क्रान्ति भट्ट  / गोपेश्वर  उत्तराखंड , यहां ''आस्था सिर्फ धार्मिक अनुष्ठान ही नहीं जीवन्त संस्कृति हिस्सा भी है " । देवी देवताओं , प्रकृति की विविधता की घाटी उर्गम घाटी में हिमालय की अधिष्ठात्री मां नन्दा जिन्हें स्वनूल देवी के रूप में भी जाना जाता है नन्दा लोकोत्सव पर उन्हें हिमालय के बुग्यालों से मायके घर गांव आमंत्रित करने और रिगांल से बुनी पवित्र ब्रह्म कमलों से सजी छंतोलियों से स्नेह पूर्वक लाने की अद्भुत , अलौकिक पवित्र अनुष्ठान भरी , संस्कृति युक्त और सम्पन्न परम्परा है।

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नन्दा हुए हिमालय और हिमालय की सुंदर नैसर्गिक घाटी उर्गम के वंशीनारायण के समीप मैनवाखाल में मां नन्दा स्वनूल देवी के मिलन के बाद रिखडारा उडियार में रात्रि विश्राम के उपरान्त भगवती नन्दा स्वनूल देवी अष्टमी शनिवार को वंशीनारायण मुल्खर्क होते हुए फुलाणा पहुंची। जहां से भगवती नन्दा स्वनूल का मायके दिखाई देता है। अपने मायके को देख देवी स्वनूल मारे खुशी के उछल गयीं। उत्तराखंड के इलाकों मे जहां मां नन्दा की लोक जात के तहत मां नन्दा को मायके घर गांव मायके से हिमालय कैलाश विदाई किया जाता है। वहीं उर्गम घाटी में नन्दा के अनुष्ठान पर्व पर मां नन्दा स्वनूल को हिमालय के बुग्यालों से मायके आमंत्रित करने और स्नेह पूर्वक लाने की परम्परा है । सप्तमी शुक्रवार को उर्गम घाटी के लोग मां को कैलाश से आमंत्रित करने के लिए नंगे पांव मीलों चढ़ाई चढ़ कर हिमालय शिखर बुग्यालों में गये थे । संस्कृति धर्मी और उर्गम घाटी की लोक परम्परा के जानकार रघुवीर सिंह नेगी बताते हैं शनिवार को जब कैलाश से लौटे ।और मां नन्दा स्वनूल को ब्रह्म कमलों में सजा और बैठा पर ग्रामीण लाये तो हिमालय के बुग्यालों में रह रहे स्थानीय छानियों में रहने वाले लोगों मरुड़ियों ने भगवती के लिए विभिन्न प्रकार के व्यंजनों से भोग लगाया गया। यहां पर छंतोलियों को ब्रह्म कमल से सजाया जाता है । बडोई में देवमिलन के बाद स्थानीय लोगों द्वारा नन्दा स्वनूल देवी के स्वागत में जागर एवं झुमेला दांकुडी नृत्य किया जाता है। गीरा गांव होते हुए भगवती नन्दा स्वनूल देवी नन्दा मंदिर पहुंचती है। जहां पर जागर गायन किया जाता है। जातयात्री से पूछा जाता है कि कैसे आप लोग कैलाश गए? कैसा है नन्दा का कैलाश ? वहां की पुष्प वाटिका कौन रक्षक है? कैसा दिखता है नन्दी कुंड कहां से दिखता है क्या क्या दिखाई देता है मां नन्दा के ससुराल में सब कुशल मंगल है? किसने नन्दा के द्वार खोले? कौन-कौन सी पर्वत मालाएं दिखाई देती है? जिसका सम्पूर्ण वर्णन जातयात्री करता है। भूमि क्षेत्रपाल मां नन्दा स्वनूल भगवती दाणी अवतरित होती है। नन्दा मंदिर में लाटू देवता अवतरित होता है।गांवों से ककड़ी तोड़कर लाता है। मां नन्दा का प्रिय भाई है लाटू। भूमि क्षेत्रपाल घंटाकर्ण के मंदिर में पहुंचकर भगवती नन्दा स्वनूल देवी के प्रसाद ब्रह्म कमल का वितरण किया जाता है। दो दिन मायके में रहने के बाद भगवती नन्दा स्वनूल घंटाकर्ण भूमि क्षेत्र के साथ भर्की गांव पहुंचेगी, जहां से जागरों के माध्यम से भगवती नन्दा नन्दीकुंड और भगवती स्वनूल सोना शिखर के लिए विदा होगी क्यों विशेष है उर्गम घाटी की लोकजात यात्रा संस्कृति धर्मी रघुवीर सिंह नेगी ने बताया उर्गम घाटी की लोकजात यात्रा में मैनवाखाल से भगवती का आवाह्न किया जाता है जागरों के माध्यम से और माता नन्दीकुड से यहां पर पहुंचती है फिर जागरों द्वारा मां स्वनूल को सोना शिखर से बुलाया जाता है। भूमिक्षेत्र पाल घंटाकर्ण के सानिध्य में उर्गम थात एवं कौधूडिया महाराज के सानिध्य में पंचगैं पल्ला जखोला किमाणा कलगोठ द्वींग लांजी पोखनी कलगोठ की जात मैंनवाखाल में होती है । भगवती स्वनूल की जात भर्की भूमियाल के सानिध्य में भनाई बुग्याल में सम्पन्न होती है। हम चाहे आर्थिक सम्पन्नता के किसी भी शिखर पर पहुंचे ! बदलते ज़माने के साथ चाहे हमारी जीवन शैली ( लाइफ स्टाइल ) कितनी भी बदल जाय! आधुनिक हो जांय । हम चाहे कितने भी कथित मोर्डिड हों। पर अपनी भाषा , अपनी संस्कृति , अपनी परम्पराओं को सहेज कर रखते हैं । उनका पालन करते हैं। तो हमारी पहचान है याद रखें ! किसी समाज या ब्यक्ति को सिर्फ इस लिए नहीं जाना जाता है कि उसके पास कितनी पूंजी है। बल्कि इस लिए भी जाना जाता है कि उसके पास संस्कृति , भाषा और सुदृढ़ परम्पराओं की कितनी पूंजी है । नंदा स्वनूल को बुलाने गई 19 छंतोलियाँ उर्गम घाटी के संस्कृतिकर्मी रघुवीर सिंह नेगी बताते है कि उर्गम घाटी की लोक जात यात्रा में भगवती नन्दा स्वनूल को बुलाने भूमि क्षेत्र पाल घंटाकर्ण के सानिध्य में मैनवाखाल के लिए 19 छतोलियांं गई। जिनका वंशीनारायण, रिखडारा उडियार में पंचगैं की छंतोली के साथ मिलन हुआ। यहा रात्रि भर जागर गायन किया गया। सप्तमी की तिथि को मैनवाखाल में भगवती नन्दा की जात पहुँजी। जहाँ जागरों से नन्दा का आह्वान हुआ। अष्टमी की तिथि को भगवती नन्दा मायके पहुंची। देवी स्वनूल को बुलाने भर्की भूमियाल की आगवानी में फ्यूलानारायण गए। उर्गम, डुमक व पल्ला की एकएक छतोलियांं समेत 12 छतोलियांं इस जात में शामिल हुई। 23 सितम्बर को सभी छंतोलियांं अपने – अपने गांवों में ब्रह्मकमल लेकर आयी। लोकगाथाओं एवं जागरों में के अनुसार नन्दा को नन्दीकुड से तथा स्वनूल को सोना शिखर से बुलाया जाता है। यहीं पर ब्रहम कमल को छंतोलियों पर सजाया जायेगा। सभी छंतोलियों मां नन्दा मंदिर बडगिण्डा में पहुंचती है। यहा पंच भाई टपोल्या मेला कमेटी जागरियों द्वारा जागरों में पूछा जाता है कि वहाँ जात यात्री ने क्या देखा कैसा दृश्य था कैसा पर्वत कैसा रास्ता था सबका उसी भाषा में जबाब देते हैं जो बड़ा मार्मिक वर्णन होता है। फिर छंतोलियों नन्दा मंदिर पहुचती है और लाटू अवतरित होता है। घंटाकर्ण समेत सभी देवता अवतरित होते है घंटाकर्ण के मंदिर में पहुंचकर ब्रहम कमल प्रसाद के रूप में बांटा जाता है। इस अवसर पर राजेन्द्र रावत अध्यक्ष मेला कमेटी उर्गम घाटी कुंवर सिंह चौहान गणियां, रघुबीर नेगी कोषाध्यक्ष, कुन्दन सिंह रावत, शिव सिंह चौहान, कुंवर सिंह नेगी, जागरवेता महावीर राणा, पश्वा भूमिक्षेत्र पाल हीरा सिंह चौहान, पश्वा दाणी शंकर सिंह चौहान, ढोलवादक दीपक, गोपाल, प्रेम, पश्वा विश्वकर्मा रामचंद्र, अनूप नेगी प्रधान ल्यांरी थैणा, मिंकल प्रधान उर्गम, पुष्पा देवी गोदाम्बरी देवी हरकी देवी समेत सैकड़ों लोग उपस्थित रहे।