प्राथमिक शिक्षा में अरूणिमा बिखेरती अरूणा, नवाचारी सृजन के लिए 17 शिक्षकों के साथ मिलेगा शैलेश मटियानी राज्य शैक्षिक पुरस्कार
1 min read15/02/2024 11:57 am
हरीश गुसाई / दीपक बेंजवाल / अगस्त्यमुनि
दस्तक पहाड न्यूज। । उत्तराखंड राज्य में शिक्षा के उन्नयन एवं गुणात्मक सुधार हेतु उत्कृष्ट कार्य करने वाले 17 शिक्षकों को “शैलेश मटियानी राज्य शैक्षिक पुरस्कार-2023” प्रदान किया जाऐगा। इनमें रूद्रप्रयाग जनपद से राजकीय प्राथमिक विद्यालय जाबरी की शिक्षिका अरूणा नौटियाल का नाम भी शामिल है। दुर्गम क्षेत्र के प्राथमिक विद्यालय की इन शिक्षिका ने वह कर दिखाया जो शहरी क्षेत्र के सुविधा सम्पन्न विद्यालय भी नहीं कर पा रहे हैं। एक ओर जहां शहरी क्षेत्रों में खुलने वाले अधिसंख्य प्राइवेट विद्यालय सरकारी विद्यालयों की बन्दी का कारण बन रहे हैं वहीं दूसरी ओर इस शिक्षिका ने शिक्षा के प्रति अपनी प्रप्रतिबद्धता से प्राइवेट विद्यालय ही बन्द करा दिया। उन्होंने सिद्ध कर दिया कि यदि मन में सच्ची लगन और दृढ़ निश्चय हो तो कुछ भी असम्भव नहीं है। 2014 में जहां छात्र संख्या केवल एक रह गई थी। आज वहां पर 20 छात्र छात्रायें अध्ययन कर रहे हैं।
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अगस्त्यमुनि ब्लाॅक मुख्यालय से 20 किमी की दूरी पर स्थित उच्छाढ़ुंगी न्याय पंचायत के अन्तर्गत ग्राम पंचायत कान्दी के राजस्व ग्राम जाबरी का राजकीय प्राथमिक विद्यालय बना है। स्कूल में प्रवेश करते ही सभी छात्र छात्रायें साफ सुथरे गणवेश में नजर आते हैं। छात्र छात्रायें न केवल पढ़ाई में बल्कि सामान्य ज्ञान एवं अंग्रेजी में भी अच्छा दखल रखते हैं। मध्याह्न भोजन डायनिंग टेबिल पर खाया जाता है। यह सब सम्भव हुआ वहां की प्रभारी प्रधानाध्यापिका अरूणा नौटियाल एवं सहायक अध्यापिका चन्दा रावत के अथक प्रयासों से। उन्होंने एक दुर्गम क्षेत्र के विद्यालय को कान्वेन्ट विद्यालय में बदल दिया। उनका यह प्रयास उन शिक्षकों के लिए एक मिशाल भी है जो सुविधाओं का रोना रोकर शिक्षण में रूचि नहीं लेते हैं। वर्ष 2006-07 में सर्व शिक्षा अभियान के तहत खुला प्राथमिक विद्यालय जाबरी शुरू से ही जनप्रतिनिधियों एवं अधिकारियों की अनदेखी का शिकार बना रहा। पहले इसका संचालन प्रावि कान्दी में ही हुआ। विद्यालय भवन की स्वीकृति के बाबजूद बन नहीं पाया। इसकी वजह से निरन्तर इसकी छात्र संख्या घटती चली गई। वर्ष 2009 में विद्यालय में आई शिक्षिका अरूणा नौटियाल ने विद्यालय में प्रभारी प्रधानाध्यापिका का चार्ज सम्भाला। उसके बाद से ही उन्होंने विद्यालय के अपने भवन के लिए जनप्रतिनिधियों एवं अधिकारियों से वार्ता की। जिसमें उन्हें पाचं साल बाद सफलता मिली और खण्ड शिक्षा अधिकारी केएल रड़वाल एवं तत्कालीन विधायक शैलारानी रावत के सहयोग से 2014 में विद्यालय को अपना भवन मिल पाया। भवन तो मिला परन्तु छात्र संख्या घट कर एक रह गई। और विद्यालय पर बन्द होने की तलवार लटक गई। अरूणा नौटियाल ने अधिकारियों से एक मौका देने का अनुरोध किया। उनकी लगन को देखते हुए उन्हें अधिकारियों ने मौका तो दिया साथ ही उन्हें शीघ्रातिशीघ्र छात्र संख्या बढ़ाने के निर्देश भी दिए। इसी बीच गांव में एक प्राइवेट विद्यालय भी खुल गया। अब उनके सामने दो चुनौतियां थी। एक तो अपने विद्यालय को बन्द होने से बचाना दूसरा अभिभावकों को अपने पाल्यों को सरकारी विद्यालयों में लाने के लिए प्रेरित करना। इसके लिए उन्हें प्राइवेट विद्यालय से कम्पटीशन करना था। परन्तु उन्होंने हार नहीं मानी। और सर्वप्रथम विद्यालय को सुसज्जित करने का बीड़ा उठाया। जिसमें उन्हें तत्कालीन विधायक शैलारानी रावत ने मदद की तथा विद्यालय की चहारदीवारी एवं फर्नीचर के लिए विधायक निधि से धन मुहैया कराया। उन्होंने विद्यालय में अपने संसाधनों से न केवल अंग्रेजी पाठ्य सामाग्री एकत्रित की बल्कि कम्प्यूटर भी लगाया। विद्यालय में सभी कक्षाओं में अंग्रेजी माध्यम से शिक्षण कार्य हो रहा है। प्रत्येक शनिवार को दोनों शिक्षिकाओं द्वारा एक घण्टे कौशल काय्र के तहत गुलदस्ते, खिलौने, पेन्टिंग सहित कई रोचक शिक्षण की सामाग्री बनाने का प्रशिक्षण दिया जाता है। सभी छात्र छात्राओं को ड्रेस, नेमप्लेट एवं टाई की समुचित व्यवस्था की गई है। वह भी तब जब कि उनका वेतन कई माह तक नहीं मिल पाता है। और मिलता भी है तो टुकड़ों में। इसके बाबजूद उन्हें न कोई गिला है न कोई शिकायत। वह अपना कार्य पूरी लगन एवं ईमानदारी से कर रही हैं। उनकी यह मेहनत काम आई और आज विद्यालय में छात्र संख्या 20 तक पहुंच गई है। जबकि उनके लिए चुनौती बना प्राइवेट विद्यालय बन्द हो चुका है। उत्तराखण्ड के पहाड़ी क्षेत्रों में बेहाल प्राथमिक शिक्षा की बेहतरी के लिए अरूणा की यह पहल उम्मीद तो जगाती ही है।
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नवाचारी सृजन के लिए रहती है तैयार
स्कूल सिर्फ नौकरी का माध्यम भर नहीं है, उनका मानना है कि हम अपने कार्य को कितना बेहतर बना सकते है यह हम पर निर्भर है। बच्चों का मन कोमल होता है, उसे रचनात्मक और रोचक बनाकर आप समाज के लिए भविष्य की सुदंर पौध तैयार कर सकते है। बच्चों की इसी रोचकता को बढ़ाने के लिए उन्होंने कक्षावार पुस्तके की लाइब्रेरी बानाई है, जिसमें अपनी अपनी आयु वर्ग वाले बच्चों के लिए किताबे रखी है। वो कहती है कि पुस्तके सबसे अच्छी मित्र होती है, इन्हें केवल अलमारियों में सजाकर न रखा जाए। हर दिन कुछ समय के लिए ही सही बच्चे इन्हें पढ़े। इसलिए मैंने उन्हें हर कक्षा के कोने में कक्षावार रखा है।
दस्तक पहाड़ से हुई बातचीत में उन्होंने बताया कि पुरस्कार सामाजिकता का हिस्सा है, हम हर रोज पढ़ाने का कार्य करते है यह हमारा कर्तव्य है, इसकी बेहतरी और नवाचारिता भी हमारे काम का हिस्सा है। नया भविष्य बेहतरी से तैयार हो यही हमारा पुरस्कार है। मुझे विभाग द्वारा इस सम्मान के लिए चुना गया है, जिसके लिए मैं आभारी हूँ। दरअसल हर शिक्षक हर दिन पूरी तन्मयता और समर्पण से कार्य करता है, सभी का ढंग अलग-अलग जरूर है, लेकिन सभी का उद्देश्य बेहतर शिक्षा देना ही है और मैं भी इसी मिशन का छोटा सा हिस्सा भर हूँ।
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