काश तुम तभी चले गये होते बाबा बमराड़ा !

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1993 में जब तुम्हारे मरने की गलत खबर छपी छपी थी तो दसियों जगह श्रद्धांजली सभायें हुई थी और दिल्ली में तुम्हारी प्रतिमा लगाने की बात हुई थी। तुम्हें तब ही चला जाना चाहिये था। ऐसी जिल्लत व अपमान भरी जिन्दगी तो न जीनी होती। वही समय अच्छा था।

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आज तुम चले ही गये उसी अस्पताल में जहां तुमने 89 दिनो तक न्याय के लिये अनषन भी किया। पर यहां तो सब मतलबी है। आज लोग राज्य के नाम पर रोटियां ही सेंक रहे हैं। कभी तुम जब अनशन पर बैठते थे तो हंगामा हो जाता था। लोग जुट जाते थे लेकिन राज्य की राजधानी में किसने सुना। आज जब अन्त आया तो कोई साथ न था। आज सरकारी खर्च व निजी योगदान से हरिद्वार में अन्तिम संस्कार हुआ।

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पाचंजन्य में रहे सुप्रसिद्ध दक्षिणपथी नेतादत्तोपंत ठेंगड़ी ने तो तुमको जनसंघ के कामगार संघ भारत मजदूर संघ की जिम्मेवारी तक दी थी। इमरजेन्सी के बाद हुये चुनाव के समय जनसंघ के नेता बलराज मधोक तो तुमको सांसद का टिकट तक देने की बात कर रहे थे। उत्तराखण्ड क्रान्ति दल जिसके कार्यक्रमों को तुमने बढ़.चढ़ कर अपना समर्थन दिया था। पर बमराड़ा पर उसके बड़े नेता कुछ बोले हों।

राज्य के लिये पागलपन की हद तक का संघर्ष शायद ही किसने किया होगा उसमें अकेले तुम ही थे। उस राज्य के लिये जिसके लिये तुमने न अपने परिवार की परवाह की और न अपनी ही। तुमने अनशन स्थल पर सब देख लिया होगा कि राज्य आन्दोलनकारी कितने स्वार्थी हैं। तुमने अपने को न झोंका होता तो राज्य की चिंगारी सुलग पाती पर ये सब क्या जाने। इनको क्या मतलब। तुमने यह भी देखा होगा जब तुम्हें न्याय की दिलाने की बात होती हैं तो यह आन्दोलनकारी अपनी बात करने लगते हैं। तुमको पता है कि यदि तुम वोट बैंक होते तो ये दौड़े .दौड़े चले आते। तुम्हें इसलिये भी तुम्हें पहले ही चले जाना चाहिये था ताकि तुमको यह न सुनना पड़े कि तुम बहुत बड़े आन्दोलनकारी हो। पर चलो मृत्यु का समय तय नहीं होता है। तुम चले गये किन्तु तुम्हारा इतिहास अब कुछ संरक्षित है। मुझे इस बात का संतोष है कि उस सामग्री का संकलन करने का अवसर एक पुस्तक के रूप में करने को

पर दुख यह हुआ कि देहरादून जहां कि 8 लाख की उत्तराखण्डी जनता बसती है में इतनी संवेदनहीनता क्यों दिखी। राजधानी पहाड़ में होती तो ऐसी असहिष्णुता न दिखती। अकेली यह सरकार ही जिम्मेवार नहीं है। तिवारीज्यू आपने भी यह कैसा मानक तय करवाया कि 1994 में सात दिन जेल में जाने वाला आन्दोलनकारी चाहे वह कैसे भी जेल गया हो और जिसने पूरे राज्य के लिये आन्दोलन किया वह आन्दोलनकारी नहीं। उसके बाद भाजपा सरकार ने भी कई आश्वासन दिये थे।अफसोस यह कि तुम वोट बैंक नहीं बन सके। पर इतनी अन्तिम समय तक ऐसी हताषा और किसी ने न झेली होगी। कुछ साल पहले पीसीएस की परीक्षा में एक सवाल आया था उत्तराखण्ड का गांधी कौन है और चार विकल्प में एक नाम आपका भी था।

जिस दक्षिणपंथ के कभी आप नेता थे उसकी केन्द्र व राज्य में सरकारें है। अच्छा हो उनके पुत्र के बारे में सरकार कुछ सोचे।

और आखिर में तुम्हारी वह कविता जो झकझोर जाती है।

जानता हूं

इस पथ का

वेदना में

अन्त होगा

कौन करता चाह मेरी

वेदना की राह मेरी

आपको नमन – यह आलेख पौड़ी के वरिष्ठ पत्रकार स्व ललित मोहन कोठियाल द्वारा लिखा गया है।

 

 

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