राजनीति में अक्सर बहुत सारे मुद्दों पर बात की जाती है और खासकर चुनाव के वक़्त तो बेहद। लेकिन एक मुद्दा ऐसा है जिसकी तरफ कभी किसी की नज़र नहीं जाती क्योंकि वो कभी भी वोट की राजनीति का मुद्दा नहीं रहा और वह है *'रोजगारपरक सांस्कृतिक विरासत'।

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राजनीति में अक्सर बहुत सारे मुद्दों पर बात की जाती है और खासकर चुनाव के वक़्त तो बेहद। लेकिन एक मुद्दा ऐसा है जिसकी तरफ कभी किसी की नज़र नहीं जाती क्योंकि वो कभी भी वोट की राजनीति का मुद्दा नहीं रहा और वह है *'रोजगारपरक सांस्कृतिक विरासत'। दरअसल जब हम रोजगार की बात करते हैं तो सिर्फ नौकरी जैसे रोजगार को ही ध्यान में रखते हैं लेकिन यदि किसी भी क्षेत्र में कुछ नीतियां बनाई जाएं और मूलभूत सुधार किए जाएं तो हर क्षेत्र में रोजगार की संभावनाएं बन सकती हैं। ऐसा ही एक क्षेत्र है हमारी सांस्कृतिक विरासत और धरोहर *'माँगल गीत' व 'बाजूबंद'*, जो कि हमारे क्षेत्र केदारघाटी की एक विशेषता भी है और पहचान भी। वर्षों से हमारे परंपरागत रीति-रिवाजों के साथ हमारी माताओं और बहनों ने जनश्रुति के माध्यम से इसे जीवित रखा है। लेकिन वक़्त के साथ लोक की यह समृद्घ परंपरा हमारे बीच से लगभग विलुप्ति के कगार पर है। यह सिर्फ एक कला और संस्कृति का ही ह्रास नहीं है बल्कि हमारी उन माताओं और बहनों की कलात्मक अभिव्यक्ति के अवसरों का भी ह्रास है, जहाँ पर वो स्वयं को स्वतंत्र रूप से अभिव्यक्त कर सकते थे।जहाँ *माँगल गीत* एक तरफ हमारे लोकगायन को समृद्ध करते थे, वहीं दूसरी तरफ *'बाजूबंद'* जंगलों में घास काटते हुए अपने सुख-दु:ख को प्रकृति के साथ बांटते हुए संवाद कायम करने का एक माध्यम था। लेकिन सांस्कृतिक ह्रास के इस दौर में इन दोनों ही विधाओं के हमारे समाज से गायब होने की जो पीड़ा और दु:ख आपके अंतर्मन में था वही मेरे मन में भी था। इसे महसूस करते हुए बतौर केदारनाथ विधायक मनोज रावत ने इनको एक साथ एक मंच पर लाने की एक ईमानदार कोशिश की है। जिसने इन लोककलाओं से नई पीढ़ी को भी रूबरू करवाया और भविष्य के लिए हस्तांतरित भी किया। विधायक मनोज रावत कहते है यह हमारी जिम्मेदारी भी होनी चाहिए और प्रतिबद्धता भी। इस दिशा में मेरा ये छोटा सा प्रयास कितना महत्वपूर्ण होगा यह तो वक़्त बताएगा लेकिन मेरा सपना है कि एक दिन यही लोककला राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय फलक पर हमारी केदारघाटी को सांस्कृतिक रूप से एक अलग पहचान देगी और राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय कलाकार, शोधकर्ता, बुद्धिजीवी, पर्यटक, फिल्मकार आदि इस क्षेत्र की तरफ आकर्षित होंगे और हमारी इन कलाओं को देखने यहाँ तक पहुंचेगे जिससे हमारे कई प्रकार के छोटे-छोटे नए व्यवसायों को मौका मिलेगा जिसमें कुछ अनछुए हैं। जैसे हमारा पहनावा,हमारा भोजन,हमारी वास्तुकला, हमारी विभिन्न कलाकृतियां आदि।ये सभी क्षेत्र एक नई व्यावसायिक दृष्टि को विकसित करने में बेहद महत्वपूर्ण होंगे।मुझे विश्वास है कि मेरी इस पहल को भविष्य में भी आगे बढ़ाने में आप मेरा सहयोग करेंगे।क्योंकि यह हम सबकी साझी जिम्मेदारी भी है और कर्तव्य भी।