हरीश गुसाईं / अगस्त्यमुनि दस्तक पहाड न्यूज ब्यूरो। केदारनाथ विधायक शैलारानी रावत के निधन से खाली हुई सीट पर उपचुनाव को देखते हुए भाजपा एवं कांग्रेस में दावेदार सक्रिय होने लगे हैं। हालांकि अभी चुनाव आयोग ने उपचुनाव की तिथि घोषित नहीं की है फिर भी अनुमान है कि अक्टूबर या नवम्बर में यहां उपचुनाव हो सकता है। उपचुनाव को देखते हुए दोनों दलों में प्रत्याशी को लेकर मंथन शुरू हो गया है।

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अभी हाल ही में प्रदेश में हुए उपचुनाव में बद्रीनाथ एवं मंगलोर सीट पर सत्ताधारी भाजपा को करारी हार का सामना करना पड़ा था। ऐसे में उसे केदारनाथ सीट पर जीत हासिल करने का भारी दबाब है। वहीं कांग्रेस का हौसला उपचुनाव में दोनों सीट पर जीत हासिल कर सातवें आसमान पर है। पिछले दिनों केदारनाथ मन्दिर को लेकर हुए विवाद से भाजपा सहमी हुई है जबकि कांग्रेस इस मामले को लेकर लगातार हमलावर हो रही है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने तत्काल अध्यादेश लाकर विवाद को शान्त करने की कोशिश की है तो कांग्रेस इसे जिन्दा रखते हुए जनता के बीच लगातार संवाद बना रही है और धामों को बचाने के लिए बद्री केदार के लिए पदयात्रा भी निकालने जा रही है। प्रदेश में भाजपा की सरकार होने पर सबसे अधिक दबाब भाजपा पर ही है। इसलिए भाजपा केदारनाथ सीट को हासिल करने के लिए बेताब है। परन्तु उसके सामने यक्ष प्रश्न है कि चुनाव में उसकी नैया पार कौन लगा सकता है। क्या भाजपा सहानुभूति की लहर को भुनाने के लिए दिवगंत शैलारानी रावत की पुत्री ऐश्वर्या रावत को अपना प्रत्याशी बनाती है या फिर किसी नये प्रत्याशी या फिर किसी पुराने खुराट नेता पर दांव लगाती है। वैसे तो उत्तराखण्ड में अब तक भाजपा तथा कांग्रेस ने किसी विधायक की मृत्यु होने पर उनके परिजनों को ही उम्मीदवार बनाया है और वे जीत कर विधान सभा में भी पहुंचे हैं। हाल ही में बागेश्वर सीट पर चन्दन रामदास की मृत्यु के उनकी धर्मपत्नी पार्वती देवी को प्रत्याशी बनाया गया। इससे पूर्व थराली सीट पर मगनलाल शाह की मृत्यु के बाद उनकी पत्नी मुन्नी देवी को तथा पिथौरागढ़ सीट पर प्रकाश पंत की मृत्यु के बाद उनकी पत्नी, तथा सल्ट सीट पर विधायक के भाई को भाजपा द्वारा उम्मीदवार बनाया गया। अगर केदारनाथ सीट पर भी भाजपा का यही स्टेण्ड रहा तो ऐश्वर्या रावत की उम्मीदवारी तय है। वैसे तो ऐश्वर्या रावत सबसे प्रबल दावेदारों में है परन्तु हाल ही हुए उपचुनाव में करारी हार के बाद भाजपा हर कदम फूंक फूंक कर चल रही है। यदि इस बार भाजपा ने कुछ अलग करने की सोची तो फिर उम्मीदवारों की एक लम्बी फेहरिस्त है जो पार्टी का उम्मीदवार बनने का दावा कर रहे हैं और इसके लिए वे अपने आकाओं की परिक्रमा करने के साथ ही पार्टी प्रत्याशी बनने के लिए हर प्रयास कर रहे हैं। इनमें सबसे बड़ा नाम पूर्व विधायक श्रीमती आशा नौटियाल का है। वे दो बार केदारनाथ की विधायक रह चुकी हैं। 2017 में उन्होंने कांग्रेस से आई शैलारानी का विरोध करते हुए निर्दलीय चुनाव लड़ा था। चुनाव हारने के बाद वे शीघ्र ही पार्टी में वापस आ गई। जबकि भाजपा में पार्टी छोड़ने के बाद इतनी जल्दी कोई वापस नहीं आया। यह पार्टी में उनकी ऊंची पहुंच को दर्शाता है। वर्तमान में महिला मोर्चा की प्रदेश अध्यक्ष के पद पर रहते हुए क्षेत्र में काफी सक्रिय हैं। संघ की पृष्ठभूमि को अगर तवज्जो मिलती है तो पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष चण्डीप्रसाद भट्ट, जो वर्तमान में वे सीमान्त अनुश्रवण परिषद में उपाध्यक्ष हैं और दूसरे दशज्यूला क्षेत्र निवासी और नैनीताल हाईकोर्ट बार ऐसोशियेशन के सचिव जयवर्धन काण्डपाल का नाम भी अहम है। वहीं पूर्व उपाध्यक्ष अशोक खत्री भी पार्टी में अपनी पकड़ के चलते दावेदारों की सूची में आगे हैं। लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा में शामिल हुए निर्दलीय कुलदीप रावत भी प्रबल दावेदार के रूप में उभरे हैं। वे दो बार केदारनाथ से निर्दलीय चुनाव लड़े हैं तथा दोनों बार 13 हजार वोट लाकर दूसरे स्थान पर रहे हैं। बीकेटीसी के वर्तमान अध्यक्ष अजेन्द्र अजय भी दावेदारों में शामिल हैं। उनका कार्यकाल जल्दी ही समाप्त होने को है। पूर्व जिलाध्यक्ष दिनेश उनियाल, पूर्व दर्जाधारी पंकज भट्ट, एडवोकेट संजय दरमोड़ा, कुलदीप नेगी आजाद भी दावेदारों में शामिल हैं। भाजपा ने इससे इतर अगर बाहरी प्रत्याशियों पर दांव खेला तो उसमें सबसे आगे कर्नल अजय कोठियाल का नाम होगा। जिन्होंने केदारनाथ पुनर्निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। वहीं अचानक से पूर्व मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निःशंक एवं तीरथ रावत का नाम भी चर्चा में आ रहा है। वेैसे यह दूर की कौड़ी लग रही है। परन्तु भाजपा वह करती है जो कोई सोच नहीं सकता है। इसलिए जब तक प्रत्याशियों के नाम घोषित नहीं होते तब तक कुछ भी हो सकता है।