हरीश गुसाईं / अगस्त्यमुनि मतदान संपन्न होने के बाद प्रत्याशियों का पूरा समय वोटों के गुणा-भाग में बीता। केदारनाथ सीट पर कुछ ऐसी जगहें हैं, जहां भितरघात की आशंका से दिग्गजों के

Featured Image

चेहरे पर शिकन देखने को मिली। यहीं नहीं वोटरों की खामोशी भी इस बार प्रत्याशियों के जीत-हार के गुणा-भाग को गड़बड़ा रही है। राजनीतिक पंडित भी मतदाताओं के इस खामोशी से जीत-हार का सही आंकलन नहीं कर पा रहे हैं। विधान सभा चुनावों में मतदान निपटने के बाद अब राजनैतिक दलों एवं निर्दलियों के प्रत्याशियों के साथ ही समर्थक जीत हार के गणित को सुलझाने में लगे हैं। वे अपनी अपनी जीत को लेकर आश्वस्त दिखने का प्रयास तो कर रहे हैं परन्तु मतदाताओं की खामोशी उनकी उलझन को बढ़ा रही है। राजनैतिक विश्लेषकों की माने तो केदारनाथ सीट तीन रावतों के संघर्षों में उलझी नजर आ रही है। चुनाव पूर्व के विश्लेषण में भी इस सीट पर तीनों रावतों में ही कांटे का मुकाबला दिख रहा था तो चुनाव बाद भी इस स्थिति में कोई बदलाव आता नहीं दिख रहा है। हालांकि तीनों ही दो से तीन हजार से अधिक वोटों से जीत का दावा कर रहे है। परन्तु मतदान के बाद के रूझान से यहां कांटे का मुकाबला होता दिख रहा है। केदारनाथ सीट पर कांग्रेस से निवर्तमान विधायक मनोज रावत प्रत्याशी थे तो भाजपा ने पूर्व विधायक शैलारानी रावत पर दांव खेला। आम आदमी पार्टी से जिपं उपाध्यक्ष सुमन्त तिवारी, बसपा से श्यामलाल चन्द्रवाल, कम्युनिस्ट पार्टी से राजा राम सेमवाल, उक्रांद से गजपाल सिंह रावत, सपा से बद्रीश, पिपुल्स पार्टी से मनोज तिनसोला, निर्दलीय कुलदीप रावत, देवेश नौटियाल, कुलदीप सिंह, रेखा देवी, सुरज सिंह ने चुनाव लड़ा। परन्तु देखा जाय तो केवल पांच प्रत्याशियों ने ही गम्भीरता से चुनाव लड़ा। जिसमें भाजपा, कांग्रेस, आप एवं निर्दलीय कुलदीप रावत के अलावा निर्दलीय देवेश नौटियाल ही मुख्य हैं। मतदान के बाद मतदाताओं के ट्रेण्ड को देखते हुए राजनैतिक विष्लेषकों का मानना है कि क्षेत्र में मोदी फैक्टर काफी हद तक प्रभावी रहा है। विशेषकर अधिकांश महिलाओं ने मोदी के नाम पर ही वोट किया है। इस सीट पर लगभग 32 हजार महिलाओं ने वोट दिया है। जो पुरूषों से पांच हजार अधिक है। यहीं महिलायें भाजपा की खेवनहार दिख रही हैं। वहीं भाजपा अपने कैडर वोट को काफी हद तक सम्भालने में कामयाब रही। साथ ही इस बार भाजपा में कोई बगावत नहीं हुई और सभी दावेदार एकजुट होकर पार्टी के लिए प्रचार करते भी दिखे। इससे भाजपा पिछली बार से चार से पांच हजार अधिक वोट लाती दिख रही है। यदि ऐसा हुआ तो शैलारानी रावत के जीतने के अवसर बढ़ जायेंगे। भाजपा के लिए यह भी सुकून भरा हो सकता है कि कांग्रेस एवं निर्दलीय कुलदीप रावत के समर्थक अपना मुकाबला भाजपा से बता रहे हैं। कांग्रेस के मनोज रावत को जहां एण्टी इन्कमबेन्सी से भी दो चार होना पड़ा तो वहीं उन्हें पार्टी कार्यकर्ताओं से पिछले पांच वर्षों से संवाद हीनता का भी नुकसान झेलना पड़ा। सबसे बड़ा नुकसान उन्हें चुनाव प्रचार में महिला कार्यकर्ताओं की कमी से हुआ दिखता है, जिससे कांग्रेस महिलाओं की वोट लेने में पिछड़ गई। परन्तु इसकी भरपाई वे पोस्टल वोटों में करते दिख रहे हैं। कुल मिलाकर वे अपने पिछले चुनाव के आंकड़ो के साथ ही दिख रहे हैं। वहीं निर्दलीय कुलदीप रावत ने इस बार कई जगह बढ़त बनाई तो कई जगहों पर वे पिछड़ गये। उन्हें आप के समन्त एवं निर्दलीय देवेश नौटियाल ने भी नुकसान पहुंचाया है। आप के सुमन्त तिवारी ने जहां तीर्थ पुरोहितों की वोटों पर सेंध लगाकर भाजपा के साथ ही कुलदीप रावत एवं कांग्रेस को भी नुकसान पहुंचाया है। तो देवेश नौटियाल ने भी भाजपा एवं कुलदीप की वोटों पर सेंध लगाया। अब केदारनाथ सीट पर अगर सुमन्त तिवारी अधिक वोट लाया तो कुलदीप को अधिक नुकसान होते दिखेगा। और अगर देवेश नौटियाल को अधिक वोट पड़े तो सीधे सीधे भाजपा को नुकसान उठाना पड़ेगा। परन्तु ऐसा होता दिख नहीं रहा है। निर्दलीय कुलदीप रावत भी इस बार अपने पिछले आंकड़ों के आस पास ही नजर आ रहे हैं। अब यह तो 10 मार्च को ही पता चलेगा कि किस रावत के सर पर जीत का सेहरा बंधेगा। परन्तु यह निश्चित है कि मतगणना के दिन प्रत्येक चक्र पर तीनों रावतों की धड़कने तो बढ़ने ही वाली हैं। क्योंकि जीत का अन्तर एक हजार से 15 सौ के आस पास रहने के आसार नजर आ रहे हैं।