क्षेत्र के विकास के लिए उनकी भूख जीवन के अन्तिम पड़ाव पर भी कम नहीं हुई। उत्तराखण्ड राज्य की मांग को लेकर वर्ष 1994 में 94 वर्ष की उम्र में 14 दिन का आमरण अनशन कर आन्दोलन में अपनी भूमिका को निभाया।
एक छोटे से गांव को आधुनिक सुख सुविधाओं से सुसज्जित कर जनपद में शिक्षा का प्रमुख केन्द्र बनाने में विशेष रूप से जिस एक व्यक्ति का योगदान रहा है वो हैं स्व0 श्री हरिदत्त बेंजवाल। एक समय था जब पूरी मन्दाकिनी घाटी में केवल ऊखीमठ में ही मिडिल स्कूल व अस्पताल था। मन्दिर व कालीकमली धर्मशाला होने से अगस्त्यमुनि का अस्तित्व यात्रा मार्ग में यात्रियों के लिए ठहरने के लिए एक चट्टी मात्र ही था। आज अगस्त्यमुनि में जो कुछ भी है उसके पीछे बेंजवाल जी का अहम योगदान है। जुझारू, संघर्षमय, प्रगतिशील बेंजवाल के व्यक्तित्व का अनुमान उनके 94 वर्ष की उम्र में उत्तराखण्ड राज्य आन्दोलन में आमरण अनशन पर बैठने से ही लगाया जा सकता है।
आधुनिक अगस्त्यमुनि के अधिष्ठाता रहे इस व्यक्तित्व का जन्म 14 जनवरी 1900 में मकर सक्रान्ति को जिला रूद्रप्रयाग के ग्राम बेंजी में पं0 तुलसीराम बेंजवाल एवं गंगा देवी के घर में हुआ। प्रारम्भिक शिक्षा नागनाथ पोखरी तथा मिडिल की परीक्षा कांसखेत व जहरीखाल ;पौड़ीद्ध से पास की। स्व0 हरिदत्त बेंजवाल बचपन से ही सौम्य स्वभाव, निर्भीक एवं दृढ़ संकल्प के व्यक्ति थे। तब वे मात्र 17 वर्ष के थे कि पिता का साया सिर से उठ जाने के बाद घर परिवार की जिम्मेदारी सिर पर आ गई। उन्होंने पैमाइस अमीन की नौकरी की बाद में पटवारी के पद पर कार्य किया। उस समय अंग्रेजों के विरू( क्रान्ति का बिगुल बज चुका था। अनसूया प्रसाद बहुगुणा के कहने पर ब्रिटिश सरकार की नौकरी छोड़ दी और स्वतन्त्रता आन्दोलन में कूद पड़े। सन् 1930 में महात्मा गांधी के आह्वान पर स्व0 गढ़केसरी अनसूया प्रसाद बहुगुणा एवं कुमाऊं केसरी स्व0 बद्रीदत्त पाण्डेय के नेतृत्व में आजादी की लड़ाई में बढ़ चढ़ कर भाग लिया। सन् 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में उन्हें नौ माह की सजा मिली और उन्हें नैनी जेल भेजा गया। वहाँ स्वास्थ्य खराब होने के कारण उन्हें तीन माह बाद ही जेल से रिहा कर दिया गया। नैनी जेल से छूटने के बाद वे अगस्त्यमुनि लौट आये। परन्तु खाली बैठना उन्हें गवारा न था। क्षेत्र में कोई स्कूल न होने से शिक्षा के लिए दूर दराज जाना पड़ता था। यह पीड़ा उन्हें सालती रहती थी। आखिर 1942 में उन्होंने अगस्त्यमुनि में जूनियर हाईस्कूल की स्थापना की। जो कि 1946 में हाईस्कूल बना तथा वे उसके प्रबन्धक बन गये। सन् 1952 में अथक प्रयासों के बाद इस विद्यालय को इण्टरमीडिएट का स्वरूप दिया जिसे शासन ने 1958 में मान्यता दी और 1966 में इसे प्रान्तीयकृत कर दिया। इसके साथ ही वे स्वास्थ्य सेवाओं के प्रति भी जागरूक रहे वर्ष 1958 में अस्पताल की स्वीकृति दिलवाते हुए इन्होने अपना निजी भवन भी इसके लिए समर्पित कर दिया। बाद में निर्माण के लिए अपनी भूमि देकर अस्पताल की स्थापना की। उनके ही अथक प्रयासों से वर्ष 1962 में मन्दाकिनी घाटी में मोटरमार्ग का निर्माण प्रारम्भ हुआ। इसी वर्ष उनके सहयोग से ही मन्दाकिनी विकास खण्ड अगस्त्यमुनि की स्थापना हुई। वर्ष 1963 में रक्षा कोष में अपने बच्चे का सोने का हार एवं दो हजार रू0 देकर एक मिसाल कायम की। वर्ष 1966 में एलोपेथिक अस्पताल खोला गया जिसके निर्माण के लिए अपनी भूमि दान की जो आज सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र के रूप में कार्य कर रहा है। वर्ष 1967 में पशु अस्पताल खोलने का प्रयास किया और इसकी स्थापना के लिए भी अपनी भूमि दान की। घाटी में लड़के व लड़कियों के लिए उच्च शिक्षा प्राप्त करने हेतु या तो श्रीनगर या देहरादून जाना पड़ता था। जिससे गरीब परिवार के बच्चे उच्च शिक्षा से महरूम रह जाते थे। इसके लिए उन्होंने वर्ष 1971 में अपने निजी भवन पर केदारखण्ड डिग्री कालेज की स्थापना कर स्वयं प्रबन्धक बने। वर्ष 1972 में सरकार ने इसे मान्यता दी तथा वर्ष 1976 में सरकार ने इसे राजकीय घोषित कर गढ़वाल विश्वविद्यालय के अधीन संचालित कर दिया। जो आज गढ़केसरी अनसूया प्रसाद बहुगुणा राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय अगस्त्यमुनि के नाम से लगभग 2500 छात्र छात्राओं को उच्च शिक्षा प्रदान कर रहा है।
सामाजिक कार्यों के साथ साथ श्री बेंजवाल ने धार्मिक गतिविधियों में भी योगदान दिया। क्षेत्र की समृ(ि एवं विकास के लिए दो बार 18 पुराणों का महायज्ञ का भी आयोजन कराया जो कि आपकी असीम धार्मिक भावनाओं का प्रतीक है। राजनैतिक क्षेत्र में ऊंची पकड़ के कारण श्री बेंजवाल क्षेत्र में अनेक विकास कार्यों को सम्पन्न कराने में सक्षम हुए। जो उनकी कार्यकुशलता को दर्शाता है। क्षेत्र के विकास के लिए उनकी भूख जीवन के अन्तिम पड़ाव पर भी कम नहीं हुई। उत्तराखण्ड राज्य की मांग को लेकर वर्ष 1994 में 94 वर्ष की उम्र में 14 दिन का आमरण अनशन कर आन्दोलन में अपनी भूमिका को निभाया।
ऐसे महान व्यक्ति का निधन 31 अगस्त 1997 को अगस्त्यमुनि में हुआ। उनके एक पुत्र तथा पांच पुत्रियां हैं।। अभी हाल ही में उनकी पुत्री श्रीमती पुन्नी भट्ट का निधन 69 वर्ष की उम्र में हुआ। उन्होंने भी उत्तराखण्ड आन्दोलन में सक्रिय भूमिका निभाई थी। उनका पुत्र हर्षबर्धन राजनीति में सक्रिय हैं तथा वर्तमान में किसान कांग्रेस के केदारनाथ विधान सभा अध्यक्ष हैं। क्षेत्र में स्व0 हरिदत्त बेंजवाल को विकास पुरूष के नाम से जाना जाता है। परन्तु अफसोस यह है कि आज तक न तो स्थानीय जनप्रतिनिधियों ने उन्हें याद किया और न शासन प्रशासन ने। जिस व्यक्ति ने अपना पूरा जीवन इस घाटी को शिक्षा एवं विकास का केन्द्र बनाया उसी के नाम पर यहाँ कोई भी संस्था नहीं खोली गई। वह व्यक्ति चाहता तो अपने नाम से संस्था चला सकता था लेकिन उसका ध्येय तो सिर्फ और सिर्फ समाज सेवा था। आखिर उनकी मृत्यु के 18 वर्ष बाद केदारनाथ विधायक एवं संसदीय सचिव श्रीमती शैलारानी रावत की पहल पर उत्तराखण्ड सरकार ने राइका अगस्त्यमुनि का नाम स्व0 हरिदत्त बेंजवाल के नाम पर रखने की घोषणा की है। जिससे उत्साहित होकर स्थानीय निवासियों ने भी पहल करते हुए उनके जन्म दिन पर राइका अगस्त्यमुनि में एक भव्य समारोह आयोजित करने का निर्णय लिया है। उनकी स्मृति को चिरस्थाई बनाने के लिए उनकी याद में उनके जन्म दिन पर प्रतिवर्ष समारोह आयोजित करने के साथ ही क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने वाली शख्सियत को मन्दाकिनी सम्मान से सम्मानित करने का भी निर्णय लिया गया। चलो देर आए दुरस्त आये, अब भी कुछ नहीं बिगड़ा है। ऐसी महान शख्सियत को अगर सच्ची श्रधांजलि अर्पित करनी है तो हमें उनके दिखाये मार्ग पर निःस्वार्थ भाव से चलकर आगे बढ़ना होगा।