उत्तराखंड में गायब हो गया ‘ऊँ’ पर्वत, जरा खतरे का संकेत समझिए ! केदार घाटी के लिए भी है ये स्पष्ट संदेश
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28/08/20247:54 pm
दस्तक पहाड न्यूज / पिथौरागढ़ । धारचूला से कैलाश मानसरोवर जाने वाली व्यास घाटी में इन दिनों एक चीज हैरान कर रही है. जिस पर्वत को देखते हुए आस्था से सिर झुक जाया करता था, वह ‘ऊं पर्वत’ नजरों से ओझल है! पहली बार पर्वत की पूरी बर्फ पिघल चुकी है। ऊं की आकृति अब दिखाई नहीं दे रही है. सामने बस काला पहाड़ है। ऐसा पहली बार हुआ है। व्यास घाटी के गर्ब्याल गांव के कृष्णा गर्ब्याल चिंतित हैं। वह कहते हैं कि कि जिंदगी में उन्होंने पहली बार ऐसा देखा है। वह इसे अशुभ संकेत मानते हैं. वह इसकी वजह इस सेंसेटिव जोन में बढ़ते इंसानी दखल को मानते हैं।
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धारचूला से कैलाश मानसरोवर की तरफ बढ़ने हुए चीन सीमा से करीब 15 किलोमीटर पीछे ऊं पर्वत की झलक दिल खुश कर देती है. सारी थकान मिटा देती है। ऊं पर्वत की को स्थानीय रं और भोटिया समुदाय बड़ी आस्था से देखता है. वे इस पहाड़ को पूजते रहे हैं। व्यास घाटी में पिछले एक दशक के दौरान कैलाश मानसरोवर यात्रा और चीन सीमा पर सुरक्षा गतिविधियों से मानवीय दबाव बढ़ा है।
कृष्णा 2016 को याद करते हुए कहते हैं, ‘बारिश लगातार नहीं होती है, तो बर्फ नहीं टिकती है। 2016 में बारिश कम हुई थी, तब भी ऊं पर्वत पर बर्फ काफी गल गई थी। उस साल जून-जुलाई में इस पर्वत पर काफी कम बर्फ दिखाई दी थी, लेकिन आज की तरह गायब नहीं हुआ था.’
वह कहते हैं कि यह पहली बार है कि ऊं पर्वत से पूरी बर्फ हट गई है. वह इस ‘बीमारी’ की वजह बताते हुए कहा हैं, ‘ऊं पर्वत तक सड़क बन गई है. 2019 में मोटरमार्ग बना है। करीब 100 गाड़ियां वहां तक रोज जाती हैं। कार्बन बढ़ेगा, तो वहां फर्क पड़ेगा ही.’ वह इलाके में अंधाधुंध पर्यटन को भी इसका दोष देते हैं। कृष्णा कहते हैं, ‘केएमवीएन ने हेलिकॉप्टर दर्शन सेवा शुरू करवा दी है। हेलिकॉप्टर सीधे वहीं उतर रहे हैं. यह भी एक वजह है। स्थानीय लोगों ने इसके खिलाफ लंबा आंदोलन किया था। स्थानीय चाहते थे कि हेलिकॉप्टर को आदि कैलाश और ऊं पर्वत तक न ले जाया जाए. ऊं पर्वत से 16 किलोमीटर पहले गुंजी में अगर हेलिकॉप्टर रोक दिया जाता, तो लोगों की रोजी-रोटी भी बचती और पर्यावरण भी.’
केदारघाटी में नहीं है ‘अस्तित्व’ की कोई चिन्ता
ऊँ पर्वत पर मानवीय दबाव के जैसा ही मामला केदार घाटी में है। यहाँ के संवेदनशील पहाड़ पर अंधाधुंध निर्माण और मानवीय आवाजही अब हर साल आपदा का पर्याय बन रही है। लेकिन इस पर न सरकार को चिन्ता है और न स्थानीय लोगों को। हर कोई रोजगार के नाम पर पैसा कमाना चाहता है लेकिन केदारनाथ धाम के अस्तित्व को लेकर कोई सवाल और संवेदना नही बची है। इस साल भी यात्रा मार्ग पर बड़ी त्रासदी हुई है, कितने लोग इसका शिकार हुए उस पर कही कोई चर्चा और चिन्ता नही है। सरकार ने तेजी से रास्ता फिर बनवाकर यात्रा को सुचारू करवा दिया है। स्थानीय लोग भी रोजगार चलने की बात पर चुप्पी साधे है।
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उत्तराखंड में गायब हो गया ‘ऊँ’ पर्वत, जरा खतरे का संकेत समझिए ! केदार घाटी के लिए भी है ये स्पष्ट संदेश
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दस्तक पहाड न्यूज / पिथौरागढ़ । धारचूला से कैलाश मानसरोवर जाने वाली व्यास घाटी में इन दिनों एक चीज हैरान कर रही है. जिस पर्वत को देखते हुए आस्था से सिर झुक
जाया करता था, वह 'ऊं पर्वत' नजरों से ओझल है! पहली बार पर्वत की पूरी बर्फ पिघल चुकी है। ऊं की आकृति अब दिखाई नहीं दे रही है. सामने बस काला पहाड़ है। ऐसा पहली बार
हुआ है। व्यास घाटी के गर्ब्याल गांव के कृष्णा गर्ब्याल चिंतित हैं। वह कहते हैं कि कि जिंदगी में उन्होंने पहली बार ऐसा देखा है। वह इसे अशुभ संकेत मानते
हैं. वह इसकी वजह इस सेंसेटिव जोन में बढ़ते इंसानी दखल को मानते हैं।
[caption id="attachment_38675" align="alignnone" width="696"] पहले[/caption]
[caption id="attachment_38676" align="alignnone" width="696"] अब[/caption]
धारचूला से कैलाश मानसरोवर की तरफ बढ़ने हुए चीन सीमा से करीब 15 किलोमीटर पीछे ऊं पर्वत की झलक दिल खुश कर देती है. सारी थकान मिटा देती है। ऊं पर्वत की को
स्थानीय रं और भोटिया समुदाय बड़ी आस्था से देखता है. वे इस पहाड़ को पूजते रहे हैं। व्यास घाटी में पिछले एक दशक के दौरान कैलाश मानसरोवर यात्रा और चीन सीमा
पर सुरक्षा गतिविधियों से मानवीय दबाव बढ़ा है।
पहले कभी गायब नहीं हुआ
कृष्णा 2016 को याद करते हुए कहते हैं, 'बारिश लगातार नहीं होती है, तो बर्फ नहीं टिकती है। 2016 में बारिश कम हुई थी, तब भी ऊं पर्वत पर बर्फ काफी गल गई थी। उस साल
जून-जुलाई में इस पर्वत पर काफी कम बर्फ दिखाई दी थी, लेकिन आज की तरह गायब नहीं हुआ था.'
वह कहते हैं कि यह पहली बार है कि ऊं पर्वत से पूरी बर्फ हट गई है. वह इस 'बीमारी' की वजह बताते हुए कहा हैं, 'ऊं पर्वत तक सड़क बन गई है. 2019 में मोटरमार्ग बना है। करीब
100 गाड़ियां वहां तक रोज जाती हैं। कार्बन बढ़ेगा, तो वहां फर्क पड़ेगा ही.' वह इलाके में अंधाधुंध पर्यटन को भी इसका दोष देते हैं। कृष्णा कहते हैं, 'केएमवीएन ने
हेलिकॉप्टर दर्शन सेवा शुरू करवा दी है। हेलिकॉप्टर सीधे वहीं उतर रहे हैं. यह भी एक वजह है। स्थानीय लोगों ने इसके खिलाफ लंबा आंदोलन किया था। स्थानीय चाहते
थे कि हेलिकॉप्टर को आदि कैलाश और ऊं पर्वत तक न ले जाया जाए. ऊं पर्वत से 16 किलोमीटर पहले गुंजी में अगर हेलिकॉप्टर रोक दिया जाता, तो लोगों की रोजी-रोटी भी बचती
और पर्यावरण भी.'
केदारघाटी में नहीं है 'अस्तित्व' की कोई चिन्ता
ऊँ पर्वत पर मानवीय दबाव के जैसा ही मामला केदार घाटी में है। यहाँ के संवेदनशील पहाड़ पर अंधाधुंध निर्माण और मानवीय आवाजही अब हर साल आपदा का पर्याय बन रही
है। लेकिन इस पर न सरकार को चिन्ता है और न स्थानीय लोगों को। हर कोई रोजगार के नाम पर पैसा कमाना चाहता है लेकिन केदारनाथ धाम के अस्तित्व को लेकर कोई सवाल और
संवेदना नही बची है। इस साल भी यात्रा मार्ग पर बड़ी त्रासदी हुई है, कितने लोग इसका शिकार हुए उस पर कही कोई चर्चा और चिन्ता नही है। सरकार ने तेजी से रास्ता
फिर बनवाकर यात्रा को सुचारू करवा दिया है। स्थानीय लोग भी रोजगार चलने की बात पर चुप्पी साधे है।