गुणानंद जखमोला / देहरादून  सीएम धामी भी प्रदेश की उसी राजनीति का शिकार बनने की ओर तेजी से बढ़ रहे हैं, जिस राजनीति के चलते कई सीएम की कुर्सी उनके नीचे से सरक गयी। सीएम के इर्द-गिर्द के सिपहसलारों ने उन्हें जनता की तर्ज पर रामभरोसे छोड़ दिया है। आलम यह है कि विभागीय सिपहसलार कौन है और आदेश सीएम को देने पड़ रहे हैं कि सड़कों के गड्ढे भरो, नहीं तो नप जाओगे। प्रभारी सिपहसलार कौन है और खुद जाना पड़ रहा है सिल्कयारा। गली-गली, शहर-शहर और देश विदेश में रोड शो करे सीएम और विदेशों की सैर करें अन्य

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सिपहसलार और उनके समर्थक विधायक। यानी पुरानी कहावत उन पर चरितार्थ हो रही है कि कहां नीती-कहां माणा, एक श्याम सिंह पटवारी को कहां-कंहा जाणा। कुछ सिपहसलार चुप्पी साधे तमाशा देख रहे हैं और कुछ तो अपनी ही चाल अलग चल रहे हैं। पता नहीं कौन सी खिचड़ी पक रही है। सीएम वन मैन आर्मी की तर्ज पर सभी मुद्दों पर अकेले ही लड़ रहे हैं। हां, कहीं-कहीं एक नाजुक सिपहसलार सीएम के साथ नजर आ जाता है। वह भी इसलिए कि शायद लोकसभा का टिकट मिल जाए। जनता के बीच सीधा संदेश जा रहा है कि सीएम धामी अकेले दम पर ही प्रदेश को 2025 में उत्तराखंड को अग्रणी राज्य बनाने की दिशा में काम कर रहे हैं। शोले के ठाकुर की तर्ज पर उनका कोई लेफ्ट या राइट हैंड नहीं है। यह भी हो सकता है कि सीएम धामी के विरोधी सोच रहे होंगे कि ये चल गया तो लंबा चलेगा, इसलिए खींच दो पैरों के नीचे से लाल कारपेट। जो भी है, सीएम धामी एक साथ कई मोर्चों पर लड़ रहे हैं। देखें, वह राणा सांगा की तर्ज पर कितने जख्म खाते हैं?