साड़ियां, बर्तन, कुर्सियां और टाइल्स बांटकर सारी वार्ड में वोटरों को रिझाने के लिए पानी की तरह बहा रहे पैसा, क्या है इस जनसेवा की हकीकत
1 min read12/07/2025 3:31 pm
दस्तक पहाड़ न्यूज रुद्रप्रयाग। त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों की सरगर्मियों के बीच जिला पंचायत की एक वार्ड सीट से जुड़े प्रत्याशी द्वारा खुलेआम बांटे जा रहे “बर्तन” और “कुर्सियां” इन दिनों क्षेत्र में चर्चा का विषय बने हुए हैं। इससे पहले भी इसी प्रत्याशी द्वारा एक गांव में करीब दो लाख रुपये की टाइल्स वितरित किए जाने की बात सामने आई थी, वहीं महिलाओं को रिझाने के लिए साड़ियां भी बांटी गई जिसे समाजसेवा का जामा पहनाकर प्रचारित किया गया। चुनाव के ठीक पहले इस तरह की सामग्री वितरण को लेकर सवाल उठ रहे हैं कि क्या यह मतदाताओं को प्रभावित करने का एक सुनियोजित प्रयास है? स्थानीय लोगों का कहना है कि अगर यह वास्तव में जनसेवा का भाव होता, तो यह काम चुनाव की घोषणा से पहले ही क्यों नहीं किए गए ?
दरअसल सारी वार्ड में आज सुबह द्वारी धार में बर्तन कुर्सियां ले जारी एक पिकअप वाहन को ग्रामीणों ने पकड़ लिया, जो नजदीक के एक गांव में ले जाया जा रहा था, इससे पहले साड़ियां भी बांटी गई। कुछ ग्रामीणों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि बर्तन, कुर्सियां और टाइल्स जैसी वस्तुओं का वितरण सुनियोजित ढंग से उन्हीं गांवों में किया जा रहा है जहां से अधिकाधिक वोट मिलने की उम्मीद है। चिंता की बात यह है कि ऐसे मामलों में चुनाव आचार संहिता की अनदेखी होती दिखाई दे रही है। सवाल यह भी उठता है कि इतना पैसा आखिर आ कहां से रहा है? एक जिला पंचायत प्रत्याशी के पास इतनी बड़ी मात्रा में सामान बांटने की क्षमता क्या आम बात है?
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चुनाव आयोग की भूमिका पर उठ रहे सवाल
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इन घटनाओं के बाद क्षेत्रीय जनता और जागरूक मतदाता यह जानना चाहते हैं कि क्या निर्वाचन आयोग इस पूरे मामले का संज्ञान लेगा? क्या जांच कर यह सुनिश्चित किया जाएगा कि चुनावी प्रक्रिया पारदर्शिता के साथ हो और मतदाता किसी भी तरह के लालच में न आएं?
अगर इन घटनाओं पर समय रहते रोक नहीं लगी, तो यह न सिर्फ चुनावी मर्यादा का उल्लंघन होगा, बल्कि ईमानदारी से चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशियों के लिए भी अनुचित प्रतिस्पर्धा का कारण बनेगा।
समाज सेवा के नाम पर हो रहे इस प्रकार के “सामग्री वितरण” पर नजर रखने और निर्वाचन आयोग द्वारा सख्त कार्रवाई की आवश्यकता महसूस की जा रही है। क्षेत्रीय प्रशासन और संबंधित अधिकारी अगर अब भी मौन रहते हैं, तो यह लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए चिंताजनक संकेत होगा।
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