दस्तक पहाड न्यूज  / अगस्त्यमुनि नई दिल्ली के विज्ञान भवन में 69वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार समारोह का आयोजन किया गया है। इसमें उत्तराखंड की शॉर्ट फिल्म ‘पाताल ती’ को बेस्ट सिनेमेटोग्राफी का अवॉर्ड दिया गया। इसके अलावा ‘एक था गांव’ को अंतिम मिश्रित ट्रैक का री-रिकॉर्डिस्ट के तहत बेस्ट ऑडियोग्राफी के पुरस्कार से नवाजा गया। हालांकि, 69वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार की घोषणा पहले ही हो चुकी थी, लेकिन आज यानी 17 अक्टूबर सभी विजेताओं को ये अवॉर्ड दिए गए।

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दादा साहब फाल्के पुरस्कार सिनेमा में भारत का सर्वोच्च पुरस्कार है और सूचना और प्रसारण मंत्रालय द्वारा स्थापित संगठन , फिल्म महोत्सव निदेशालय द्वारा प्रतिवर्ष राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार समारोह में प्रदान किया जाता है। इस पुरस्कार की पहली प्राप्तकर्ता देविका रानी थीं, जिन्होंने इसे 1969 में 17वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार के अवसर पर प्राप्त किया था। दादा साहब फाल्के को 'भारतीय सिनेमा का पितामह' कहा जाता है । उन्होंने 1913 में भारत की पहली पूर्ण लंबाई वाली फीचर फिल्म राजा हरिश्चंद्र बनाई । इसलिए, दादा साहब फाल्के की स्मृति में, भारत सरकार ने 1969 में दादा साहब फाल्के पुरस्कार शुरू किया। प्राप्तकर्ताओं को उनके "भारतीय सिनेमा के विकास में उत्कृष्ट योगदान" के लिए सम्मानित किया गया है। दादा साहब फाल्के पुरस्कार के विजेताओं का चयन भारतीय फिल्म उद्योग की प्रतिष्ठित हस्तियों की एक समिति द्वारा किया जाता है। आज दिए गए अवॉर्ड (National Film Awards) 69वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारोंकी सूची में लघु फिल्म ‘पाताल ती’ को बेस्ट सिनेमेटोग्राफी (Best Cinematography) में शामिल किया गया था। इस फिल्म के निर्माता और निर्देशक संतोष रावत हैं। जबकि, सिनेमेटोग्राफर बिट्टू रावत हैं। वहीं, बेस्ट नॉन फीचर फिल्म (Best Non Feature Film) के लिए सृष्टि लखेड़ा की ‘एक था गांव’ को चुना गया था। जिन्हें आज विज्ञान भवन में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने पुरस्कृत किया है। बेस्ट सिनेमेटोग्राफर बिट्टू 'पाताल ती' शॉर्ट फिल्म 'पाताल ती' की योजना कोविड लॉकडाउन के दौरान बनी थी। यह फिल्म अनेक राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों में पुरस्कृत हो चुकी है। भोटिया बोली में बनी फिल्म 'पाताल ती' हिमालय के शिखरों का मौजूद पवित्र जल अपने दादा के लिए लाने की एक पोते की जद्दोजहद दिखाती है। फिल्म के सिनेमेटोग्राफर बिट्टू की शुरुआती पढ़ाई जीआईसी चोपता व स्नातक की पढ़ाई डीबीएस पीजी कॉलेज, दून में हुई। 'पाताल ती' के सिनेमेटोग्राफर बिट्टू रावत और इसके निर्देशक संतोष रावत अच्छे दोस्त हैं। लॉकडाउन के दौरान जब बिट्टू रावत मुंबई से वापस लौटे और चोपता में हार्डवेयर का काम करने लगे। इसी दौरान संतोष ने उनसे फिल्म पर चर्चा की। फिल्म का विषय चुनौतीपूर्ण था। फिल्म के लिए आठ दिन के शूट के लिए दस दिन की ट्रैकिंग उच्च हिमालय में की गई। मलारी, रुद्रनाथ आदि जगहों में बहुत कम संसाधनों के साथ काम किया। बिट्टू के मुताबिक, हर जगह पैदल जाने की वजह से वह भारी उपकरण साथ नहीं ले जा सकते थे। फिल्म बनाने के लिए मुख्यतः प्रयुक्त किए जाने वाले भारी भरकम एरि एलेक्सा कैमरे की जगह ब्लैक मैरी पॉकेट कैमरे का प्रयोग किया गया। बिट्टू ने इससे पहले एक फिल्म गुंजा में भी सहायक सिनेमेटोग्राफर का काम किया था, उस फिल्म को भी नेशनल अवार्ड मिल चुका है 'पाताल ती' में उत्तराखंड के युवा फिल्मकारों के शानदार एफर्ट को देखते हुए ही ऑस्कर अवार्ड विजेता साउंड डिजाइनर रेसुल पुकुटी ने इस फिल्म की साउंड डिजाइन व एडिटिंग की। इस फिल्म के स्तर का ग्राफ ओर भी बढ़ गया। निर्देशक संतोष रावत, निर्माता गजेन्द्र रौतेला ने बिट्टू रावत को राष्ट्रीय पुरस्कार के लिए नाम आने की सूचनाशदी। बिट्टू ने सिनेमेटोग्राफर की बारिकियां एफटीआई पुणे एलुमनाई एएस कनाल से सीखी। रुद्रप्रयाग के जाखणी चोपता निवासी बिट्टू रावत के पिता यशपाल रावत की हार्डवेयर की दुकान है। मां सूरमा देवी, बहनें मोनिका, मधु, भाई अमित, पत्नी ममता कावयह बेहद परिवार साधारण है। वह 'सत्यमेव जयते' के सिनेमेटोग्राफर शांतिभूषण राय और साकेत सौरभ के असिस्टेंट रह चुके हैं। प्वाइजन और भौंकाल सीरीज की सेकेंड यूनिट के सिनेमेटोग्राफर रहे हैं ‘एक था गांव’ फिल्म (National Film Awards) बेस्ट नॉन फीचर फिल्म के लिए उत्तराखंड की ‘एक था गांव’ फिल्म का चयन किया गया था। ‘एक था गांव’ फिल्म खाली होते पहाड़ों की पृष्ठभूमि पर बनाई गई है। इस फिल्म में पहाड़ों की मौजूदा हकीकत के साथ घोस्ट विलेज यानी खाली होते गांवों की कहानियों को दिखाया गया है। इसके अलावा इस फिल्म में पलायन और पहाड़ से जुड़े दूसरे मुद्दों को भी बखूबी पर्दे पर उतारा गया है। एक था गांव फिल्म को कीर्तिनगर के सेमला गांव की सृष्टि लखेड़ा ने बनाया है। राष्ट्रपति ने निर्देशक सृष्टि लखेड़ा को सराहा (National Film Awards) राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा कि ‘मुझे खुशी है कि महिला फिल्म निर्देशक सृष्टि लखेरा ने ‘एक था गांव’ नामक अपनी पुरस्कृत फिल्म में एक 80 साल की वृद्ध महिला की संघर्ष करने की क्षमता का चित्रण किया है। महिला चरित्रों के सहानुभूतिपूर्ण और कलात्मक चित्रण से समाज में महिलाओं के प्रति संवेदनशीलता और सम्मान में वृद्धि होगी।’ पलायन की पीड़ा को देते हुए बनाई फिल्म उत्तराखंड में पलायन की पीड़ा को देखते हुए सृष्टि ने यह फिल्म बनाई। बताया, पहले उनके गांव में 40 परिवार रहते थे और अब पांच से सात लोग ही बचे हैं। लोगों को किसी न किसी मजबूरी से गांव छोड़ना पड़ा। इसी उलझन को उन्होंने एक घंटे की फिल्म के रूप में पेश किया है। फिल्म के दो मुख्य पात्र हैं। 80 वर्षीय लीला देवी और 19 वर्षीय किशोरी गोलू।