अनोखी है बाबा मद्यमहेश्वर के कपाट बंद होने की प्रक्रिया, यहाँ ब्रह्म मुहूर्त में क्यों बजती है ‘भन्यूळ’, कौन है देवता के बारीदार और थौर-भण्डारी
1 min read22/11/2023 4:50 pm
अभिषेक पंवार ‘गौण्डार- मद्यमेश्वर ‘
दस्तक पहाड न्यूज। चौखम्भा पर्वत के अंचल में सुरम्य बुग्याल की गोद में स्थित द्वितीय केदार श्री मद्यमेश्वर धाम के कपाट इस वर्ष अग्रिम छः माह शीतकाल के लिए आज 22 नवम्बर, 6 प्रविष्टे मार्गशीर्ष/मंगशीर, को प्रातः 8:25 बजे विधि- विधान से पूर्व पौराणिक परम्परानुसार बंद कर दिए गये हैं। कपाट बंद की प्रक्रिया में सर्वप्रथम धाम के क्षेत्ररक्षक श्री धौला क्षेत्रपाल/ श्वेत-धवल के कपाट विगत शनिवार 18 नवम्बर को बंद कर दिए गये।
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प्रधान पुजारी श्री बागेश लिंग द्वारा प्रातःकाल में ही भगवान की समाधि पश्चात् वैदिक मंत्रोच्चार के साथ भोग- मूर्तियों का अभिषेक एंव पूजा-अर्चना की गयी। रुद्राभिषेक एंव महाभिषेक के साथ बालभोग एंव भोग अर्पित किया गया। तदोपरांत भोग-मूर्तियों को चल विग्रह उत्सव डोली में स्थापित किया गया। अपने पौराणिक ताम्र पात्रों का निरीक्षण करते हुए डोली प्रातः 8:45 बजे धाम से प्रस्थान हुई। इस अवसर पर वेदपाठी आचार्य श्री मृत्युञ्जय हीरेमठ, श्री यशोधर प्रसाद मैठाणी,थौर-भण्डारी श्री मदन सिंह पंवार और श्री विशाम्बर सिंह पंवार, सरपंच श्री शिशुपाल सिंह पंवार, समस्त पञ्च गौण्डारी कार्यवारियान, मंदिर सुपरवाइजर श्री युद्धवीर पुष्वाण, मंदिर समिति के कर्मचारियों सहित अनेक श्रद्धालु एंव भक्तजन मौजूद रहे। इस वर्ष लगभग 12777 तीर्थ -यात्रियों ने मद्यमेश्वर धाम के दर्शन किए जो कि अब तक का रिकॉर्ड यात्रा -दर्शन रहा है।
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- प्रथम रात्रि पड़ाव हेतु चल विग्रह आज कूनचट्टी, मैखम्भाचट्टी, नानू, खडाराखाल एंव वनतोली होते हुए गौण्डार पहुँची।
- • द्वितीय रात्रि पड़ाव -23 नवम्बर, माता राकेश्वरी मंदिर (राँसी)
- तृतीय रात्रि पड़ाव -24 नवम्बर, श्री गिरिजेश्वर स्थान,गिरिया गाँव
- अंतिम पड़ाव एवं शीतकालीन गद्दीस्थल -25 नवम्बर, श्री ओंकारेश्वर मंदिर, ऊखीमठ।
तद्नुसार द्वितीय केदार भगवान श्री मध्यमहेश्वर की के दर्शन शीतकाल में श्री ओंकारेश्वर मंदिर में हो सकेंगे।
श्री मद्यमेश्वर धाम के पट्/कपाट बंद होने का विधान-
अश्विन मास की नवरात्रियों में विजयादशमी के दिन श्री मद्यमेश्वर धाम के कपाट बंद करने का मूहुर्त्त अथवा तिथि श्री ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ में हक्-हक्कूकधारी वेदपाठी आचार्यों द्वारा घोषित की जाती है। इस अवसर पर रावल जी, प्रधान पुजारीगण, मंदिर अधिकारी /मंदिर कर्मचारी, समस्त पञ्च गौण्डारी कार्यवारियान, पञ्चगाई गाँवों के हक्-हक्कूकधारी लोग एवं प्रशासन टीम उपस्थित रहते हैं। उक्त तिथि को इस अनुसार घोषित कर दिया जाता है कि मंगशीर/मार्गशीर्ष माह की न्यूनतम दो पूजा श्री मद्यमेश्वर धाम में ही सम्पन्न हों। यह कपाट बंद करने की पौराणिक परम्परा है। इस घोषित तिथि के लिखित रूप को ‘दिनपट्टा’ कहा जाता है।
इस प्रकार धाम में नियुक्त प्रधान पुजारी और ‘बारीदारों’ द्वारा विधिवत् बिभूत के चौखट टिक्टे बनाये जाते हैं, यह कार्य कपाट बंद होने के एक सप्ताह पूर्व से प्रारंभ किया जाता है। कार्तिक मास में धौला क्षेत्रपाल से मासी लाई जाती है जिसे सूखा-कूटकर धूप पूजा एवं समाधि हेतु प्रयोग किया जाता है। पट् बंद हेतु ब्रह्ममकमल, भीमराज पुष्प, मौसमी फल, चावल,आधा कूटी हुई धान आदि सामाग्री भी यथास्थान पर लायी जाती है जिनका प्रयोग स्वयं -भू लिंग की समाधी के दौरान किया जाता है। समाधी हेतु सर्वप्रथम भगवान के स्वंभूलिंग पर घी पिघलाकर लगाया जाता है। तत्पश्चात् भगवान की समाधी में ब्रह्ममकमल, भीमराज पुष्प, मौसमी फल, चावल इसके साथ आधा कूटी हुई धान डाली जाती है जिसे संयुक्त रूप से ‘ख्वीड़ा’ कहा जाता है। उक्त के क्रम में ऊपर से विशेष रेशमी कपड़े जिसे ‘म्यखळा’ कहा जाता है, से ढकाया जाता है। इस प्रकार वैदिक मंत्रोच्चार के साथ भगवान श्री मद्यमहेश्वरजी स्वंभूलिंग को अग्रिम छः माह के लिए सम्पूर्ण समाधी दी जाती है। पट्-बंद का समस्त कार्यक्रम प्रात: ब्रह्म – मूहुर्त्त से ही शुरु हो जाता है। सर्वप्रथम ‘भन्यूळ’ (प्रातःकाल में घण्टी के बजाने का संकेत) के माध्यम से समस्त देवी-देवताओं को जागृत किया जाता है।
इस दिवस स्वयं -भू लिंग की समाधि पश्चात् रुद्राभिषेक, महाभिषेक, बालभोग, पूजा भोग ,आरती एंव समस्त पूजाएँ प्रातःकाल में ही सम्पन्न कर दी जाती हैं तत्पश्चात् भोग-मूर्तियों को अलग-अलग रेशमी कपड़े में लपेट कर भगवान की चल विग्रह उत्सव डोली में सुसज्जित कर दिया जाता है।
सभी निशानों को सज्जित कर दिया जाता है और इस प्रकार शीतकालीन कपाट बंद की तैयारी अपने अंतिम चरण में रहती है। अब भगवान मद्यमहेश्वर अपने शीतकालीन आवास के लिए प्रस्थान होते हैं। सुबह 9:00 बजे से पूर्व तक चल विग्रह उत्सव डोली धाम से शीतकाल गद्दीस्थल के लिए प्रस्थान हो जाती है। इसके पश्चात् थौर-भण्डारियों द्वारा धाम के समस्त गोपनीय कपाट/पट्- बंद की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। इस दौरान धाम में अन्य लोगों का विचरण वर्जित रहता है।
पट् बंद के समय प्रथम रात्रि पडा़व गौण्डार गाँव पड़ता है। द्वितीय रात्रि पडा़व रांसी – माँ राकेश्वरी मंदिर और तीसरा रात्रि पडा़व गिरिया गाँव एंव अंतिम पड़ाव भगवान का शीतकालीन आवास श्री ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ होता है। इसके अतिरिक्त प्रत्येक बारह वर्ष पश्चात् भगवान की डोली रात्रि पड़ाव के लिए गडगू गाँव पहुँचती है जहाँ जाखराजा, बाबा मद्यमहेश्वर का भव्य स्वागत करते हैं। यहाँ पर गडगूवासी ‘पयेरियां’ भगवान के स्वागत में एक अहम भूमिका निभाते हैं, अगले दिवस डोली यहाँ से अपने शीतकालीन स्थल श्री ओंकारेश्वर मंदिर की ओर अग्रसर होती है। यहाँ भव्य त्रि-दिवसीय मद्यमेश्वर मेले का आयोजन किया जाता है।
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