दीपक बेंजवाल  / दस्तक पहाड न्यूज  उत्तराखंड के पहाड़ों पर बरसात और आपदाएँ अब लोगों के जीवन का सबसे बड़ा डर बन चुकी हैं। रुद्रप्रयाग जनपद के अगस्त्यमुनि विकासखंड के बस्ती गांव की 60 वर्षीय शकुंतला देवी इसका जीता-जागता उदाहरण हैं। पाँच साल पहले मलबे में पति की जान गंवाने वाली यह पीड़िता इस बार आई जलप्रलय में अपनी बची-खुची दुनिया भी खो बैठीं।

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आपदा से टूटी ज़िंदगी: पाँच साल पहले पति खोया, अब खेत-बगीचा भी उजड़ा; शकुंतला देवी अब तक मुआवज़े की राह में रुद्रप्रयाग जनपद के बस्ती गांव की 60 वर्षीय शकुंतला देवी की आँखों में आंसू, दिल में दर्द और होंठों पर बस एक फरियाद "मेरी विकलांग बेटी का सहारा बनाइए…" पाँच साल पहले मलबे ने छीना पति - सावन माह की 27-28 तारीख, पाँच साल पहले बस्ती गांव पर आई आपदा ने शकुंतला देवी की गृहस्थी उजाड़ दी थी। मलबे के नीचे दबकर उनके पति की मौत हो गई थी। हालात ऐसे थे कि पति का शव तक सही तरह से नहीं मिल पाया। उस समय बड़े-बड़े वादे और घोषणाएँ हुईं, लेकिन आज पाँच साल बीत जाने के बाद भी उन्हें एक पैसा तक मुआवज़ा नहीं मिला। खेत-बगीचा बना सहारा, अब जलप्रलय ने छीना - पति की मौत के बाद शकुंतला देवी ने अपने विकलांग बेटी के सहारे जीवन चलाने के लिए पति द्वारा लगाए गए खेत, फलदार पेड़ और बगीचे को सहारा बनाया। इन्हीं से परिवार का पेट पल रहा था। लेकिन 29 अगस्त को आई भीषण आपदा और जलप्रलय ने उनके ये सहारे भी निगल लिए। खेत बह गए, बगीचे उजड़ गए और जीवन का आधार पूरी तरह खत्म हो गया। पीड़िता की फरियाद - आंसुओं से भरी आँखों के साथ शकुंतला देवी कहती हैं "पाँच साल पहले पति को खो दिया, अब खेत-बगीचा भी चला गया। मैं तो बस अपनी विकलांग बेटी के लिए जी रही हूँ। लेकिन हमारी सुध लेने कोई नहीं आता। आपदा के 22 दिन पूरे हो गए है, सरकार और नेता बड़े-बड़े वादे करते हैं, पर राहत के नाम पर हमें अब तक कुछ नहीं मिला।" प्रशासन और नेताओं की चुप्पी - सबसे बड़ी विडंबना यह है कि इस बार भी न तो कोई अधिकारी मौके पर पहुंचा और न ही कोई जनप्रतिनिधि। कर्मचारी तक हालात पूछने नहीं आए। राहत और मदद की घोषणाएँ केवल फाइलों और बयानों तक ही सीमित रह गईं।