केदारनाथ उपचुनाव के अन्तिम दौर में कांग्रेस एवं भाजपा ने झोंकी अपनी पूरी ताकत,निर्दलीय त्रिभुवन चौहान, उक्रांद के आशुतोष ने मुकाबले में लगाया जोर, जानिए क्या है केदारनाथ में राजनीतिक समीकरण
1 min read16/11/2024 8:48 am
हरीश गुसांई / अगस्त्यमुनि।
दस्तक पहाड न्यूज। । केदारनाथ उपचुनाव के अन्तिम दौर में कांग्रेस एवं भाजपा ने अपनी पूरी ताकत झौंक दी है। निर्दलीय त्रिभुवन चौहान एवं उक्रांद के आशुतोष मुकाबले में आने को पूरा जोर लगा रहे हैं। फिर भी मुख्य मुकाबला भाजपा व कांग्रेस में ही नजर आ रहा है। जिससे केदारनाथ का मुकाबला अब रोचक मोड़ पर आ गया है। शुरूआती दौर में यह मुकाबला भाजपा की ओर एकतरफा नजर आ रहा था परन्तु धीरे धीरे कांग्रेस ने इसे कांटे का मुकाबला बना दिया है।
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अब चुनाव प्रचार को जहां चार दिन बाकी बचे हैं। दोनों दलों ने रणनीति के तहत अपने कमजोर पक्ष को मजबूत करने की दिशा में काम करना प्रारम्भ कर दिया है। परन्तु मतदाताओं की खामोशी से हर दल बैचेन है। ऐसे में मतदान के दिन किसका पलड़ा भारी रहेगा कहा नहीं जा सकता है।
कांग्रेस की ओर से प्रत्याशी मनोज रावत के पक्ष में प्रदेश अध्यक्ष करना माहरा के साथ ही सभी विधायक, पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत, नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल, प्रीतम सिंह, हरक सिंह रावत, रणजीत रावत सहित तमाम बड़े नेता एवं कार्यकर्ता धुंवाधार चुनाव प्रचार कर रहे हैं। स्थानीय मुद्दों पर बात कर जनता को कंाग्रेस के पक्ष में मतदान करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। कांग्रेस ने अपना चुनाव प्रचार मुख्यतः केदारनाथ पर ही फोकस किया है। केदारनाथ धाम को दिल्ली ले जाने से लेकर केदारनाथ मन्दिर में सोना चोरी का आरोप हो या केदारनाथ यात्रा में कुप्रबन्धन के कारण हुआ नुकसान या केदारनाथ यात्रा को कुमाऊं ले जाने के आरोप हों। तुंगनाथ घाटी में स्थानीय लोगों का रोजगार छीनने से लेकर या यात्रा मार्ग पर अतिक्रमण के नाम पर स्थानीय लोगों को बेरोजगार करना। तमाम बड़े नेता इन्हीं मुद्दे पर भाजपा को घेर रहे हैं और जनता को समझा रहे हैं कि भाजपा ने केदारनाथ की जनता के साथ छल किया है। धीरे धीरे ही सही लेकिन कांग्रेस अब चुनाव को बराबरी में ले आई है। कांग्रेस को अगर कोई कमी खल रही है तो वह है मजबूत संगठन की कमी और कांग्रेस प्रत्याशी मनोज रावत का पिछले कार्यकाल में जनता से दूरी। फिर भी कांग्रेस ने अब उन क्षेत्रों में अपना फोकस बढ़ा दिया है जहां उसे पिछली बार कम वोट मिले थे।
भाजपा ने भी चुनाव प्रचार के अन्तिम चरण में सरकार एवं संगठन के साथ ही कार्यकर्ताओं को एकजुटता से चुनाव लड़ने के लिए तैयार कर लिया है। सरकार की ओर से जहां मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कमान सम्भाली है वहीं संगठन की ओर से प्रदेश अध्यक्ष महेन्द्र भट्ट ने कमर कसी है। इस उपचुनाव में भाजपा ने लीक से हटकर दिवंगत विधायक के परिजनों को टिकट न देकर पूर्व विधायक आशा नौटियाल को मौका दिया है। जिससे शुरू से ही भाजपा थोड़ा असमंजस में थी। परन्तु भाजपा अपने मजबूत संगठन के बलबूते चुनाव में शुरू से ही बढ़त बनाती नजर आ रही थी। परन्तु लगातार कांग्रेस के ग्राफ को बढ़़ता देख बैचेन होने लगी है। भाजपा अभी तक विकास कार्यों को लेकर चुनाव प्रचार में थी। विगत दिनों मुख्यमंत्री द्वारा केदारनाथ हेतु 600 करोड़ रू0 से अधिक की विकास कार्यों की घोषणाओं से भाजपा गद्गद थी। परन्तु अब भाजपा अपने मुख्य ऐजेण्डे पर आ गई है।
कांग्रेस पर मन्दिर के नाम पर राजनीति करने का आरोप लगाकर कांग्रेस केदारनाथ धाम पर लगाये जा रहे आरोपों की धार कुन्द करने का प्रयास कर रही है। परन्तु कहीं न कहीं मुख्यमंत्री भी डरे हुए हैं तभी तो वे सौगन्ध खाकर कह रहे हैं कि उन्होंने केदारनाथ धाम को दिल्ली ले जाने का कार्य नहीं किया है। कांग्रेस को सनातनी विरोधी बताकर हिन्दू वोटों पर पकड़ मजबूत करने की कोशिश कर रही है। अब चुनाव प्रचार के अन्तिम दौर में उसने अनुसूचित जाति के वोटरों को लुभाने के लिए कमर कस ली है। दरअसल केदारनाथ विधान सभा में 17 हजार से अधिक वोटर इसी वर्ग से आते हैं और यह वर्ग हमेशा से कांग्रेस का परम्रागत वोटर माना जाता रहा है। हांलांकि पिछले कई चुनावों में इस वर्ग का वोट बंटा है। जिसका अधिकांश हिस्सा निर्दलीय कुलदीप रावत ने समेटा था। इस बार कुलदीप रावत भाजपा में शामिल होकर उनके पक्ष में मतदान करने की अपील कर रहे हैं। ऐसे में संशय है कि कुलदीप रावत को मिलने वाला अनुसूचित जाति का वोट भाजपा को मिल पायेगा। इन वोटों को समेटन की कवायद करते हुए भाजपा ने एक अनुसूचित जाति स्वाभिमान सम्मेलन आयोजित किया जिसमें मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस वर्ग को लुभाने के लिए हर सम्भव प्रयास किए हैं। साथ ही गढ़वाल मण्डल के अपने चार अनुसूचित जाति के विधायकों को भी इस हेतु क्षेत्र में प्रचार के लिए झौंक दिया है। यही नहीं केन्द्रीय राज्य मंत्री अजय टम्टा एवं प्रदेश की केबिनेट मंत्री रेखा आर्य भी अनुसूचित जाति के वोटरों को साधने तथा उन्हें भाजपा के पक्ष में मतदान करने को प्रेरित कर रहे हैं। भाजपा अब अन्तिम दिनों में मुख्यमंत्री की दो सभाओं के साथ ही अपने सभी मन्त्रियों एवं संगठन के पदाधिकारियों को चुनावी मैदान में उतारने जा रही है। जिससे चुनावी पारा अभी और बढ़ने की सम्भावनायें हैं। अब तीखे आरोप प्रत्यारोपों का दौर भी शुरू होगा। पहाड़ों में अक्सर देखा जाता है कि कुद लोग चुनाव प्रारम्भ होते ही तय कर लेते है कि वोट कहां देना है, कुछ लोग चुनाव प्रचार के दिनों में निर्णय लेते हैं परन्तु कुछ लोग चुनाव प्रचार के अन्तिम दिनों में ही निर्णय लेते हैं। जो कि 3 से 5 प्रतिशत तक होते हैं। जिन्हें फ्लोटिंग वोट कहा जाता है। और यही वोट निर्णायक साबित होता है। अब भाजपा व कांग्रेस की नजर इन्हीं वोटों पर रहेगी।
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