गौरव जोशी / नैनीताल: उत्तराखंड समेत मध्य हिमालय क्षेत्र में तेजी से बढ़ रही भूकंप की घटनाओं से अब वैज्ञानिक भी चिंतित है. वैज्ञानिकों की मानें तो भूगर्भ में अतिरिक्त ऊर्जा एकत्र हो रही है. उत्तराखंड के कुमाऊं और गढ़वाल दोनों क्षेत्र भूकंप की दृष्टि से बेहद खतरनाक हैं। नैनीताल भी बेहद संवेदनशील है, जहां भूगर्भ में भूकंपीय ऊर्जा एकत्र हो रही है। वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक व निदेशक विनीत गहलोत ने बताया हिमालय भूकंप की दृष्टि से बेहद संवेदनशील क्षेत्र है. उत्तराखंड में

Featured Image

पिछले 300 से 400 सालों से कोई बड़ा भूकंप नहीं आया है. जिससे अंदाजा लगाया जा रहा है कि आने वाला समय भूकंप के लिहाज से बेहद संवेदनशील है. उन्होंने कहा कि हिमालय क्षेत्र में भूकंप को लेकर लगातार अध्ययन किया जा रहा है, जिससे पता चला है कि जमीन के भीतर बड़ी मात्रा में एनर्जी जमा हो रही है। कभी भी आ सकता है भयानक भूकंप: वैज्ञानिकों के अध्ययन में सामने आया है कि भूकंप आने की प्रक्रिया भूगर्भ में चल रही है. भूकंप मापी यंत्रों से पता चला है कि बहुत तेजी के साथ भूगर्भ में एनर्जी एकत्र हो रही है. लिहाजा, भूकंप की दृष्टि से नैनीताल समेत पूरा उत्तराखंड संवेदनशील है. उन्होंने कहा कि आने वाले भूकंप का दायरा करीब 300 किलोमीटर के आसपास की होगी. हालांकि, यह कहना मुश्किल है कि किस क्षेत्र में हानि ज्यादा होगी. वरिष्ठ वैज्ञानिक विनीत गहलोत ने कहा कि अगर बड़ा भूकंप आया तो पहाड़ों की अपेक्षा मैदानी क्षेत्र विशेष कर देहरादून, कोटाबाग, नैनीताल क्षेत्र अब तक बेहद संवेदनशील हैं. नैनीताल में भी ऊर्जा संचित हो रही है. जिससे यह क्षेत्र बेहद संवेदनशील हो जाता है. वहीं, राज्य आपदा प्रबंधन विभाग ने भूकंप की दृष्टि से बेहद संवेदनशील क्षेत्र को चिन्हित कर भूकंप की छोटी-छोटी घटनाओं की निगरानी शुरू कर दी है। उत्तराखंड के संवेदनशील क्षेत्र समेत अन्य जगहों पर लगाए गए भूकंप मापी यंत्र: उन्होंने बताया कि जमीन किस तरह से खिसक रही है? किस तरह की हलचल जमीन पर हो रही है, उस पर वैज्ञानिकों की विशेष नजर है. वैज्ञानिक लगातार अध्ययन कर रहे हैं. उत्तराखंड के संवेदनशील क्षेत्र के साथ 20 अन्य स्थानों पर भूकंप मापी यंत्रों को लगाया गया है। आने वाले समय में उत्तराखंड के 15 स्थान पर भूकंप मापी सेंसर लगाने की तैयारी की जा रही है. ताकि, भूगर्भ में मचाने वाली हलचलों का पता लगाया जा सके और भूकंप आने से पहले लोगों को सचेत किया जा सके. उन्होंने कहा कि भूकंप की दृष्टि से बेहद संवेदनशील नैनीताल समेत अन्य शहरों में खास विधि से अध्ययन किया जाएगा। भूकंप के लिहाज से उत्तराखंड काफी संवेदनशील : उत्तराखंड हिमालय की गोद में बसा राज्य है. यही वजह है कि भूकंप के लिहाज से उत्तराखंड को काफी संवेदनशील माना जाता है. इसके अलावा उत्तराखंड जोन 4 और 5 में आता है. जिससे भूकंप का खतरा बढ़ जाता है. उत्तराखंड के अति संवेदनशील जोन 5 में रुद्रप्रयाग (ज्यादातर हिस्सा), बागेश्वर, पिथौरागढ़, चमोली, उत्तरकाशी जिले आते हैं. वहीं, नैनीताल, उधम सिंह नगर, चंपावत, हरिद्वार, पौड़ी और अल्मोड़ा जोन 4 में आते हैं. जबकि, देहरादून और टिहरी जिले दोनों जोन यानी 4 एवं 5 में आते हैं. भूकंप के साथ रहने की डालनी होगी आदत: लंबे समय से भूकंप पर अध्ययन कर रहे पद्मश्री हर्ष गुप्ता ने बताया आने वाले समय में हमें भूकंप के साथ रहने की आदत बनानी होगी. इसके लिए अर्थक्वेक रेजिलिएंट सोसाइटी यानी भूकंप प्रतिरोधी समाज बनाने की आवश्यकता है. अगर यहां 7 मैग्नीट्यूड का भूकंप आता है तो जान माल का कितना नुकसान होगा, इसका हिसाब लगाना मुश्किल है। "आने वाला समय भूकंप की दृष्टि से बेहद संवेदनशील है. साल 2005 में भारत और पाकिस्तान बॉर्डर पर स्थित मुजफ्फराबाद में 7.6 मैग्नीट्यूड का भूकंप आया था, जिसमें 82 हजार लोगों की मौत हुई थी. उत्तराखंड की भौगोलिक संरचना भी मुजफ्फराबाद जैसी है, अगर इसी तरह का बड़ा भूकंप आया तो यहां भी इस तरह की घटना देखने को मिल सकती है."- पद्मश्री हर्ष गुप्ता, वैज्ञानिक हैती ने अर्थक्वेक रेजिलिएंट सोसाइटी से कम की जनहानि: पद्मश्री हर्ष गुप्ता ने बताया कि साल 2010 में हैती में एक विनाशकारी भूकंप आया था, जो 7 मैग्नीट्यूड का था. जिसमें 3 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी. जिससे सबक लेते हुए हैती के लोगों ने अर्थक्वेक रेजिलिएंट सोसाइटी (Earthquake Resilient Society) बनाई. इसके बाद वहां पहले से भी ज्यादा विनाशकारी भूकंप आया, जो 7.3 मैग्नीट्यूड का था, लेकिन इस भूकंप में मरने वालों की संख्या महज 2500 रह गई. देश में भूकंप दिवस मनाकर जागरूक करने की जरूरत: वैज्ञानिक पद्मश्री हर्ष गुप्ता ने सुझाव देते कहा कि संवेदनशील क्षेत्रों विशेषकर पूरे भारत में एक दिन भूकंप दिवस (अर्थक्वेक डे) मनाने की आवश्यकता है. ताकि, भूकंप के दौरान होने वाली घटना और उससे बचाव की लोगों को जानकारी दी जा सके. साथ ही ऐसी घटना के दौरान जनहानि को कम किया जा सके।