जिस राज्य के लड़े, मरे, घर बार तक भूला दिया आज उसी राज्य में जनभावनाओं को छला जा रहा है। आज छोटी-छोटी माँगों के लिए भी जनता को गिड़गिड़ाना पड़ता है लेकिन जिम्मेदारों पर फर्क नहीं पड़ता, मैंने बहुत पत्र लिखे, लेकिन न ये सुनने को तैयार और न कुछ करने को तैयार….पीड़ा भरे ये शब्द थे ताकि सनद रहे कार्यक्रम के मुख्य वक्ता और उत्तराखंड राज्य चिन्हित आंदोलनकारी 90 वर्षीय इंद्र सिंह चौहान जी के थे। क्यार्क गाँव निवासी चौहान रामपुर तिराहा काण्ड के चश्मदीद थे। बोलते है उस दिन जो देखा वो वीभत्स और अमानवीय था। हम बच गए लेकिन हृदय में आज भी ज्वाला उमड़ती है। आज उम्र के इस पड़ाव में विस्मृति जरूर हो रही है, लेकिन मुझे संघर्ष के वो दिन याद है। लोगों ने कष्ट और भूख सहकर भी आन्दोलन नहीं छोड़ा। राज्य बना तो उम्मीद जगी। लेकिन सरकार यहाँ की भौगोलिक स्थिति के अनुसार नीति नहीं बना पाई।
प्रकृति संस्था द्वारा ताकि सनद रहे का 17 वाँ आयोजन बसुकेदार में किया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ मुजफ्फरनगर कांड के शहीदों को श्रद्धाजंलि देकर हुआ। कार्यक्रम में राज्य चिन्हित आन्दोलनकारी इंद्र सिंह चौहान, मनवर सिंह नेगी और वरिष्ठ पत्रकार अनसूया प्रसाद मलासी को शाॅल ओढ़ाकर सम्मानित किया गया। इस कर्यक्रम में राज्य आन्दोलन के दौरान प्रकाशित पोस्टर, पम्पलेट, और पर्चो एवं आंदोलन से जुड़े साहित्य की प्रदर्शनी लगाई गई।
कार्यक्रम में पधारे चिन्हित राज्य आंदोलनकारी मनवर सिंह नेगी ने कहा कि इन 23 सालों में उत्तराखंड शहीदों की मांग वाला राज्य नहीं बन पाया यह दुर्भाग्यपूर्ण है। सरकारों ने शहादत भूला दी, जनता का संघर्ष भूला दिया।
राज्य आंदोलन में सक्रिय वरिष्ठ पत्रकार अनसूया प्रसाद मलासी ने कहा आज 23 साल बाद भी गैरसैंण राजधानी, मूल निवास पर चुप्पी है, हाल ही में घटा अंकिता हत्याकांड सरकारी मौन का एक और उदाहरण है। जनता अपनी सरकार को उम्मीदों के लिए देखती है लेकिन उत्तराखंड में ये क्यों संभव नहीं हो पा रहा। राज्य आन्दोलन के दौरान घटे गोलीकांडों, अत्याचारों की सुनवाई आज तक नहीं हो पाई है, अपराधी बेखौफ घूम रहे है।
पूर्व प्रधान डालसिंगी मोहन सिंह भण्डारी प्रकृति संस्था की पहल को समाजिक जागृति का पर्याय बताते हुए कहा कि इस कार्यक्रम से नई पीढ़ी तक राज्य आंदोलन की संघर्ष गाथा पहुंची है, राज्य कितने जतन, संघर्ष से मिला उनका यह जानना जरूरी है।
वरिष्ठ नागरिक सुदर्शन सिंह भंडारी ने ताकि सनद रहे कार्यक्रम को शहीदों के प्रति सच्ची श्रद्धाजंलि बताते हुए कहा, आज क्षेत्रीय जनभावनाऐ दबा दी गई है, यूकेडी जैसे क्षेत्रीय दलों को हाशिए पर लाने का ही परिणाम है कि उत्तराखंड में ही उत्तराखंड नहीं बच पा रहा है।
इस दौरान निबंध और चित्रकला प्रतियोगिता आयोजित की गई। चित्रकला प्राथमिक वर्ग में आयुष, अदिति, आर्यन, जूनियर वर्ग में वैष्णवी, खुशी, अंजलि, सीनियर वर्ग में श्रेया, रागिनी, निबंध प्रतियोगिता के जूनियर वर्ग में सृष्टि, समीक्षा, इशिका, सीनीयर वर्ग में प्राचीन भण्डारी ने प्रथम, द्वितीय व तृतीय स्थान प्राप्त किया।
कार्यक्रम का संचालन बसुकेदार के वरिष्ठ पत्रकार भानुप्रकाश भट्ट ने किया। इस अवसर पर चौकी प्रभारी दर्शन सिंह बिष्ट, होमगार्ड मनोज भण्डारी, मनमोहन भट्ट, आशीष सेमवाल, प्रेम सिंह भण्डारी, भगवती प्रसाद, नवीन सजवाण, बुद्धिबल्लभ भट्ट, अनुरूद्ध भट्ट, भ्यूराज सिंह, अंकित चौहान, गोपाल सिंह नेगी, नारायण सिंह रावत, संदीप भट्ट, चंदू गौड़, विजया भण्डारी, रीना भण्डारी, कैलाश भण्डारी, हर्षवर्धन चौहान और प्रकृति संस्था से गजेंद्र रौतेला, ललिता रौतेला, दीपक बेंजवाल उपस्थित हुए।
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ताकि सनद रहे : उत्तराखंड राज्य मिला लेकिन सपने रहे अधूरे, जनता की आँखों में विश्वासघात का दर्द
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दीपक बेंजवाल / भानुप्रकाश भट्ट
दस्तक पहाड़ न्यूज / बसुकेदार।
जिस राज्य के लड़े, मरे, घर बार तक भूला दिया आज उसी राज्य में जनभावनाओं को छला जा रहा है। आज छोटी-छोटी माँगों के लिए भी जनता को गिड़गिड़ाना पड़ता है लेकिन
जिम्मेदारों पर फर्क नहीं पड़ता, मैंने बहुत पत्र लिखे, लेकिन न ये सुनने को तैयार और न कुछ करने को तैयार....पीड़ा भरे ये शब्द थे ताकि सनद रहे कार्यक्रम के
मुख्य वक्ता और उत्तराखंड राज्य चिन्हित आंदोलनकारी 90 वर्षीय इंद्र सिंह चौहान जी के थे। क्यार्क गाँव निवासी चौहान रामपुर तिराहा काण्ड के चश्मदीद थे।
बोलते है उस दिन जो देखा वो वीभत्स और अमानवीय था। हम बच गए लेकिन हृदय में आज भी ज्वाला उमड़ती है। आज उम्र के इस पड़ाव में विस्मृति जरूर हो रही है, लेकिन मुझे
संघर्ष के वो दिन याद है। लोगों ने कष्ट और भूख सहकर भी आन्दोलन नहीं छोड़ा। राज्य बना तो उम्मीद जगी। लेकिन सरकार यहाँ की भौगोलिक स्थिति के अनुसार नीति नहीं
बना पाई।
प्रकृति संस्था द्वारा ताकि सनद रहे का 17 वाँ आयोजन बसुकेदार में किया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ मुजफ्फरनगर कांड के शहीदों को श्रद्धाजंलि देकर हुआ।
कार्यक्रम में राज्य चिन्हित आन्दोलनकारी इंद्र सिंह चौहान, मनवर सिंह नेगी और वरिष्ठ पत्रकार अनसूया प्रसाद मलासी को शाॅल ओढ़ाकर सम्मानित किया गया। इस
कर्यक्रम में राज्य आन्दोलन के दौरान प्रकाशित पोस्टर, पम्पलेट, और पर्चो एवं आंदोलन से जुड़े साहित्य की प्रदर्शनी लगाई गई।
कार्यक्रम में पधारे चिन्हित राज्य आंदोलनकारी मनवर सिंह नेगी ने कहा कि इन 23 सालों में उत्तराखंड शहीदों की मांग वाला राज्य नहीं बन पाया यह दुर्भाग्यपूर्ण
है। सरकारों ने शहादत भूला दी, जनता का संघर्ष भूला दिया।
राज्य आंदोलन में सक्रिय वरिष्ठ पत्रकार अनसूया प्रसाद मलासी ने कहा आज 23 साल बाद भी गैरसैंण राजधानी, मूल निवास पर चुप्पी है, हाल ही में घटा अंकिता
हत्याकांड सरकारी मौन का एक और उदाहरण है। जनता अपनी सरकार को उम्मीदों के लिए देखती है लेकिन उत्तराखंड में ये क्यों संभव नहीं हो पा रहा। राज्य आन्दोलन के
दौरान घटे गोलीकांडों, अत्याचारों की सुनवाई आज तक नहीं हो पाई है, अपराधी बेखौफ घूम रहे है।
पूर्व प्रधान डालसिंगी मोहन सिंह भण्डारी प्रकृति संस्था की पहल को समाजिक जागृति का पर्याय बताते हुए कहा कि इस कार्यक्रम से नई पीढ़ी तक राज्य आंदोलन की
संघर्ष गाथा पहुंची है, राज्य कितने जतन, संघर्ष से मिला उनका यह जानना जरूरी है।
वरिष्ठ नागरिक सुदर्शन सिंह भंडारी ने ताकि सनद रहे कार्यक्रम को शहीदों के प्रति सच्ची श्रद्धाजंलि बताते हुए कहा, आज क्षेत्रीय जनभावनाऐ दबा दी गई है,
यूकेडी जैसे क्षेत्रीय दलों को हाशिए पर लाने का ही परिणाम है कि उत्तराखंड में ही उत्तराखंड नहीं बच पा रहा है।
इस दौरान निबंध और चित्रकला प्रतियोगिता आयोजित की गई। चित्रकला प्राथमिक वर्ग में आयुष, अदिति, आर्यन, जूनियर वर्ग में वैष्णवी, खुशी, अंजलि, सीनियर वर्ग में
श्रेया, रागिनी, निबंध प्रतियोगिता के जूनियर वर्ग में सृष्टि, समीक्षा, इशिका, सीनीयर वर्ग में प्राचीन भण्डारी ने प्रथम, द्वितीय व तृतीय स्थान प्राप्त
किया।
कार्यक्रम का संचालन बसुकेदार के वरिष्ठ पत्रकार भानुप्रकाश भट्ट ने किया। इस अवसर पर चौकी प्रभारी दर्शन सिंह बिष्ट, होमगार्ड मनोज भण्डारी, मनमोहन भट्ट,
आशीष सेमवाल, प्रेम सिंह भण्डारी, भगवती प्रसाद, नवीन सजवाण, बुद्धिबल्लभ भट्ट, अनुरूद्ध भट्ट, भ्यूराज सिंह, अंकित चौहान, गोपाल सिंह नेगी, नारायण सिंह रावत,
संदीप भट्ट, चंदू गौड़, विजया भण्डारी, रीना भण्डारी, कैलाश भण्डारी, हर्षवर्धन चौहान और प्रकृति संस्था से गजेंद्र रौतेला, ललिता रौतेला, दीपक बेंजवाल
उपस्थित हुए।