कदम और आगे बढ़कर मंजीत ने गाँव की तकरीबन 9 महिलाओं को साथ लेकर ‘चौहान ग्रुप मल्टीपल स्टार्टअप ‘ की नींव रखी। इसमें गाँव के लोकल उत्पाद को बाजार देने का लक्ष्य था। लेकिन यह सब कुछ आगे बढ़ पाता उससे पहले 17 जुलाई 2023 की रात मंजीत की सारी मेहनत पर भयंकर लैंड स्लाइड ने कहर बरपा दिया।
आपदा के बाद फिशरी टैंक का नामोनिशान नही बचा
स्टार्टअप का एक-एक हिस्सा पूरी तरह से तबाह हो गया, बचा था तो सिर्फ बेबसी, लाचारी और सबकुछ बर्बाद होने का जख्म। इस लैंड स्लाइड में 6 फिशरी के टैंक, दो मंजिला पोल्ट्री फार्म और लोकल फूड यूनिट के साथ 2 लाख 72 हजार लागत की पाईप लाइन भी खत्म हो गई थी।
आपदा के जख्म
यह सब मंजीत के लिए जीवन का सबसे बुरा समय था, जिससे उबरना भी बड़ी चुनौती थी। मंजीत ने जिले के आला अधिकारियों के सामने इस तबाही की तस्वीर रखी, जिस पर तहसीलदार ऊखीमठ द्वारा जांच की गई और लगभग 15 लाख के नुकसान का आंकलन किया और जल्द ही उचित मुआवजा मिलने का आश्वासन भी दिया। बहुत चक्कर काटने पर पता लगा इस प्रकार के नुकसान के लिए कोई मुआवजे का प्रावधान विभागों के पास नहीं है। विभागीय अधिकारियों ने उसे नया स्टार्टअप शुरू करने की सलाह भी दी लेकिन सब कुछ गवाँ देने के बाद दुबारा कैसे शुरू करता ये सवाल इस युवा को सताने लगा। उसने पहले ही अपने स्टार्टअप के लिए बैंक से भी डेढ लाख का लोन लाया था अब कैसे, कहाँ से मदद मिलती यह अहम था।
ढाबा की टूटने की तस्वीर
मंजीत के सामने सिर्फ अपना जीवन नहीं था, घर में 90 साल की बूढ़ी दादी, 11 साल पहले पिता के निधन के बाद माँ, छोटी बहन और अपने साथ काम कर रहे 6 युवा और उनके परिवार का जीवन भी संभालना था। यह उधेड़बुन चल ही रही थी कि 28 अगस्त 2023 को जवलमुखी में उसके ढाबे को अतिक्रमण के नाम पर तोड़ दिया गया। आपदा से पूरी तरह से टूट चुके मंजीत के लिए यह दूसरी भयंकर आपदा थी जिसने अब जीवन की सारी उम्मीदों पर पूर्ण विराम लगा दिया है।
मंजीत वही युवा था जो कोविड के बाद न केवल खुद के पाँवों पर खड़ा हुआ बल्कि अपने साथ 6 युवाओं और गाँव की महिलाओं को भी रोजगार देकर आत्मविश्वास से भर दिया। अपने काम के साथ उसने अपना एक यूट्यूब चैनल बनाया था जिसका नाम “Income in पहाड़” है। इसमें मंजीत अपने इनकम के सोर्सेस के बारे में बताता रहता था और युवाओं को कहता था कि आप पलायन मत करिए आप अपने पहाड़ों में रहकर अपने घरों में रहकर अपने क्षेत्र में रहकर भी इस तरह के छोटे-छोटे व्यवसाय इनकम के सोर्सेस तैयार कर सकते हैं और एक अच्छा इनकम प्राप्त कर सकते हैं।
मंजीत ने गाँव और क्षेत्र में अपने चौहान ग्रुप्स के जरिए प्लास्टिक कूड़ा निस्तारण व गांव के अन्य सार्वजनिक कार्यों में भी सहयोग देने की मुहिम भी चलाई। अब भी पहाड़ के इस युवा का जज्बा देखिए सब कुछ खत्म होने के बाद भी वह इन मुहिमों को चलाना चाहता है। मंजीत सरकार थोड़ा मदद करें हम दुबारा से खड़े हो सकते है।
प्लास्टिक निस्तारण अभियान के साथी
सरकार के लिए यह कड़वी हकीकत शायद मायने न रखे लेकिन जाने अनजाने में सरकार ने कोविड के बाद मंजीत जैसे घर गाँव लौटे पहाड़ के अनगिनत युवाओं के सपनों, उम्मीदों को भी रौंद दिया है। सड़क किनारे इन छोटे छोटे ढाबों, होटलों , दुकानों में हजारों परिवारों के घर दो वक्त का चूल्हा जल जाता था। सरकार का रोजगार तो अब हाकम और उसके जैसे गुर्गो के पास गिरवी रखा है सो ये युवा सड़क पर भी अपना सपना न तलाशे तो क्या करें। लानत है ऐसे सरकारी फरमान पर जो अपने ही नौनिहालों के जीवन को ही रौंदकर शेखी बघार रहे है।
राज्य बनने के बाद पलायन रोकने में असफल रही अब तक सभी सरकारों ने जमीनों पर क्या किया ये किसे से छिपा नही है, लेकिन रिवर्स पलायन के आइकॉन बने रहे मंजीत जैसे उत्साही युवाओं को सरकार प्रोत्साहन नही दे पाई।
काश! सरकार मंजीत और उस जैसे उजाड़े जा रहे युवाओं का दर्द समझती, उन्हें रोजगार न दे सकी तो कम से कम उजाड़ने का तानाशाही पूर्ण कार्य तो नहीं करती।
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मंजीत भाई की कहानी आपको रूला देगी, आखिर सरकार के अतिक्रमण हटाओ अभियान से कैसे ख़त्म हो रही युवाओं की उम्मीद
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अतिक्रमण सरकार के अतिक्रमण अभियान के बाद पहाड़ में सैकड़ों युवा बेरोजगार हो गए है। टिहरी जिले में चंबा के नजदीक छोटे से बाजार कद्दूखाल में बीती 28 अगस्त
को दुकान तोड़े जाने पर एक युवा सुरेन्द्र सिंह नकोटी भारी सदमे में आ गया, 7 सितंबर की सुबह अवसाद के चलते उसकी मृत्यु हो गई है। यह घटना हृदयविदारक है।
उत्तराखंड सरकार के इस अभियान से और भी बहुत से युवा सदमे में है, उनकी दुकाने, आजीविका सारे साधन तोड़ डाले गए है। इधर सीएम ने अतिक्रमण पर पीड़ित पक्ष को जाने
बिना कार्यवाही के आदेश दिए है लेकिन बहुत सी दुकाने, ढाबे तबाह कर दिए गए है। केदारघाटी में भी युवाओं के साथ ऐसा धोखा हो गया है। मंजीत सिंह चौहान भी ऐसे
पीड़ितों में एक है।
दीपक बेंजवाल / अगस्त्यमुनि
दस्तक पहाड न्यूज। कोविड महामारी के बाद पहाड़ लौटने वाले हजारों युवाओं में एक युवा केदारघाटी के अंतिम छोर पर बसे रेल गाँव का मंजीत भी था। गाँव लौटने पर
सबसे बड़ी आवश्यकता रोजगार की थी, सरकार के तमाम दावों के बाद रोजगार के रूप में पहाड़ लौटे बहुत से युवाओं को खास मदद नहीं मिली। लेकिन मंजीत के लिए यह सरकारी
तंत्र और गाँव परिवार की जिम्मेदारियों के बीच कुछ नया सोचने और करने का अवसर था। हाथ पर हाथ धरे रहकर बैठने के बजाय 24 वर्षीय मंजीत सिंह चौहान ने केदारनाथ
यात्रा मार्ग पर फाटा से आगे ज्वलमुखी श्रोत के पास ढाबा खोल दिया, नाम रखा अपना ढाबा। शुरुआत में खास आमदनी तो नहीं हुई लेकिन काम और यात्रा मार्ग की जरूरतों
का अनुभव हो गया। ढाबे में पहाड़ी फूड और लोकल डिश हर किसी लुभाने लगी थी।
इससे प्रेरित होकर कुछ साल बाद मंजीत ने नया स्टार्टअप करने का मन बनाया। और अपने गाँव रेल में अपनी जमीन पर मछली पालन और पोल्ट्री फार्म का काम शुरू कर दिया।
हेली सेवा कैम्प नजदीक होने का फायदा मिला और डिमांड बढ़ने लगी।
[caption id="attachment_33193" align="aligncenter" width="1280"] ट्राउट फिशरी टैंक[/caption]
अब लोकल फिश के साथ ट्राउट फिश के लिए चार टैंक बनाए, एक टैंक की लागत तकरीबन दो से ढाई लाख की आई। ट्राउट फिश की अच्छी ग्रौ हुई तो देहरादून से भी डिमांड आने
लगी। वही पोल्ट्री फार्म में मशहूर ककड़नाथ मुर्गे भी पालने शुरू किए। इनके लिए एक दोमंजिला आधुनिक सुविधाओं वाला भवन तैयार हुआ। इन सब का यहाँ भी अच्छा खासा
बाजार था सो डिमांड के साथ उत्पादन भी बढ़ता गया। अब मंजीत ने कुछ स्थानीय युवाओं को भी अपने स्टार्टअप से जोड़ा, लगभग 6 युवाओं के स्टाफ के साथ ढाबा, फिशरी और
पोल्ट्री बिजनेस अच्छा खासा चलने लगा। दो कदम और आगे बढ़कर मंजीत ने गाँव की तकरीबन 9 महिलाओं को साथ लेकर 'चौहान ग्रुप मल्टीपल स्टार्टअप ' की नींव रखी। इसमें
गाँव के लोकल उत्पाद को बाजार देने का लक्ष्य था। लेकिन यह सब कुछ आगे बढ़ पाता उससे पहले 17 जुलाई 2023 की रात मंजीत की सारी मेहनत पर भयंकर लैंड स्लाइड ने कहर बरपा
दिया।
[caption id="attachment_33192" align="aligncenter" width="1600"] आपदा के बाद फिशरी टैंक का नामोनिशान नही बचा[/caption]
स्टार्टअप का एक-एक हिस्सा पूरी तरह से तबाह हो गया, बचा था तो सिर्फ बेबसी, लाचारी और सबकुछ बर्बाद होने का जख्म। इस लैंड स्लाइड में 6 फिशरी के टैंक, दो मंजिला
पोल्ट्री फार्म और लोकल फूड यूनिट के साथ 2 लाख 72 हजार लागत की पाईप लाइन भी खत्म हो गई थी।
[caption id="attachment_33191" align="aligncenter" width="1280"] आपदा के जख्म[/caption]
यह सब मंजीत के लिए जीवन का सबसे बुरा समय था, जिससे उबरना भी बड़ी चुनौती थी। मंजीत ने जिले के आला अधिकारियों के सामने इस तबाही की तस्वीर रखी, जिस पर तहसीलदार
ऊखीमठ द्वारा जांच की गई और लगभग 15 लाख के नुकसान का आंकलन किया और जल्द ही उचित मुआवजा मिलने का आश्वासन भी दिया। बहुत चक्कर काटने पर पता लगा इस प्रकार के
नुकसान के लिए कोई मुआवजे का प्रावधान विभागों के पास नहीं है। विभागीय अधिकारियों ने उसे नया स्टार्टअप शुरू करने की सलाह भी दी लेकिन सब कुछ गवाँ देने के
बाद दुबारा कैसे शुरू करता ये सवाल इस युवा को सताने लगा। उसने पहले ही अपने स्टार्टअप के लिए बैंक से भी डेढ लाख का लोन लाया था अब कैसे, कहाँ से मदद मिलती यह
अहम था।
[caption id="attachment_33190" align="aligncenter" width="1280"] ढाबा की टूटने की तस्वीर[/caption]
मंजीत के सामने सिर्फ अपना जीवन नहीं था, घर में 90 साल की बूढ़ी दादी, 11 साल पहले पिता के निधन के बाद माँ, छोटी बहन और अपने साथ काम कर रहे 6 युवा और उनके परिवार का
जीवन भी संभालना था। यह उधेड़बुन चल ही रही थी कि 28 अगस्त 2023 को जवलमुखी में उसके ढाबे को अतिक्रमण के नाम पर तोड़ दिया गया। आपदा से पूरी तरह से टूट चुके मंजीत
के लिए यह दूसरी भयंकर आपदा थी जिसने अब जीवन की सारी उम्मीदों पर पूर्ण विराम लगा दिया है।
मंजीत वही युवा था जो कोविड के बाद न केवल खुद के पाँवों पर खड़ा हुआ बल्कि अपने साथ 6 युवाओं और गाँव की महिलाओं को भी रोजगार देकर आत्मविश्वास से भर दिया। अपने
काम के साथ उसने अपना एक यूट्यूब चैनल बनाया था जिसका नाम “Income in पहाड़” है। इसमें मंजीत अपने इनकम के सोर्सेस के बारे में बताता रहता था और युवाओं को कहता था कि
आप पलायन मत करिए आप अपने पहाड़ों में रहकर अपने घरों में रहकर अपने क्षेत्र में रहकर भी इस तरह के छोटे-छोटे व्यवसाय इनकम के सोर्सेस तैयार कर सकते हैं और एक
अच्छा इनकम प्राप्त कर सकते हैं।
मंजीत ने गाँव और क्षेत्र में अपने चौहान ग्रुप्स के जरिए प्लास्टिक कूड़ा निस्तारण व गांव के अन्य सार्वजनिक कार्यों में भी सहयोग देने की मुहिम भी चलाई। अब
भी पहाड़ के इस युवा का जज्बा देखिए सब कुछ खत्म होने के बाद भी वह इन मुहिमों को चलाना चाहता है। मंजीत सरकार थोड़ा मदद करें हम दुबारा से खड़े हो सकते है।
[caption id="attachment_33195" align="aligncenter" width="1280"] प्लास्टिक निस्तारण अभियान के साथी[/caption]
सरकार के लिए यह कड़वी हकीकत शायद मायने न रखे लेकिन जाने अनजाने में सरकार ने कोविड के बाद मंजीत जैसे घर गाँव लौटे पहाड़ के अनगिनत युवाओं के सपनों, उम्मीदों
को भी रौंद दिया है। सड़क किनारे इन छोटे छोटे ढाबों, होटलों , दुकानों में हजारों परिवारों के घर दो वक्त का चूल्हा जल जाता था। सरकार का रोजगार तो अब हाकम और
उसके जैसे गुर्गो के पास गिरवी रखा है सो ये युवा सड़क पर भी अपना सपना न तलाशे तो क्या करें। लानत है ऐसे सरकारी फरमान पर जो अपने ही नौनिहालों के जीवन को ही
रौंदकर शेखी बघार रहे है।
राज्य बनने के बाद पलायन रोकने में असफल रही अब तक सभी सरकारों ने जमीनों पर क्या किया ये किसे से छिपा नही है, लेकिन रिवर्स पलायन के आइकॉन बने रहे मंजीत जैसे
उत्साही युवाओं को सरकार प्रोत्साहन नही दे पाई।
काश! सरकार मंजीत और उस जैसे उजाड़े जा रहे युवाओं का दर्द समझती, उन्हें रोजगार न दे सकी तो कम से कम उजाड़ने का तानाशाही पूर्ण कार्य तो नहीं करती।