सात फेरों के बंधन के लिए लड़कियां ही नहीं, उनके परिवार वाले भी पहाड़ी हो पर देहरादून वाला हो .. को पहली प्राथमिकता दे रहे हैं। देहरादून में जमीन और मकान होने पर, चट मंगनी और पट ब्याह हो रहा है। अगर, ऐसा नहीं है तो गांवों व कस्बों के बेरोजगार तो दूर, अच्छी कमाई वाले व रोजगार वाले युवा भी सेहरा बंधने का इंतजार करते हुए तय उम्र को पार कर रहे हैं।
केस-1) विकास ने बताया कि गत वर्ष 16 अक्तूबर से 20 नवंबर तक घर पर मेरे विवाह के लिए रिश्तेदार व सगे-संबंधियों के माध्यम से 22 जन्मपत्रियां आईं, जिसमें 16 जुड़ी। एक-एककर संबंधित लड़कियों और उनके परिजनों से संपर्क किया। लेकिन किसी ने भी शादी के लिए सीधे तौर पर हां नहीं कहा। उनकी और उनके परिवार की पहली प्राथमिकता देहरादून में जमीन व मकान होना था।
केस-2 ) हरेंद्र ने बताया कि बीते पांच वर्ष से उसके परिवार वाले बड़े भाई के विवाह के लिए रिश्ता ढूंढ रहे हैं। इस दौरान न जाने कितनी जगह बातचीत हो चुकी है। लेकिन देहरादून में जमीन व मकान नहीं होने से शादी नहीं हो पा रही है। अब वह भी 31 वर्ष का हो चुका है और उसके सामने भी यही समस्या आ रही है।
उक्त, दो मामले ही नहीं, रुद्रप्रयाग जिले में 30 से 36 वर्ष तक के ऐसे सैकड़ों युवा हैं, जिनके विवाह में देहरादून रोड़ा बना हुआ है। जबकि, वह अच्छा कमाने के साथ उनकी अपने घर, गांव में भी अच्छी प्रॉपर्टी और शहर से बेहतर जीवनस्तर है। नवंबर 2000 में उत्तराखंड राज्य बनने के बाद पहाड़ के आमजन की जो उम्मीदें जगी थी, वह पूरी हुईं तो नहीं हुईं। लेकिन देहरादून की दौड़ ने गांवों को जरूर खाली कर दिया।
लोकगायक गढ़रत्न नरेंद्र सिंह नेगी के गीत सब्बी धाणी देहरादून, होणी-खाणी देहरादून, आज सात फेरों के बंधन के लिए भी अनिवार्य पसंद बन गया है। अब, रुद्रप्रयाग जिले के अगस्त्यमुनि, जखोली और ऊखीमठ ब्लॉक के दूरस्थ गांव से लेकर चमोली, टिहरी, पौड़ी सहित अन्य जनपदों के गांवों की लड़कियां और उनके परिजन भी अपने लिए पहाड़ी वर तो ढूंढ रहे हैं। लेकिन देहरादून वाला हो..उनकी प्राथमिकता में शामिल है। देहरादून में जमीन, मकान सामाजिक स्तर बन गया है। ऐसे में गांव, कस्बों में अच्छा रोजगार, प्रॉपर्टी के कोई मायने नहीं रह गए हैं। एक युवा ने बताया कि उनके गांव में 12 युवा हैं, जिनकी उम्र 30 से 36 वर्ष हो चुकी है, लेकिन देहरादून में जमीन, मकान नहीं होने से उनकी शादी नहीं हो पा रही है। बताया कि उनके गांव के आसपास के चार, पांच अन्य गांवों में भी 70 से अधिक युवा हैं, जो अच्छी प्राइवेट और सरकारी नौकरी कर रहे हैं। लेकिन सेहरा बंधने के इंतजार में हैं।
नौकरी लगने पर पहाड़ तो चढ़ रहीं बेटियां पर विवाह के लिए नहीं…
शिक्षा, स्वास्थ्य, बैंक सहित अन्य संस्थानों में सरकारी नौकरी लगने पर बेटियां दूरस्थ क्षेत्रों में सेवाएं देने के लिए पहुंच रहीं हैं। लेकिन जब उनके विवाह की बात हो रही है, तो वह भी अपनी पहली प्राथमिकता देहरादून बता रही हैं। जागो हिमालयन संस्था के संस्थापक रमेश चंद्र थपलियाल बताते हैं कि चिकित्सा और शिक्षा जैसी मूलभूत सुविधाओं को लेकर बेटियां देहरादून सहित अन्य शहरों में जीवनयापन को प्राथमिकता दे रही हैं।
शादी के लिए देहरादून, एक स्टेटस सिंबल नहीं बल्कि कुछ लड़कियां और उनके परिजन सुविधाओं के लिहाज से पहली पसंद मान रहे हैं। कुछ के लिए यह शहरी चकाचौंध को लेकर जमीन, मकान तक सीमित है। देहरादून राजधानी बनने से वहां, काफी विकास हुआ है, जिससे कई लोग अब अपने बेटे-बेटियों के रिश्ते-नातेदारी में भी उसे शामिल कर रहे हैं। अच्छे समाज की परिकल्पना के लिए यह किसी स्तर पर उचित नहीं है। समाज का बेहतर ताना-बाना तभी बनेगा, शहर ही नहीं, गांव, कस्बे भी गुलजार हों। – डाॅ. किरण डंगवाल, विभागाध्यक्ष समाजशास्त्र, हेमवती नंदन बहुगुणा केंद्रीय विवि, श्रीनगर गढ़वाल
यह खबर विनय बहुगुणा, पत्रकार अमर उजाला, रुद्रप्रयाग से साभारित है।