गढ़वाल हिमालय, एक बेहतरीन पुस्तक! जानिए अपनी संस्कृति, इतिहास और परंपराओं को
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02/02/20227:46 am
गढ़वाल हिमालय में युगों से तीर्थयात्रियों, पर्यटकों व पर्वतारोहियों का आना-जाना रहा है। वेदों, पुराणों, रामायण व महाभारत में इस क्षेत्र को तपोभूमि माना गया है। यहाँ का प्रत्येक मंदिर आध्यात्मिक भावना से परिपूर्ण है। प्रत्येक नदी श्रद्धालुओं के लिए पावन है। प्रत्येक गाँव की अपनी विशिष्ट संस्कृति है। हर व्यक्ति की सामाजिक धरातल पर हिमालय-सी अपनी स्वच्छ पहचान है। यहाँ के हरे-भरे वन, उत्तुंग हिम शिखर, दूर-दूर तक पसरे मखमली बुग्याल, रहस्य-रोमांच वाली गहरी झीलें, अनगिनत झरनों का संगीतमय प्रवाह, रंग-बिरंगे पुष्पों से सुसज्जित फूलों की घाटियाँ देशी-विदेशी पर्यटकों के लिए आकर्षण के केन्द्र हैं।
यहाँ यमनोत्तरी-गंगोत्तरी व केदार-बदरी में तीर्थ यात्रा सदियों से चली आ रही है। अलकनंदा की प्रमुख शाखा धौली ने विष्णुगंगा से मिलकर ‘विष्णुप्रयाग’ नंदाकिनी से मिलकर ‘नंदप्रयाग’ पिंडर के संगम पर ‘कर्णप्रयाग’ मंदाकिनी से मिलती हुई ‘रुद्रप्रयाग’ तथा भागीरथी के संगम पर ‘देवप्रयाग’ जैसे ‘पंचप्रयागों’ का निर्माण कर इस क्षेत्र को पुण्य भूमि बनाया है। इन पवित्र नदियों से ही गंगा का निर्माण हुआ। ‘गंगा संस्कृति’ ही आदि हिंदू संस्कृति मानी जाती है।
यहाँ की सर्वोच्च हिम चोटियाँ- नंदादेवी, नंदाघुंघटी, त्रिशूल, कामेट, द्रोणागिरि श्रद्धा के साथ-साथ पर्वतारोहियों के लिए इन पर चढ़ना एक चुनौती से कम नहीं है। प्राकृतिक सुषमा के धनी इस क्षेत्र में पर्यटक वेदनी, आली, गुरसौं, क्वारीपास, दयारा जैसे कई मखमली बुग्यालों में घुमक्कड़ी के लिए आते हैं। पर्यटन का आकर्षण बनीं आस्था व रोमांच वाली गहरी झीलें- हेमकुंड, सप्तकुंड, रूपकुंड, काकभुशुण्डि, डोडीताल, केदारताल, सहस्रताल, देवरियाताल, भैंकलताल, ब्रह्मताल, नचिकेताताल, महासरताल, टिहरी झील का अव्यक्त सौंदर्य सैलानियों को घुमक्कड़ी के लिए आमंत्रित करता है।
गढ़वाल के बारे में धर्मग्रंथों के अलावा अंग्रेज लेखकों- एटकिंसन, पौ, फेजर, ओकले, रेपर, वाल्टन आदि ने काफी कुछ लिखा है। बीसवीं सदी में पंडित रायबहादुर पातीराम, हरिकृष्ण रतूड़ी, राहुल सांकृत्यायन, डॉडॉ० शिवप्रसाद डबराल, डॉ० अजय सिंह रावत, डॉ० यशवन्त सिंह कठोच, डॉ० शिव प्रसाद नैथानी, डॉ० गोविंद चातक आदि विद्वानों ने यहाँ के इतिहास व समाज पर शोधपूर्ण ग्रंथ लिखे हैं। इन इतिहासकारों के अतिरिक्त भी इस क्षेत्र पर विस्तार से लिखा गया तथा लिखा जा रहा है। मेरी घुमक्कड़ी की प्रवृत्ति तथा पुस्तकालय व्यवसाय से जुड़ा होने और पाठकों की इस क्षेत्र के समाज, संस्कृति, यात्रा-पर्यटन पर परिचयात्मक पुस्तक की बार-बार मांग ने मुझे इस पुस्तक को लिखने के लिए प्रेरित किया है। इस पुस्तक में वर्णित लगभग सभी जगहों पर मैं स्वयं गया हूँ। मेरा इस पुस्तक को लिखने का उद्देश्य गढ़वाल के संबंध में इतिहास, संस्कृति व यात्रा-पर्यटन पर लिखे गए कार्य तथा अपनी आँखों से देखे गए को सरलतम व संक्षिप्त रूप में अपने पाठकों तक पहुँचाना मात्र है। पुस्तक में लिए गए संदर्भ यथास्थान दिए गए हैं। कहीं पर अपनी ओर से लिखा गया विवेचन किसी पाठक को ठेस पहुँचाए तो क्षमा प्रार्थी हूँ।
इस पुस्तक में बदरी-केदार तथा यमनोत्तरी-गंगोत्तरी मार्ग पर पड़ने वाले तीर्थों एवं पर्यटक स्थलों के साथ-साथ गढ़वाल के इतिहास, धर्म एवं जातियों तथा यहाँ की संस्कृति का परिचयात्मक विवरण दिया गया है। वर्तमान में भाषा पर्यटन भी जिज्ञासु पर्यटकों को अपनी ओर लुभा रहा है। जो पर्यटक जिस राज्य में जाता है वह वहाँ की भाषा की जानकारी भी चाहता है। गढ़वाल की भाषा एवं साहित्य पर भी इस संस्करण में संक्षेप में दिया गया है। ऐसे व्यावहारिक गढ़वाली शब्दों की सूची भी दी गई है जिनका औच्चारणिक मानक तय किया गया है। गढ़़वाली भाषा को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से उपलब्ध गढ़वाली साहित्यकारों व भाषा जानकारों की सूची तथा उनका कृतित्व भी इसमें दिया गया है।
प्रथम संस्करण में नंदा राजजात 2000 का यात्रा वर्णन दिया गया था। इस तृतीय संस्करण में 2014 में की गई नंदा राजजात का वृत्तांत दिया जा रहा है। आप सब पाठकों का असीम प्यार एवं स्नेह ही था कि वर्ष 2002 के बाद सन् 2013 में ‘गढ़वाल हिमालय’ के द्वितीय संस्करण का प्रकाशन किया गया था। अब दूसरा संस्करण भी आउट ऑफ प्रिंट हो गया है। अब तीसरा संस्करण आपके आशीर्वाद का को से प्रकाशित किया जा रहा है
प्रकाशक- विनसर पब्लिशिंग कम्पनी , देहरादून। मूल्य- ₹ 295 है। पृ० 304
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गढ़वाल हिमालय में युगों से तीर्थयात्रियों, पर्यटकों व पर्वतारोहियों का आना-जाना रहा है। वेदों, पुराणों, रामायण व महाभारत में इस क्षेत्र को तपोभूमि माना
गया है। यहाँ का प्रत्येक मंदिर आध्यात्मिक भावना से परिपूर्ण है। प्रत्येक नदी श्रद्धालुओं के लिए पावन है। प्रत्येक गाँव की अपनी विशिष्ट संस्कृति है। हर
व्यक्ति की सामाजिक धरातल पर हिमालय-सी अपनी स्वच्छ पहचान है। यहाँ के हरे-भरे वन, उत्तुंग हिम शिखर, दूर-दूर तक पसरे मखमली बुग्याल, रहस्य-रोमांच वाली गहरी
झीलें, अनगिनत झरनों का संगीतमय प्रवाह, रंग-बिरंगे पुष्पों से सुसज्जित फूलों की घाटियाँ देशी-विदेशी पर्यटकों के लिए आकर्षण के केन्द्र हैं।
यहाँ यमनोत्तरी-गंगोत्तरी व केदार-बदरी में तीर्थ यात्रा सदियों से चली आ रही है। अलकनंदा की प्रमुख शाखा धौली ने विष्णुगंगा से मिलकर ‘विष्णुप्रयाग’
नंदाकिनी से मिलकर ‘नंदप्रयाग’ पिंडर के संगम पर ‘कर्णप्रयाग’ मंदाकिनी से मिलती हुई ‘रुद्रप्रयाग’ तथा भागीरथी के संगम पर ‘देवप्रयाग’ जैसे
‘पंचप्रयागों’ का निर्माण कर इस क्षेत्र को पुण्य भूमि बनाया है। इन पवित्र नदियों से ही गंगा का निर्माण हुआ। ‘गंगा संस्कृति’ ही आदि हिंदू संस्कृति मानी
जाती है।
यहाँ की सर्वोच्च हिम चोटियाँ- नंदादेवी, नंदाघुंघटी, त्रिशूल, कामेट, द्रोणागिरि श्रद्धा के साथ-साथ पर्वतारोहियों के लिए इन पर चढ़ना एक चुनौती से कम नहीं
है। प्राकृतिक सुषमा के धनी इस क्षेत्र में पर्यटक वेदनी, आली, गुरसौं, क्वारीपास, दयारा जैसे कई मखमली बुग्यालों में घुमक्कड़ी के लिए आते हैं। पर्यटन का
आकर्षण बनीं आस्था व रोमांच वाली गहरी झीलें- हेमकुंड, सप्तकुंड, रूपकुंड, काकभुशुण्डि, डोडीताल, केदारताल, सहस्रताल, देवरियाताल, भैंकलताल, ब्रह्मताल,
नचिकेताताल, महासरताल, टिहरी झील का अव्यक्त सौंदर्य सैलानियों को घुमक्कड़ी के लिए आमंत्रित करता है।
गढ़वाल के बारे में धर्मग्रंथों के अलावा अंग्रेज लेखकों- एटकिंसन, पौ, फेजर, ओकले, रेपर, वाल्टन आदि ने काफी कुछ लिखा है। बीसवीं सदी में पंडित रायबहादुर
पातीराम, हरिकृष्ण रतूड़ी, राहुल सांकृत्यायन, डॉडॉ० शिवप्रसाद डबराल, डॉ० अजय सिंह रावत, डॉ० यशवन्त सिंह कठोच, डॉ० शिव प्रसाद नैथानी, डॉ० गोविंद चातक आदि
विद्वानों ने यहाँ के इतिहास व समाज पर शोधपूर्ण ग्रंथ लिखे हैं। इन इतिहासकारों के अतिरिक्त भी इस क्षेत्र पर विस्तार से लिखा गया तथा लिखा जा रहा है। मेरी
घुमक्कड़ी की प्रवृत्ति तथा पुस्तकालय व्यवसाय से जुड़ा होने और पाठकों की इस क्षेत्र के समाज, संस्कृति, यात्रा-पर्यटन पर परिचयात्मक पुस्तक की बार-बार मांग
ने मुझे इस पुस्तक को लिखने के लिए प्रेरित किया है। इस पुस्तक में वर्णित लगभग सभी जगहों पर मैं स्वयं गया हूँ। मेरा इस पुस्तक को लिखने का उद्देश्य गढ़वाल के
संबंध में इतिहास, संस्कृति व यात्रा-पर्यटन पर लिखे गए कार्य तथा अपनी आँखों से देखे गए को सरलतम व संक्षिप्त रूप में अपने पाठकों तक पहुँचाना मात्र है।
पुस्तक में लिए गए संदर्भ यथास्थान दिए गए हैं। कहीं पर अपनी ओर से लिखा गया विवेचन किसी पाठक को ठेस पहुँचाए तो क्षमा प्रार्थी हूँ।
इस पुस्तक में बदरी-केदार तथा यमनोत्तरी-गंगोत्तरी मार्ग पर पड़ने वाले तीर्थों एवं पर्यटक स्थलों के साथ-साथ गढ़वाल के इतिहास, धर्म एवं जातियों तथा यहाँ की
संस्कृति का परिचयात्मक विवरण दिया गया है। वर्तमान में भाषा पर्यटन भी जिज्ञासु पर्यटकों को अपनी ओर लुभा रहा है। जो पर्यटक जिस राज्य में जाता है वह वहाँ
की भाषा की जानकारी भी चाहता है। गढ़वाल की भाषा एवं साहित्य पर भी इस संस्करण में संक्षेप में दिया गया है। ऐसे व्यावहारिक गढ़वाली शब्दों की सूची भी दी गई है
जिनका औच्चारणिक मानक तय किया गया है। गढ़़वाली भाषा को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से उपलब्ध गढ़वाली साहित्यकारों व भाषा जानकारों की सूची तथा उनका
कृतित्व भी इसमें दिया गया है।
प्रथम संस्करण में नंदा राजजात 2000 का यात्रा वर्णन दिया गया था। इस तृतीय संस्करण में 2014 में की गई नंदा राजजात का वृत्तांत दिया जा रहा है। आप सब पाठकों का असीम
प्यार एवं स्नेह ही था कि वर्ष 2002 के बाद सन् 2013 में ‘गढ़वाल हिमालय’ के द्वितीय संस्करण का प्रकाशन किया गया था। अब दूसरा संस्करण भी आउट ऑफ प्रिंट हो गया है। अब
तीसरा संस्करण आपके आशीर्वाद का को से प्रकाशित किया जा रहा है
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