गुणानंद जखमोला / उत्तराखंड  दस्तक पहाड न्यूज। - एचएनबी से लेकर डीयू में कालेज के प्रथम वर्ष के छात्रों के भले ही सेमेस्टर वन के पेपर की कोई डेट नहीं आई हो, लेकिन विश्व की सबसे तेज-तर्रार यूनिवर्सिटी और सबसे अग्रणी राज्यों में शुमार उत्तराखंड की श्रीदेव सुमन यूनिवर्सिटी 20 नवम्बर से प्रथम सेमेस्टर की परीक्षाएं आयोजित करने जा रहा है। इसके लिए समर्थ पोर्टल पर आवेदन करने की बात है। इस पोर्टल को लेकर सरकार और उच्च शिक्षा विभाग बेहद संजीदा है। उन्हें बच्चों के भविष्य से कहीं अधिक

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समर्थ पोर्टल की सफलता का श्रेय लेने की चिन्ता सता रही है। अपने आका को बताना है कि देखो समर्थ को समर्थ कर दिखाया। न दिवाली की चिन्ता, न छठ पूजा की टेंशन। टेंशन है तो राजस्थान, एमपी, छत्तीसगढ़ के चुनाव की। कोई इनसे पूछे कि जब अगस्त तक भी कालेजों में प्रथम वर्ष के छात्रों के दाखिले लिए जा रहे थे तो क्या परीक्षा के लिए 90 दिन पढ़ाई की शर्त पूरी हो गयी? कालेजों में कितने दिन पढ़ाई हुई। दिवाली और छठ पूजा के लिए दूरस्थ गांव गये स्टूडेंट्स किस तरह से समर्थ पोर्टल पर परीक्षा के लिए आवेदन करेंगे? क्या उत्तराखंड शिकागो, एलए या लंदन बन गया, जहां कोने-कोने में कनेक्टिविटी मौजूद है। अब तो इसरायल भी युद्ध में बिजी है नही ंतो समर्थ के लिए उनकी अत्याधुनिक संचार तकनीक को लिया जा सकता था। पहले दाखिले के समय समर्थ पोर्टल खुला, बंद हुआ, फिर खुला और अब फिर वही ड्रामा। क्या सिर्फ यही चिन्ता है कि समर्थ पोर्टल हिट हो जाए? या यह चिन्ता भी है कि स्टूडेंट्स का क्या होगा? जब उन्हें पढ़ाया ही पूरा नहीं गया तो फिर एग्जाम कैसे देंगे? और तो और अभी फर्स्ट ईयर के इंटरनल ही नहीं हुए हैं। ऐसे में यशोगान के लिए शिक्षा को भी दांव पर लगाना कहां तक उचित है? यह सुनिश्चित होना चाहिए कि वार्षिक कलेंडर प्रभावित न हो, लेकिन फर्स्ट ईयर के पहले समेस्टर को दिसम्बर से पहले करना कितना उचित है? यह खिलवाड़ बंद होना चाहिए। हंसी की बात यूनिवर्सिटी के एग्जाम शेडयूल को देखकर आती है कि 10 नवम्बर को जारी डेटशीट में ऊपर पत्रांक संख्या के साथ में अतिगोपनीय लिखा है और नीचे सभी न्यूजपेपर, कालेजों और दुनिया जहां को सूचना देने की बात कही गयी है। हद है। विश्वविद्यालय के एग्जाम कंट्रोलर ने पता नहीं बिना पढ़े ही साइन कर दिये होंगे क्या? उच्च शिक्षा को मजाक मत बनाओ। पहले ही उत्तराखंड में उच्च शिक्षा बदहाल है। शिक्षा की क्वालिटी में सुधार करो, न कि आकाओं को खुश करने के लिए छात्रों को बलि का बकरा बनाओ।