अगस्त्यमुनि मंदिर में हुआ भव्य बलिराज बग्वाल का आयोजन, दीपोत्सव के साथ हुई वामन नारायण की पूजा

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हरीश गुसांई  / अगस्त्यमुनि।

 दस्तक पहाड न्यूज ब्यूरो। दीपावली के शुभ अवसर पर अगस्त्यमुनि स्थित भगवान मुनि महाराज के मन्दिर में बलिराज पूजन का आयोजन विधि विधान से सम्पन्न हुआ। भगवान विष्णु के वामन स्वरूप की यह पूजा केदारखण्ड में केवल महर्षि अगस्त्य मन्दिर अगस्त्यमुनि में ही की जाती है। इसलिए क्षेत्र की जनता में इसका बड़ा धार्मिक महत्व है। यह सभी भक्तों का सामूहिक रूप में दीपावली मनाने का अद्भुत नजारा भी होता है। इस अवसर पर मुनि महाराज के मन्दिर को लगभग एक हजार दियों से सजाया गया। जिसमें कई भक्तों ने अपना सहयोग दिया और इसमें लगभग तीन घण्टे का समय लगा। देर सांय को आरती हुई और सैकड़ों भक्तों ने क्षेत्र एवं अपने परिवार की सुख समृद्धि की कामना कर वामन भगवान एवं बलिराज की पूजा अर्चना की और फुलझड़ियां एवं पटाके जलाकर दीपावली का शुभारम्भ किया। वहीं भक्तों ने भगवान वामन के आशीर्वाद स्वरूप मन्दिर से जलते दिए घर ले गये और अपने घरों के दीपों को जलाकर लक्ष्मीपूजन किया।

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पलायन का असर इस धार्मिक एवं पौराणिक आयोजन पर भी दिखा पूर्व में इस अवसर का सा़क्षी बनने के लिए बड़ी संख्या में भक्तजन मन्दिर परिसर में पहुंचते थे। परन्तु अब यह संख्या कुछ सौ तक ही सीमित रह गई है। फिर भी उपस्थित श्रद्धालुओं की भक्ति में कोई कमी नहीं थी तथा बड़ी संख्या में भक्तजन बलिराज पूजन के साक्षी बनने के लिए मन्दिर में पहुंचे। अगस्त्य मन्दिर के मठाधीश पं0 योगेश बैंजवाल, पुजारी पं0 सुनील बेंजवाल ने बताया कि बलिराज पूजन की यह प्रथा यहां सदियों से चली आ रही है। इस प्रथा के चलन में पौराणिकता के साथ ही सामाजिकता का भी पुट है। इस अवसर पर मन्दिर के प्रांगण में पुजारी भक्तों के साथ विष्णु भगवान को मध्यस्थ रखकर चावल और धान से राजा बलि का घोड़ा, उसके ऊपर राजा बलि व उनके साथ सामने दैत्यों के राज गुरू शुक्राचार्य, जिनके एक हाथ में कमंडल दूसरे और हाथ से राजा बलि को सावधान करते हुए की मुद्रा, की आकृति चित्र बनाया जाता है, जिसको भक्तों द्वारा अपने घरों से लाये सैकड़ों दियों से सजाया जाता है। पूर्ण विधि विधान से भगवान वावन जी का पूजन और मुनि महाराज की आरती की जाती है। आरती के साथ दीपोत्सव प्रारम्भ होता है। जिसके साक्षी सैकड़ों की संख्या में उपस्थित भक्तजन होते हैं।

पहले इस अवसर पर निकटवर्ती गांवों से ग्रामीण मन्दिर परिसर में भैलो खेलने आते थे और सामूहिक रूप से दीपावली मनाते थे। समय के साथ साथ दीपावली का स्वरूप भी बदलने लगा है। जिसका असर इस प्रथा पर भी पड़ा है, फिर भी कई स्थानीय लोग इस अवसर पर मन्दिर प्रांगण में एकत्रित होकर फुलझड़ियां, अनार एवं पटाके जलाकर दीपावली मनाते हैं। मन्दिर को सजाने एवं संवारने में, रजत थपलियाल, राहुल रावत, सुशील गोस्वामी, अखिलेश गोस्वामी आदि सहित कई नन्हें भक्तों ने भी सहयोग किया।

बॉक्स – यह है कथा –

पौराणिक कथा के अनुसार असुरों में एक राजा बलि हुए जो कि अपनी दानवीरता के लिए प्रसिद्ध थे। देवता इस डर से कि कहीं राजा बलि स्वर्ग पर विजय प्राप्त न कर दे विष्णु भगवान से इससे मुक्ति दिलाने की प्रार्थना करते है। इसी प्रार्थना को पूरा करने के लिए विष्णु भगवान वामन का रूप धरकर राजा बलि के पास जाकर तीन पग भूमि दान स्वरूप मांगते हैं। सभी मंत्रियों एवं गुरू शुक्राचार्य के लाख मना करने के बाबजूद दानवीर राजा बलि तीन पग जमीन देने के लिए तैयार हो जाते हैं। भगवान वामन विशाल स्वरूप में आकर एक पग में पृथ्वी तथा एक पग में आकाश को नापकर तीसरे पग के लिए भूमि मांगते हैं। राजा बलि तीसरे पग को अपने सिर पर रखने को कहते है। भगवान वामन के ऐसा करते ही राजा बलि पाताल में चले जाते हैं। और इस प्रकार देवताओं को राजा बलि से छुटकारा मिल जाता है। भगवान वामन राजा बलि की दानवीरता से प्रसन्न होकर वर मांगने को कहते हैं। राजा बलि मांगते हैं कि कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी, चतुर्दशी एवं अमावस्या के तीन दिन धरती पर मेरा शासन हो। इन तीन दिनों तक लक्ष्मी जी का वास धरती पर हो तथा मेरी समस्त जनता सुख समृद्धि से भरपूर हो। भगवान उसकी मनोकामनापूर्ण करते हैं। तब से कहा जाता है कि इन तीन दिनों में पृथ्वी पर राजा बलि का शासन रहता है।

 

 

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