गुणानंद जखमोला / जोशीमठ  नौ वार्डों के 868 मकानों में दरारें, 300 परिवार विस्थापित, मुआवजा और विस्थापन नीति नहीं

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उत्तराखंड का मुख्यधारा का मीडिया इतना डरा हुआ है कि जोशीमठ पर विशेषज्ञ समिति की जांच रिपोर्ट को छिपाने का कोई कारण न होने संबंधी हाईकोर्ट की टिप्पणी पर भी चुप्पी साध ली है। टाइम्स को छोड़कर किसी ने नहीं लिखा। मैंने इस न्यूज को किसी अखबार या चैनल में नहीं देखा। हो सकता है कि कुछ ने दिखाई हो, यदि दिखाई या प्रकाशित की हो तो कमेंट्स कर दें। [caption id="attachment_33489" align="aligncenter" width="259"] नौ वार्डों के 868 मकानों में दरारें, 300 परिवार विस्थापित, मुआवजा और विस्थापन नीति नहीं[/caption] मैंने पहले भी कहा है कि मुख्यधारा के अधिकांश संपादक अब बिना रीढ़ के हैं। उनकी रीढ़ सत्ता और मालिक के आगे झुकने से खत्म हो गयी है और जमीर तो इस पद पर काबिज होते ही मर गया था। जोशीमठ को लेकर 20 सितम्बर को नैनीताल हाईकोर्ट ने कहा कि भूस्खलन पर रिपोर्ट सार्वजनिक न करने के लिए सरकार की आलोचना की। मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी और जस्टिस आलोक कुमार वर्मा की पीठ ने कहा, ‘हमें कोई कारण नहीं दिखता कि राज्य को विशेषज्ञों द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट को गुप्त रखना चाहिए और जनता के सामने इसका खुलासा नहीं करना चाहिए.’ अदालत ने आगे कहा, ‘असल में उक्त रिपोर्टों के प्रसार से जनता को महत्वपूर्ण जानकारी मिलेगी और जनता को यह भरोसा होगा कि राज्य ऐसी स्थिति से निपटने के लिए गंभीर है। अदालत ने यह टिप्पणी तब की, जब जोशीमठ के भूस्खलन का अध्ययन करने वाले केंद्र सरकार के आठ संस्थानों द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट को सीलबंद लिफाफे में उसके सामने रखा गया। इस साल जनवरी में हाईकोर्ट ने एक याचिका को सुनते हुए राज्य सरकार को जोशीमठ में धंसाव होने को लेकर किए जा रहे अध्ययन में कुछ विशेषज्ञों को शामिल करने का निर्देश दिया था, लेकिन इसने पाया कि आठ महीने बाद भी सरकार ने उसके आदेश का पालन नहीं किया है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, शहर के नौ वार्डों की 868 इमारतों में दरारें पाई गईं, जबकि 181 इमारतें असुरक्षित क्षेत्र में आ गई थीं. इसके चलते 300 से अधिक परिवार विस्थापित हुए थे। दरारों की सूचना मिलने के तुरंत बाद आठ केंद्रीय सरकारी संस्थानों ने शहर की भूमि धंसने के कारणों का विश्लेषण करना शुरू किया था। सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टिट्यूट ने पाया है कि जोशीमठ में विश्लेषण किए गए 2,364 घरों में से 20 प्रतिषत ‘अनुपयोगी’ थे, 42 प्रतिशत को ‘आगे मूल्यांकन’ की जरूरत थी, 20 प्रतिशत ‘इस्तेमाल योग्य’ थे और 1 प्रतिशत को ‘ध्वस्त’ करने की जरूरत है। प्रभावितों के विस्थापन और मुआवजा की नीति अब तक भी फाइनल नहीं हुई है।