हेमन्त चौकियाल / अगस्त्यमुनि कोरोना ने जहाँ एक ओर पूरे विश्व की आर्थिक गतिविधियों को तहस-नहस करके रखा तो वहीं दूसरी ओर आम से खास आदमी के जीवन को भी खासा प्रभावित किया। इस दौर में बहुत

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से ऐसे लोग रहे हैं, जिन्हें अपनी रोजी रोटी के काम को बंद करना पड़ा,और बहुत से लोगों को अपना व्यवसाय या तो छोड़ना पड़ा या बदलना पड़ा। कुछ ऐसे भी लोग रहे हैं, जिन्होंने अपने बड़े व्यवसाय को समेट पर छोटे स्तर पुनः प्रारंभ किया।ऐसे लोगों ने अपने हुनर का काम छोटे स्तर पर शुरू करके, अपने आस-पास के लोगों को भी अपना व्यवसाय शुरू करने की प्रेरणा देकर पलायन करने की सोच रहे लोगों के लिए नजीर भी पेश की है। अगस्त्यमुनि विकास खण्ड के सौड़ भट्ट गाँव के 53 वर्षीय आनंद लाल, स्वरोजगार करने वालों के लिए प्रेरणा बनकर, लोगों को भी गाँव में ही स्वरोजगार के लिए प्रेरित कर रहे हैं। [caption id="attachment_25432" align="alignleft" width="960"] आनंद लाल[/caption] 1984 में जोशीमठ से सिलाई का काम सीखकर कपड़े सिलने का काम शुरू करने वाले अगस्त्यमुनि विकास खण्ड के सौड़ भट्टगाँव के निवासी आनंद लाल,कोविड - 19के पहले लॉक डाउन के समय अपने ही नजदीकी बाजार अगस्त्यमुनि में कार्य करते थे। लॉक डाउन के कारण जब महीनों तक बाजार बंद रहे और, सिलाई का काम नहीं मिला तो आंनद लाल को मजबूरी में घर की राह पकड़नी पड़ी। इससे पहले आनंद लाल ने जोशीमठ, गोपेश्वर, कर्ण प्रयाग, श्रीनगर, पौड़ी, अगस्त्यमुनि, सिल्ली आदि जगहों पर काम किया, लेकिन कोरोना संकट के चलते सलामती के लिए उन्हें घर का रूख करना पड़ा। पाँच व्यक्तियों के परिवार के लिए खेती किसानी से ही गुजारा करना मुश्किल हो रहा था। आनंद के कौशल को देखते हुए उनके पुराने साथी उन्हें दुबारा काम पर बुला तो रहे थे, लेकिन कोरोना संकट को देखते हुए काम पर वापस बाजार जाना, जान जोखिम में डालने के समान था, इसलिए आनंद लाल ने गाँव और आसपास के इलाके को ही अपने व्यापार का बाजार बनाने की ठानी। घर से 4 कि०मी० की दूरी पर डाँगी गांव में किराये की दुकान लेकर 11महीने पहले कपड़े सिलाई का काम शुरू कर दिया । आनंद लाल का हुनर देखकर बहुत कम समय में ही उनके ग्राहकों की संख्या बढ़ने लगी। आज आनंद लाल न केवल स्वयं इस काम में रम गये हैं, बल्कि कई और लोगों को भी अपने आसपास अपने काम और व्यापार को प्रारंभ करने के लिए प्रेरित भी कर रहे हैं। आनंद लाल ने बताया कि गाँव में आमदनी तो बाजार के मुकाबले कम है लेकिन खाना, कमरे, बिजली, पानी के खर्चे बच जाने से औसत आमदनी परिवार पालने लायक बन ही जाती है। आनंद लाल बताते हैं कि यदि सरकार थोड़ी सी पहल करे तो स्थानीय कारीगरों को उनके हुनर का काम देकर न केबल स्वालम्बी बना सकते हैं, बल्कि पलायन पर भी भारी रोक लगाई जा सकती है। उपाय सुझाते हुए आनंद लाल ने बताया कि जिले के अंदर तमाम वर्दी धारी कार्मिकों और स्कूली बच्चों को दिए जाने वाली ड्रेस को सिलाई करके बच्चों को दिए जाने के लिए कपड़े जिले में ही सिलवा कर इस पेशे के कई लोगों को यहीं रोजगार उपलब्ध करवाया जा सकता है। साथ ही गाँवों के विकास के लिए आनंद लाल लोकल फॉर वोकल के नारे को धरातल पर उतारने को विकास का मूल मंत्र करार देते हैं। यह आलेख पहाड़ के रचनात्मक शिक्षक हेमन्त चौकियाल द्वारा लिखा गया है। वर्तमान में रूद्रप्रयाग जिले के राउमावि डांगी गुनाऊं में कार्यरत हैं। [caption id="attachment_25293" align="alignleft" width="150"] हेमन्त चौकियाल[/caption]