ऑफिसर्स और जवानों की गिरती संख्‍या का सामना कर रही सेना के लिए वॉलेंटियरी रिटायरमेंट (वीआरएस) ने मुश्किलें बढ़ा दी हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक सेनाओं में अब वीआरएस के लिए आने वाली एप्‍लीकेशंस में तेजी से इजाफा हो रहा है। इसके अलावा पहले से खाली पड़ी पोस्‍ट्स सरकार का सिरदर्द बढ़ा रही हैं।

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“वतन के जां-निसार हैं वतन के काम आएंगे, हम इस जमीं को एक रोज आसमां बनाएंगे...” जाफर मलीहाबादी की यह लाइनें देशभक्ति का जज्बा जगाती हैं, सेना में शामिल होकर देश की सेवा का भाव जगाती हैं, लेकिन अब यह देशभक्ति सिर्फ कागजों और दिल तक ही सीमित होता जा रहा है. शायरी से अलग जमीनी हकीकत कुछ और है. हाल ही में केंद्र सरकार ने केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों को लेकर संसंद में जो डेटा पेश किया, वह काफी हैरान करने वाला है। दरअसल, केंद्र सरकार ने बुधवार को संसद में बताया कि पिछले पांच वर्षों के दौरान पांच केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों (सीएपीएफ) और असम राइफल्स के 46,000 से अधिक जवानों ने समय से पहले सेवानिवृत्ति ले ली. करीब 2.65 लाख कर्मियों की ताकत वाले सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) में समय से पहले रिटायरमेंट के मामले सबसे ज्यादा आ रहे हैं. बीएसएफ पाकिस्तान और बांग्लादेश के साथ सीमाओं की रक्षा के लिए जिम्मेदार है यहां 21,860 जवानों ने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ली है। अन्य फोर्स में भी स्थिति चिंताजनक करीब 3.25 लाख जवान वाले सबसे बड़े सीएपीएफ केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) में पिछले पांच साल में 12,893 जवानों ने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति का विकल्प चुना है. इसके बाद असम राइफल्स से 5,146 जवानों ने, केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल यानी सीआईएसएफ से 3,012 जवानों ने, भारत-तिब्बत सीमा पुलिस से 2,281 जवानों ने और सशस्त्र सीमा बल से 1,738 जवानों ने स्वैच्छिक सेवानिवृतत्ति ली है। क्यों वीआरएस ले रहे जवान? अब बड़ा सवाल ये उठता है कि आखिर इतनी बड़ी संख्या में जवान सेवानिवृत्ति क्यों ले रहे हैं। इसका जवाब तलाशना बहुत जरूरी है। यहां हम बता रहे हैं कुछ ऐसी ही वजहें जिनकी वजह से ये जवान वीआरएस ले रहे हैं। व्यक्तिगत और घरेलू - रिपोर्ट की मानें तो वीआरएस लेने के पीछे सबसे बड़ा कारण व्यक्तिगत और घरेलू है। इसमें उसकी निजी समस्याएं अन्य काम आते हैं। स्वास्थ्य -ऐसे जवानों की संख्या भी बहुत है जो सिर्फ स्वास्थ्य कारणों से वीआरएस ले रहे हैं। इसमें उनके परिवार वाले या वो खुद किसी न किसी स्वास्थ्य समस्याएं से जूझते रहते हैं, जिस वजह से जवान वीआरएस ले लेते हैं। सामाजिक व पारिवारिक दायित्व - कुछ जवान अपने सामाजिक और पारिवारिक दायित्व को निभाने की बात कहकर भी वीआरएस ले रहे हैं। ये दायित्व अलग-अलग हो सकते हैं। बेहतर करियर के अवसर की तलाश - अधिकतर वीआरएस के पीछे ये भी एक वजह है दरअसल, बेहतर करियर के अवसर और ज्यादा सैलरी की चाह में भी जवान सेना को छोड़कर आ रहे हैं। किए जा रहे हैं ये उपाय - सरकार ने बताया कि इस तरह के मामलों को रोकने के लिए कई उपाय किए जा रहे हैं। इसमें यूनिट का कठिन एरिया से सामान्य एरिया में रोटेशन और रिटायरमेंट के अंतिम दो वर्षों के दौरान जवानों को उनके होमटाउन के पास पोस्टिंग प्रदान करना शामिल है। सैलरी में बहुत पीछे है भारतीय सेना- डिफेंस वेबसाइट मिलिट्री डायरेक्ट के मुताबिक, चीन, अमेरिका और रूस के बाद भारत के पास दुनिया की चौथी सबसे ताकतवर मिलिट्री है, लेकिन सैनिकों की सैलरी के मामले में भारत बहुत पीछे रह जाता है। उसका नंबर 11वां है। मिलिट्री डायरेक्ट ने बताया कि कनाडा के सैनिकों की शुरुआती सैलरी जहां करीब 25 लाख रुपये सालाना है, तो वहीं भारतीय सैनिकों की सैलरी करीब 5 लाख रुपये सालाना है। पेंशन बहाली और वेतन समानता अर्द्ध सैनिक बल के जवान, जिन्हें आधिकारिक तौर पर केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (सीएपीएफ) के रूप में जाना जाता है, सशस्त्र बलों में अपने समकक्षों की तुलना में लंबे समय से उपेक्षित और भेदभाव महसूस कर रहे हैं। 2004 में एनपीएस शुरू करने के सरकार के कदम ने अर्धसैनिक जवानों के लिए नियमित पेंशन योजना को बदल दिया, उन्हें अंशदायी प्रणाली में डाल दिया, जिसके बारे में कई लोगों का तर्क है कि यह अनुचित और अपर्याप्त है।