दस्तक पहाड न्यूज पोखरी।। चमोली जिले के पोखरी विकासखंड में एक छोटे से गांव से जूनियर हाईस्कूल हरिशंकर के कक्षा 6 के दो छात्र देवेश और पंकेश, शनिवार की सुबह हर रोज़ की तरह हँसते-खेलते, बातें करते स्कूल की ओर जा रहे थे। जैसे ही दोनों आंगनवाड़ी केंद्र के पास पहुँचे तो अचानक झाड़ियों से एक भालू का बच्चा निकला। भालू सीधा देवेश पर झपटा, और उसका पैर अपने जबड़ों में जकड़ लिया। देवेश चीख पड़ा। डर के मारे काँपने लगा। ऐसी हालत में तो बड़े-बड़े लोग भी घबरा जाते हैं। लेकिन पंकेश? वो भागा

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नहीं। एक पल को भी नहीं सोचा कि "मैं क्यों फँसूँ?" वो वहीं डट गया।उसने जमीन से पत्थर उठाया, और पूरी ताकत से भालू पर दे मारा। भालू सकपकाया। एक झटके में देवेश को छोड़ दिया और जंगल की ओर भाग पड़ा। शोर सुनकर स्कूल के शिक्षक मनबर सिंह दौड़े आए, और देवेश को तुरंत सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पोखरी ले गए। देवेश के पैर पर नाखूनों के हल्के निशान थे, लेकिन हालत स्थिर थी, और इलाज के बाद उसे घर भेज दिया। ये छोटी-सी घटना नहीं है। ये दोस्ती है। ये साहस है। ये वो हिम्मत है जो 12-13 साल के बच्चे में भी कहीं न कहीं छिपी रहती है। पूरे इलाके में इसकी चर्चा है। लोग पंकेश की हिम्मत की सराहना कर रहे हैं, लेकिन साथ ही एक डर भी फैल रहा है। पहाड़ों में जंगली जानवरों का आना-जाना बढ़ गया है। जंगली जानवरों के हमले बढ़ गए हैं, खासकर भालू और गुलदार के। ग्रामीणों की मांग है कि वन विभाग गश्त बढ़ाए। स्कूली बच्चों की सुरक्षा के लिए ठोस इंतजाम करे। पर सवाल ये है कि क्या सिर्फ गश्त से काम चलेगा?