द्वारिका में डूबने के बाद इस पवित्र जगह प्रकट हुए थे भगवान श्रीकृष्ण, उत्तर द्वारिका के नाम से प्रसिद्ध है यह मंदिर
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03/12/20237:33 am
दस्तक पहाड न्यूज / यात्रा परिक्रमा
उत्तराखंड को देवभूमि कहा जाता है। यहां नाग के कई मंदिर हैं। हम आपको दर्शन करा रहे हैं सेम मुखेम नागराजा के। यह एक प्रसिद्ध नागतीर्थ है, जो कि उत्तराखंड में पांचवे धाम के रूप में विख्यात है। सेम मुखेम नागराज उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल जिला में स्थित एक प्रसिद्ध नागतीर्थ है। श्रद्धालुओं में यह सेम नागराजा के नाम से प्रसिद्ध है। मान्यता है कि द्वारिका डुबने के बाद श्री कृष्ण यहां नागराज के रूप मे प्रकट हुए थे। इस मंदिर का सुंदर द्वारा 14 फुट चौड़ा ओर 27 फुट ऊंचा है। इस मंदिर में नागराज फन फैलाये हैं और भगवान कृष्ण नागराज के फन के ऊपर वंशी की धुन में लीन हैं।
द्वापर युग की बतायी जाती है शिला
मन्दिर में प्रवेश के बाद नागराजा के दर्शन होते हैं। मन्दिर के गर्भगृह में नागराजा की स्वयं भू शिला है। ये शिला द्वापर युग की बतायी जाती है। मन्दिर के दांयी तरफ गंगू रमोला के परिवार की मूर्तियां स्थापित की गयी हैं। सेम नागराजा की पूजा करने से पहले गंगू रमोला की पूजा की जाती है। यह माना जाता है कि इस स्थान पर भगवान श्री कृष्ण कालिया नाग का उधार करने आये थे। इस स्थान पर उस समय गंगु रमोला का अधिपत्य था, श्री कृष्ण ने उनसे यंहा पर कुछ भू भाग मांगना चाहा लेकिन गंगु रमोला ने यह कह के मना कर दिया कि वह किसी चलते फिरते राही को जमीन नही देते। फिर श्री कृष्ण ने अपनी माया दिखाई, जिसके बाद गंगु रमोला ने शर्त के साथ कुछ भू भाग श्री कृष्ण को दे दिया। जिस शर्त के अनुसार एक हिमा नाम की राक्षस का वध किया।
उत्तर द्वारिका के नाम से प्रसिद्ध है सेम मुखेम मंदिर
मंदिर के पुजारी बताते है यह स्थान उत्तर द्वारिका के नाम से प्रसिद्ध है। इसका केदारखंड के अध्याय 6 में वर्णन है। द्वापर युग से इसकी मान्यता है। यहां पर जो भी भक्तजन आते हैं, जैसे चर्म रोग हो, किसी प्रकार के दोष हैं, कालसर्प दोष है उसकी पूजा करके दोष समाप्त होता है। यहां पर पितृदोष कालसर्प योग दोष का निवारण भी होता है।
गंगू रमोला
द्वारिका छोड़कर कालिया नाग को अपने दर्शन दिए
यह भी मान्यता है कि द्वापर युग मे भगवान श्रीकृष्ण की बालरूप में एक दिन उनकी गेंद यमुना नदी में गिरी। इस नदी में कालिया नाग निवास करता था।। जब भगवान श्रीकृष्ण गेंद लेने के लिए नदी में उतरे तो कालिया नाग ने उन पर आक्रमण किया, श्रीकृष्ण ने उसका सामना किया और कालिया नाग हार गया। तब भगवान ने कालिया नाग को वहां से भागकर सेम मुखेम में जाने को कहा, कालिया नाग ने उनसे सेम मुखेम में दर्शन देने की विनती की । अंत समय मे भगवान कृष्ण ने द्वारिका छोड़कर उत्तराखण्ड के रामोलागढ़ी में आकर कालिया नाग को अपने दर्शन दिए ओर वहीं पत्थर में स्थापित हो गए । तभी से यह मंदिर सेम मुखेम नागराज मंदिर के नाम से जाना जाता है।
ऐसे पहुंचे मंदिर
यह मंदिर उत्तराखंड के श्रीनगर से पहले एक गडोलिया नामक छोटा कस्बा आता है। यहां से एक रास्ता नई टिहरी के लिये जाता है दूसरा लम्बगांव। लम्बगांव सेम जाने वाले यात्रियों का मुख्य पड़ाव है। मन्दिर से ढ़ाई किमी नीचे तक सड़क मार्ग है। मुखेम गांव सेम मन्दिर के पुजारियों का गांव है। ये गंगू रमोला का गांव है जो कि रमोली पट्टी का गढ़पति था तथा जिसने सेम मन्दिर का निर्माण करवाया था।
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द्वारिका में डूबने के बाद इस पवित्र जगह प्रकट हुए थे भगवान श्रीकृष्ण, उत्तर द्वारिका के नाम से प्रसिद्ध है यह मंदिर
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उत्तराखंड को देवभूमि कहा जाता है। यहां नाग के कई मंदिर हैं। हम आपको दर्शन करा रहे हैं सेम मुखेम नागराजा के। यह एक प्रसिद्ध नागतीर्थ है, जो कि उत्तराखंड
में पांचवे धाम के रूप में विख्यात है। सेम मुखेम नागराज उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल जिला में स्थित एक प्रसिद्ध नागतीर्थ है। श्रद्धालुओं में यह सेम
नागराजा के नाम से प्रसिद्ध है। मान्यता है कि द्वारिका डुबने के बाद श्री कृष्ण यहां नागराज के रूप मे प्रकट हुए थे। इस मंदिर का सुंदर द्वारा 14 फुट चौड़ा ओर 27
फुट ऊंचा है। इस मंदिर में नागराज फन फैलाये हैं और भगवान कृष्ण नागराज के फन के ऊपर वंशी की धुन में लीन हैं।
द्वापर युग की बतायी जाती है शिला
मन्दिर में प्रवेश के बाद नागराजा के दर्शन होते हैं। मन्दिर के गर्भगृह में नागराजा की स्वयं भू शिला है। ये शिला द्वापर युग की बतायी जाती है। मन्दिर के
दांयी तरफ गंगू रमोला के परिवार की मूर्तियां स्थापित की गयी हैं। सेम नागराजा की पूजा करने से पहले गंगू रमोला की पूजा की जाती है। यह माना जाता है कि इस
स्थान पर भगवान श्री कृष्ण कालिया नाग का उधार करने आये थे। इस स्थान पर उस समय गंगु रमोला का अधिपत्य था, श्री कृष्ण ने उनसे यंहा पर कुछ भू भाग मांगना चाहा
लेकिन गंगु रमोला ने यह कह के मना कर दिया कि वह किसी चलते फिरते राही को जमीन नही देते। फिर श्री कृष्ण ने अपनी माया दिखाई, जिसके बाद गंगु रमोला ने शर्त के साथ
कुछ भू भाग श्री कृष्ण को दे दिया। जिस शर्त के अनुसार एक हिमा नाम की राक्षस का वध किया।
[caption id="attachment_34885" align="aligncenter" width="1080"] गर्भगृह[/caption]
उत्तर द्वारिका के नाम से प्रसिद्ध है सेम मुखेम मंदिर
मंदिर के पुजारी बताते है यह स्थान उत्तर द्वारिका के नाम से प्रसिद्ध है। इसका केदारखंड के अध्याय 6 में वर्णन है। द्वापर युग से इसकी मान्यता है। यहां पर जो
भी भक्तजन आते हैं, जैसे चर्म रोग हो, किसी प्रकार के दोष हैं, कालसर्प दोष है उसकी पूजा करके दोष समाप्त होता है। यहां पर पितृदोष कालसर्प योग दोष का निवारण भी
होता है।
[caption id="attachment_34886" align="aligncenter" width="1080"] गंगू रमोला[/caption]
द्वारिका छोड़कर कालिया नाग को अपने दर्शन दिए
यह भी मान्यता है कि द्वापर युग मे भगवान श्रीकृष्ण की बालरूप में एक दिन उनकी गेंद यमुना नदी में गिरी। इस नदी में कालिया नाग निवास करता था।। जब भगवान
श्रीकृष्ण गेंद लेने के लिए नदी में उतरे तो कालिया नाग ने उन पर आक्रमण किया, श्रीकृष्ण ने उसका सामना किया और कालिया नाग हार गया। तब भगवान ने कालिया नाग को
वहां से भागकर सेम मुखेम में जाने को कहा, कालिया नाग ने उनसे सेम मुखेम में दर्शन देने की विनती की । अंत समय मे भगवान कृष्ण ने द्वारिका छोड़कर उत्तराखण्ड के
रामोलागढ़ी में आकर कालिया नाग को अपने दर्शन दिए ओर वहीं पत्थर में स्थापित हो गए । तभी से यह मंदिर सेम मुखेम नागराज मंदिर के नाम से जाना जाता है।
ऐसे पहुंचे मंदिर
यह मंदिर उत्तराखंड के श्रीनगर से पहले एक गडोलिया नामक छोटा कस्बा आता है। यहां से एक रास्ता नई टिहरी के लिये जाता है दूसरा लम्बगांव। लम्बगांव सेम जाने
वाले यात्रियों का मुख्य पड़ाव है। मन्दिर से ढ़ाई किमी नीचे तक सड़क मार्ग है। मुखेम गांव सेम मन्दिर के पुजारियों का गांव है। ये गंगू रमोला का गांव है जो कि
रमोली पट्टी का गढ़पति था तथा जिसने सेम मन्दिर का निर्माण करवाया था।