दस्तक पहाड़ न्यूज / अगस्त्यमुनि।।
आप रामभक्त हैं और राम नाम से ही दिन की शुरुआत करना चाहते हैं तो श्रीराम प्रातः स्मरण मंत्र पहली स्तुति है। इसे महामुनि अगस्त्य ने लिखा है। महर्षि अगस्त्य मंदिर के आचार्य योगेश बेंजवाल और भूपेंद्र बेंजवाल के अनुसार महामुनि अगस्त्य द्वारा लिखित इन पांच श्लोकों में प्रभू श्रीराम के दिव्य स्वरूप का वर्णन है। इस स्तुति को सुबह आंख खुलते ही बिस्तर पर ही बैठकर बोलने का नियम है। इस स्तुति को पढ़कर दिन की शुरुआत करने से दिनभर ऊर्जावान बने रहते हैं। दिन की शुरुआत राममय होने से मन नहीं भटकता।
प्रातः स्मरामि रघुनाथमुखारविन्द
मन्दस्मितं मधुरभाषि विशालभालम् ।
कर्णावलम्बिचलकुण्डलशोभिगण्ड
कर्णान्तदीर्घनयन नयनाभिरामम् ॥1।।
अर्थ : बड़े ललाट, बड़ी आंखों वाले और मधुर मुस्कान लिए आनंद देने वाले श्रीराम के श्रीमुख का मैं प्रात: काल स्मरण करता हूँ।
प्रातर्भजामि रघुनाथकरारविन्द
रक्षोगणाय भयदं वरद निजेभ्य |
यद् राजसंसदि विभज्य महेशचापं
सीताकरग्रहणमङ्गलमाप सद्य।।2।।
अर्थ : मैं प्रात काल श्रीरघुनाथ के उन हाथों का स्मरण करता हूं। जो राक्षसों को डर और भक्तों को वरदान देते हैं। जिन्होंने राजा जनक की सभा में शंकरजी का धनुष तोड़कर सीताजी से विवाह किया था।
प्रातर्नमामि रघुनाथपदारविन्दं
पद्मांकुशादिशुभरेखि सुखावह मे ।
योगीन्द्रमानसमधुव्रतसेव्यमान
शापापह सपदि गौतमधर्मपत्न्याः ॥3।।
अर्थ : प्रातः काल श्रीरघुनाथ के चरण कमल को नमस्कार करता हूं। जिनकी रेखाएं कमल और अंकुश बना रही हैं। जिन चरणों से गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या का शाप से उद्धार हुआ। मुझे आनंद देने वाले ऐसे चरणों को प्रणाम करता हूं।
प्रातर्वदामि वचसा रघुनाथनाम
वाग्दोषहारि सकलं शमल निहन्ति ।
यत्पार्वती स्वपतिना सह भोक्तुकामा
प्रीत्या सहस्त्र हरिनामसम जजाप।।4।।
अर्थ : मैं प्रात काल अपनी वाणी से श्रीरघुनाथ का नाम जाप करता हूं। जिससे मेरी वाणी के दोष और पाप खत्म हो जाते हैं। मैं उनकी वैखरी वाणी में कीर्तन करता हूं जिसे देवी पार्वती ने भी जपा था ।
प्रात श्रये श्रुतितो रघुनाथमूर्ति
नीलाम्बुजोत्पलसितेतर नीलाम् ।
आमुक्तमौक्तिकविशेषविभूषणाढ्या
ध्येया समस्तमुनिभिर्जनमुक्तिहेतुम्।।5।।
अर्थ : मैं सुबह श्रीरघुनाथ की वेदों में पूजित मूर्ति को प्रणाम करता हूं। जो नीलकमल, नीलमणी और नीले मोतियों की माला से सजी हुई है। जो मूर्ति ऋषि मुनियों और भक्तों को मोक्ष देने वाली है।
य: लोकपञ्चकमिदं प्रयत: पठेद्धि
नित्यं प्रभातसमये पुरुष: प्रबुद्धः ।
श्रीरामकिङ्करजनेषु स एव मुख्यो
भूत्वा प्रयाति हरिलोकमनन्यलभ्यम् ॥6।।
अर्थ: जो भी बुद्धिमान पुरुष इन पांच श्लोकों को हर रोज सुबह पढ़ता है। उसे श्रीराम के गणों में स्थान मिलता है और देवताओं के लिए भी दुर्लभ श्रीहरि के वैकुंठलोक को प्राप्त करता है।