दीपक बेंजवाल / अगस्त्यमुनि
दस्तक पहाड न्यूज। । मंदाकिनी घाटी में साहित्य सृजन की अमूल्य निधि सौंपने वाले पद्मसेन कमलेश नाम से विख्यात 90 वर्षीय वरिष्ठ साहित्यकार पदम सिंह गुसांई का मंगलवार सांय निधन होने से साहित्य जगत में शोक की गहरी लहर छा गई। एक उत्साही सृजनता के धनी और मानवीय संवेदनाओं को यथार्थ में आत्मसात करने वाले गुसांई जी ने शिक्षा विभाग से अपनी सेवानिवृत्ति के बाद गरीब और मजदूरी कर जीवनयापन करने मजदूर, खानाबदोशों के बच्चों को निशुल्क पढ़ाने के लिए ‘नीमा मेमोरियल स्कूल” की नींव रखी। वास्तव में मंदाकिनी घाटी में यह ऐसी पहली प्रेरणाभरी शुरुआत रही होगी जिसने व्यवसाय बनती जा रही शिक्षा में निस्वार्थ शिक्षादान का बड़ा भाव जागृत किया। इस संस्थान के साथ चंद्र कुंवर बर्त्वाल साहित्य शोध संस्थान की स्थापना और फिर गढ़गुंजन और गढ़गरिमा पत्रिका के प्रकाशन ने उनकी वृहद साहित्यिक सोच को उजागर कर दिया। उन्होंने समाज की प्रेरणा के लिए बहुत कुछ इसमें लिखा। महान पूर्वजों की स्मृतियों को प्रसारित करने की जनजागृति के लिए चमोली की महान विभूतियाँ, रुद्रप्रयाग और पौड़ी की महान विभूतियाँ पर पुस्तक प्रकाशित की, टिहरी और उत्तरकाशी पर भी आपकी पाण्डुलिपी तैयार थी। बाद में अपने जीवन में बौद्धत्व को ग्रहण करते हुए कविताए और बौद्धावतार सहित चार खण्ड काव्य लिखे। जिसमें ‘अप्प दीपो भवः’ सबसे विशेष सृजना थी। संभवतः पर्वतीय क्षेत्र विशेषकर गढ़वाल क्षेत्र में बुद्ध पर उनके अलावा ऐसा सृजन अन्यत्र नहीं मिला है। चन्द्रकुंवर को लगभग भुला चुकी मन्दाकिनी घाटी को इन्होंने फिर से चेताया, कवि गोष्ठी और पत्रिका के द्वारा फिर से चन्द्रकुंवर की विस्मृत धारा को नया प्रवाह देकर जीवित कर दिया। उनके द्वारा 1994 से स्थापित और आज तक संचालित ‘चंद्र कुंवर बर्त्वाल साहित्य शोध संस्थान ‘ इसका जीवंत प्रमाण है।
मूल रूप से तल्ला नागपुर के सबसे बड़े गाँव बावई के निवासी पदम सिंह गुसाईं जी अगस्त्यमुनि के प्रमुख व्यक्तित्वों में शामिल रहे हैं। एक आदर्श शिक्षक के रूप में अपने कर्मशील जीवन की शुरूआत करने वाले पद्मेश जी शिक्षक के रूप में तो सम्मानित रहे ही हैं, साहित्यिक व सामाजिक गतिविधियों में भी उनकी विशिष्ट व उल्लेखनीय भूमिका रही है।
उनके निधन पर उत्तराखंड के वरिष्ठ पत्रकार रमेश पहाड़ी लिखते है ‘पद्मसेन “पद्मेश” जी के निधन से सामाजिक, साहित्यिक व सामाजिक जीवन में एक बड़ी रिक्तता आई है, उसकी पूर्ति असम्भव है। सेवा-निवृत्ति के बाद उन्होंने अपना पूरा जीवन शिक्षा और साहित्य-सृजन को समर्पित कर दिया और पूरी शक्ति के साथ उसे आगे बढ़ाया। हम प्रभु से दिवंगत आत्मा को शान्ति की प्रार्थना करें और उनके मिशन को आगे बढ़ाने का संकल्प लें। यही उनको सच्ची श्रद्धाञ्जलि होगी।
वरिष्ठ साहित्यकार पद्मसेन कमलेश के निधन पर केदारनाथ विधायक शैलारानी रावत, पूर्व विधायक मनोज रावत, प्रदेश महिला अध्यक्ष भाजपा आशा नौटियाल, बीकेटीसी अध्यक्ष अजेंद्र अजय, सीमांत अनुश्रवण परिषद के उपाध्यक्ष चण्डीप्रसाद भट्ट, पूर्व उपाध्यक्ष बीकेटीसी अशोक खत्री, पूर्व नगरपंचायत अध्यक्ष अरूणा बेंजवाल, पूर्व कनिष्ठ प्रमुख रमेश बेंजवाल, जिलापंचायत सदस्य कुलदीप कण्डारी, ब्लॉक अध्यक्ष कांग्रेस हरीश सिंह गुसांई, विक्रम सिंह नेगी, हर्षवर्धन बेंजवाल, उमा प्रसाद भट्ट, दिनेश बेंजवाल, पूर्व प्रधान नाकोट बलबीर लाल, व्यापार संघ अध्यक्ष नवीन बिष्ट, महासचिव त्रिभुवन नेगी, वरिष्ठ नागरिक संगठन से श्रीनंद जमलोकी, चंद्रशेखर बेंजवाल, केदारनाथ दास सेवा मंडल अध्यक्ष चंद्र सिंह नेगी, समेत साहित्य जगत से वरिष्ठ साहित्यकार गिरीश बेंजवाल, कृष्णानंद नौटियाल, ओमप्रकाश सेमवाल, जगदंबा चमोला, जयवर्धन काण्डपाल, सुधीर बर्त्वाल, नंदन राणा, कुसुम भट्ट, गजेन्द्र रौतेला, ललिता रौतेला, गजेंद्र रौतेला, वरिष्ठ पत्रकार हरीश गुसाई, अनसूया प्रसाद मलासी, कालिका काण्डपाल ने शोक संवेदना प्रकट की है।