सितंबर में इतनी बारिश क्यों? उत्तराखंड में 24 घंटे में अचानक इतनी तबाही कैसे मची
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18/09/20253:09 pm
सितंबर 2025 में उत्तर भारत में भारी बारिश ने तबाही मचाई, देहरादून में 264 मिमी और हिमाचल में 141 मिमी बारिश हुई. पश्चिमी विक्षोभों का देर तक रहना और बंगाल की खाड़ी की नम हवाएं इसका कारण हैं. जलवायु परिवर्तन से बारिश कम लेकिन तेज हो रही है, जिससे बाढ़ और भूस्खलन बढ़े. यह मौसम अब अनिश्चित और खतरनाक हो रहा है।
इस सितंबर में उत्तर भारत के कई इलाकों में लगातार भारी बारिश ने कहर बरपा दिया है. उत्तराखंड के देहरादून में सिर्फ 24 घंटों में 264 मिमी बारिश दर्ज की गई, जबकि हिमाचल प्रदेश के कुछ हिस्सों में 141 मिमी बारिश हुई. देहरादून में भारी बारिश ने दुकानें, घरों को पानी में डुबो दिया. 100 मीटर लंबी सड़क को बहा ले गई.भारतीय मौसम विभाग (IMD) ने इसे क्लाउडबर्स्ट नहीं कहा, लेकिन इस असामान्य रूप से गीले मौसम ने लोगों के मन में सवाल खड़े कर दिए हैं कि मॉनसून के बाद का महीना इतनी तेज बारिश क्यों देख रहा है. विशेषज्ञों का कहना है कि मौसम की बदलती प्रक्रियाएं और जलवायु परिवर्तन (क्लाइमेट चेंज) इसका बड़ा कारण हैं।
वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी (WIHG) की जलवायु वैज्ञानिक स्वप्नमिता चौधरी के अनुसार, IMD ने ENSO-न्यूट्रल स्थितियों के साथ सामान्य मानसून की भविष्यवाणी की थी. आमतौर पर, पश्चिमी विक्षोभ- जो पश्चिमी हिमालयों में बारिश और बर्फ लाते हैं- अप्रैल के बाद चले जाते हैं. लेकिन इस साल, ये अगस्त और सितंबर तक बने रहे. अगस्त तक 10 से ज्यादा पश्चिमी विक्षोभ देखे गए. ये पीछे नहीं हट रहे, जो क्लाइमेट चेंज का साफ संकेत है।ये विक्षोभ हिमालयी राज्यों में तेज बारिश का कारण बने, जिससे बाढ़, भूस्खलन और मलबा बहना जैसी आपदाएं आईं. वैज्ञानिक बताते हैं कि पिछले दशक में हिमालयों में बारिश का पैटर्न बदल गया है. पहले धीमी और लगातार बारिश होती थी, लेकिन अब कम दिनों में ही तेज और छोटी-छोटी बौछारें आ रही हैं। 2025 में IMD के अनुसार मॉनसून के दौरान 15 पश्चिमी विक्षोभ सक्रिय रहे, जो सामान्य से ज्यादा हैं. इससे उत्तर-पश्चिम भारत में 180% ज्यादा बारिश हुई।
कुल बारिश कम हो रही, लेकिन तेज हो रही घटनाएं
लंबे समय के जलवायु डेटा से पता चलता है कि सालाना कुल बारिश कम हो रही है, लेकिन जो बारिश आती है, वह हिंसक बौछारों में आ रही है. चौधरी कहती हैं कि बारिश वाले दिन कम हो रहे हैं, लेकिन हर घटना की तीव्रता बढ़ गई है. इससे ‘हेजर्ड कैस्केड’ बनता है- एक आपदा दूसरी को जन्म देती है, जैसे फ्लैश फ्लड के बाद भूस्खलन. 2025 के मॉनसून में हिमाचल प्रदेश में 431 मिमी बारिश (1949 के बाद सबसे ज्यादा) दर्ज हुई, जिससे 308 मौतें हुईं. पंजाब, हरियाणा और जम्मू-कश्मीर में भी 50% ज्यादा बारिश ने बाढ़ ला दी।
IMD का मत: बंगाल की खाड़ी से आने वाली हवाएं
पश्चिमी विक्षोभ एक कारण हैं, लेकिन IMD के अनुसार बंगाल की खाड़ी से आने वाली नम हवाएं भी जिम्मेदार हैं. ये हवाएं हिमालय के निचले इलाकों की ओर बढ़ रही हैं. पहाड़ों से टकरा रही हैं, जिससे स्थानीय स्तर पर भारी बारिश हो रही है. IMD अधिकारियों ने कहा कि पूर्व से पश्चिम (ईस्टरलीज) और पश्चिम से पूर्व (वेस्टर्लीज़) हवाओं या वायु द्रव्यों का मेल इस क्षेत्र में भारी वर्षा का कारण बना, जो सामान्य है। देहरादून के IMD सेंटर के प्रमुख सीएस तोमर ने बताया कि सूखी वेस्टर्ली हवाओं और नम ईस्टरली हवाओं का टकराव अगले 24 घंटों तक जारी रहेगा. सितंबर 2025 में IMD ने उत्तर-पश्चिम भारत के लिए रेड अलर्ट जारी किया, जिसमें हिमाचल, उत्तराखंड, हरियाणा और दिल्ली शामिल हैं।
बढ़ते तापमान से संकट और गहरा
एक और बड़ा कारण है तापमान में लगातार बढ़ोतरी. हिमालयी क्षेत्रों के डेटा से पता चलता है कि लंबे समय में बारिश कम हो रही है, लेकिन तापमान बढ़ रहा है. इससे वातावरण ज्यादा नमी सोख सकता है, जिससे अचानक तेज बारिश होती है. गर्म मौसम ऊंचाई वाले इलाकों में बर्फ की जगह बारिश ला रहा है. 2025 में अरब सागर का तापमान 1.2-1.4 डिग्री बढ़ा, जिससे पश्चिमी विक्षोभों में ज्यादा नमी आई. इससे बिहार, हिमाचल और दिल्ली में बाढ़ और ओलावृष्टि हुई।
ऊंचाई में बारिश का बदलाव
हाल के वर्षों की एक चौंकाने वाली बात है बारिश का ऊंचाई में शिफ्ट होना. 2000 मीटर से ऊपर के इलाके- जहां पहले हल्की बर्फबारी या बूंदाबांदी होती थी- अब तेज बारिश झेल रहे हैं. चौधरी बताती हैं कि 4000 मीटर से ऊपर के क्षेत्र जो हमेशा बर्फ से ढके रहते थे, अब भारी बारिश देख रहे हैं।इससे नाजुक पहाड़ी पारिस्थितिकी तंत्र बिगड़ रहा है. ऊंचाई वाले इलाकों में अचानक आपदाओं का खतरा बढ़ गया है. 2025 में क्लाउडबर्स्ट जैसी घटनाओं में ‘मिनी क्लाउडबर्स्ट’ बढ़े हैं, जैसा कि IMD के डायरेक्टर जनरल मृत्युंजय मोहपात्रा ने कहा।
जलवायु परिवर्तन का असर साफ दिख रहा
यह सब जलवायु परिवर्तन का नतीजा है, जो सितंबर की बारिश को बदल रहा है. जो महीना मॉनसून और सर्दी के बीच का संक्रमण काल था, अब वह अस्थिर और चरम मौसम का समय बन गया है. ऊंचाई पर तेज बारिश और पश्चिमी विक्षोभों का सामान्य चक्र टूटना भारत के पहाड़ी राज्यों के लिए बाढ़, भूस्खलन और अप्रत्याशित चरम मौसम की चुनौतियां बढ़ा रहा है. विशेषज्ञ कहते हैं कि ग्लोबल वॉर्मिंग से सबट्रॉपिकल जेट स्ट्रीम मजबूत हो गई है, जिससे विक्षोभ ज्यादा गहरे और चौड़े हो रहे हैं।
सर्दियों पर क्या असर पड़ेगा?
मॉनसून का देरी से पीछे हटना और पश्चिमी विक्षोभों का लंबा रहना आगामी सर्दी को भी प्रभावित कर सकता है. लगातार बादल छाए रहने से ऊंचे इलाकों में ठंड और बर्फबारी ज्यादा हो सकती है, लेकिन वैज्ञानिक कहते हैं कि ट्रेंड की पुष्टि के लिए ज्यादा डेटा की जरूरत है. 2025 की सर्दी में IMD ने सूखेपन की चेतावनी दी थी, लेकिन अब ज्यादा नमी से बर्फबारी बढ़ सकती है।2025 का सितंबर उत्तर भारत के लिए एक सबक है कि जलवायु परिवर्तन कैसे मौसम को अनिश्चित बना रहा है. देहरादून और हिमाचल जैसे इलाकों में 15 मौतें, सैकड़ों लापता और हजारों बेघर हो चुके हैं. IMD के पूर्वानुमान के मुताबिक, सितंबर में 109% बारिश सामान्य से ज्यादा होगी।
सरकार को आपदा प्रबंधन मजबूत करना होगा, जैसे बेहतर पूर्व चेतावनी सिस्टम और जल निकासी. किसानों को फसलों की रक्षा के लिए सलाह दी जा रही है. कुल मिलाकर, क्लाइमेट चेंज से लड़ने के लिए भारत को वैश्विक स्तर पर कार्बन उत्सर्जन कम करने और स्थानीय अनुकूलन पर ध्यान देना होगा।
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सितंबर 2025 में उत्तर भारत में भारी बारिश ने तबाही मचाई, देहरादून में 264 मिमी और हिमाचल में 141 मिमी बारिश हुई. पश्चिमी विक्षोभों का देर तक रहना और बंगाल की
खाड़ी की नम हवाएं इसका कारण हैं. जलवायु परिवर्तन से बारिश कम लेकिन तेज हो रही है, जिससे बाढ़ और भूस्खलन बढ़े. यह मौसम अब अनिश्चित और खतरनाक हो रहा है।
इस सितंबर में उत्तर भारत के कई इलाकों में लगातार भारी बारिश ने कहर बरपा दिया है. उत्तराखंड के देहरादून में सिर्फ 24 घंटों में 264 मिमी बारिश दर्ज की गई, जबकि
हिमाचल प्रदेश के कुछ हिस्सों में 141 मिमी बारिश हुई. देहरादून में भारी बारिश ने दुकानें, घरों को पानी में डुबो दिया. 100 मीटर लंबी सड़क को बहा ले गई.भारतीय मौसम
विभाग (IMD) ने इसे क्लाउडबर्स्ट नहीं कहा, लेकिन इस असामान्य रूप से गीले मौसम ने लोगों के मन में सवाल खड़े कर दिए हैं कि मॉनसून के बाद का महीना इतनी तेज बारिश
क्यों देख रहा है. विशेषज्ञों का कहना है कि मौसम की बदलती प्रक्रियाएं और जलवायु परिवर्तन (क्लाइमेट चेंज) इसका बड़ा कारण हैं।
पश्चिमी विक्षोभ (वेस्टर्न डिस्टर्बेंस) पीछे नहीं हट रहे
वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी (WIHG) की जलवायु वैज्ञानिक स्वप्नमिता चौधरी के अनुसार, IMD ने ENSO-न्यूट्रल स्थितियों के साथ सामान्य मानसून की
भविष्यवाणी की थी. आमतौर पर, पश्चिमी विक्षोभ- जो पश्चिमी हिमालयों में बारिश और बर्फ लाते हैं- अप्रैल के बाद चले जाते हैं. लेकिन इस साल, ये अगस्त और सितंबर तक
बने रहे. अगस्त तक 10 से ज्यादा पश्चिमी विक्षोभ देखे गए. ये पीछे नहीं हट रहे, जो क्लाइमेट चेंज का साफ संकेत है।ये विक्षोभ हिमालयी राज्यों में तेज बारिश का
कारण बने, जिससे बाढ़, भूस्खलन और मलबा बहना जैसी आपदाएं आईं. वैज्ञानिक बताते हैं कि पिछले दशक में हिमालयों में बारिश का पैटर्न बदल गया है. पहले धीमी और
लगातार बारिश होती थी, लेकिन अब कम दिनों में ही तेज और छोटी-छोटी बौछारें आ रही हैं। 2025 में IMD के अनुसार मॉनसून के दौरान 15 पश्चिमी विक्षोभ सक्रिय रहे, जो
सामान्य से ज्यादा हैं. इससे उत्तर-पश्चिम भारत में 180% ज्यादा बारिश हुई।
कुल बारिश कम हो रही, लेकिन तेज हो रही घटनाएं
लंबे समय के जलवायु डेटा से पता चलता है कि सालाना कुल बारिश कम हो रही है, लेकिन जो बारिश आती है, वह हिंसक बौछारों में आ रही है. चौधरी कहती हैं कि बारिश वाले
दिन कम हो रहे हैं, लेकिन हर घटना की तीव्रता बढ़ गई है. इससे 'हेजर्ड कैस्केड' बनता है- एक आपदा दूसरी को जन्म देती है, जैसे फ्लैश फ्लड के बाद भूस्खलन. 2025 के
मॉनसून में हिमाचल प्रदेश में 431 मिमी बारिश (1949 के बाद सबसे ज्यादा) दर्ज हुई, जिससे 308 मौतें हुईं. पंजाब, हरियाणा और जम्मू-कश्मीर में भी 50% ज्यादा बारिश ने बाढ़
ला दी।
IMD का मत: बंगाल की खाड़ी से आने वाली हवाएं
पश्चिमी विक्षोभ एक कारण हैं, लेकिन IMD के अनुसार बंगाल की खाड़ी से आने वाली नम हवाएं भी जिम्मेदार हैं. ये हवाएं हिमालय के निचले इलाकों की ओर बढ़ रही हैं.
पहाड़ों से टकरा रही हैं, जिससे स्थानीय स्तर पर भारी बारिश हो रही है. IMD अधिकारियों ने कहा कि पूर्व से पश्चिम (ईस्टरलीज) और पश्चिम से पूर्व (वेस्टर्लीज़)
हवाओं या वायु द्रव्यों का मेल इस क्षेत्र में भारी वर्षा का कारण बना, जो सामान्य है। देहरादून के IMD सेंटर के प्रमुख सीएस तोमर ने बताया कि सूखी वेस्टर्ली
हवाओं और नम ईस्टरली हवाओं का टकराव अगले 24 घंटों तक जारी रहेगा. सितंबर 2025 में IMD ने उत्तर-पश्चिम भारत के लिए रेड अलर्ट जारी किया, जिसमें हिमाचल, उत्तराखंड,
हरियाणा और दिल्ली शामिल हैं।
बढ़ते तापमान से संकट और गहरा
एक और बड़ा कारण है तापमान में लगातार बढ़ोतरी. हिमालयी क्षेत्रों के डेटा से पता चलता है कि लंबे समय में बारिश कम हो रही है, लेकिन तापमान बढ़ रहा है. इससे
वातावरण ज्यादा नमी सोख सकता है, जिससे अचानक तेज बारिश होती है. गर्म मौसम ऊंचाई वाले इलाकों में बर्फ की जगह बारिश ला रहा है. 2025 में अरब सागर का तापमान 1.2-1.4
डिग्री बढ़ा, जिससे पश्चिमी विक्षोभों में ज्यादा नमी आई. इससे बिहार, हिमाचल और दिल्ली में बाढ़ और ओलावृष्टि हुई।
ऊंचाई में बारिश का बदलाव
हाल के वर्षों की एक चौंकाने वाली बात है बारिश का ऊंचाई में शिफ्ट होना. 2000 मीटर से ऊपर के इलाके- जहां पहले हल्की बर्फबारी या बूंदाबांदी होती थी- अब तेज बारिश
झेल रहे हैं. चौधरी बताती हैं कि 4000 मीटर से ऊपर के क्षेत्र जो हमेशा बर्फ से ढके रहते थे, अब भारी बारिश देख रहे हैं।इससे नाजुक पहाड़ी पारिस्थितिकी तंत्र
बिगड़ रहा है. ऊंचाई वाले इलाकों में अचानक आपदाओं का खतरा बढ़ गया है. 2025 में क्लाउडबर्स्ट जैसी घटनाओं में 'मिनी क्लाउडबर्स्ट' बढ़े हैं, जैसा कि IMD के
डायरेक्टर जनरल मृत्युंजय मोहपात्रा ने कहा।
जलवायु परिवर्तन का असर साफ दिख रहा
यह सब जलवायु परिवर्तन का नतीजा है, जो सितंबर की बारिश को बदल रहा है. जो महीना मॉनसून और सर्दी के बीच का संक्रमण काल था, अब वह अस्थिर और चरम मौसम का समय बन गया
है. ऊंचाई पर तेज बारिश और पश्चिमी विक्षोभों का सामान्य चक्र टूटना भारत के पहाड़ी राज्यों के लिए बाढ़, भूस्खलन और अप्रत्याशित चरम मौसम की चुनौतियां बढ़ा
रहा है. विशेषज्ञ कहते हैं कि ग्लोबल वॉर्मिंग से सबट्रॉपिकल जेट स्ट्रीम मजबूत हो गई है, जिससे विक्षोभ ज्यादा गहरे और चौड़े हो रहे हैं।
सर्दियों पर क्या असर पड़ेगा?
मॉनसून का देरी से पीछे हटना और पश्चिमी विक्षोभों का लंबा रहना आगामी सर्दी को भी प्रभावित कर सकता है. लगातार बादल छाए रहने से ऊंचे इलाकों में ठंड और
बर्फबारी ज्यादा हो सकती है, लेकिन वैज्ञानिक कहते हैं कि ट्रेंड की पुष्टि के लिए ज्यादा डेटा की जरूरत है. 2025 की सर्दी में IMD ने सूखेपन की चेतावनी दी थी, लेकिन
अब ज्यादा नमी से बर्फबारी बढ़ सकती है।2025 का सितंबर उत्तर भारत के लिए एक सबक है कि जलवायु परिवर्तन कैसे मौसम को अनिश्चित बना रहा है. देहरादून और हिमाचल
जैसे इलाकों में 15 मौतें, सैकड़ों लापता और हजारों बेघर हो चुके हैं. IMD के पूर्वानुमान के मुताबिक, सितंबर में 109% बारिश सामान्य से ज्यादा होगी।
सरकार को आपदा प्रबंधन मजबूत करना होगा, जैसे बेहतर पूर्व चेतावनी सिस्टम और जल निकासी. किसानों को फसलों की रक्षा के लिए सलाह दी जा रही है. कुल मिलाकर,
क्लाइमेट चेंज से लड़ने के लिए भारत को वैश्विक स्तर पर कार्बन उत्सर्जन कम करने और स्थानीय अनुकूलन पर ध्यान देना होगा।