खबर आ रही है कि उत्तराखंड की अस्थायी या ग्रीष्मकालीन राजधानी में नए विधानसभा भवन व सचिवालय के निर्माण का रास्ता साफ कर लिया गया है। जो वन महकमा पहाड़ में अपनी जमीन पर सड़क की मिट्टी तक न डालने दे रहा उसने रायपुर क्षेत्र में 60 हेक्टयर जमीन इस हेतु उदारता से देने की हामी भर ली है। सुना है ’75 हज़ार करोड़ के कर्ज़ तले दबी उत्तराखंड की “अमीर सरकार” ने वन महकमे को बयाना तक भी दे डाला है।
जाहिर सी बात है इतने बड़े फारेस्ट क्लीयरेंस के लिए सिस्टम यानी अफसरों ने दिन रात जी तोड़ मेहनत की होगी,फाइलों को बाई एयर देहरादून से दिल्ली दौड़ाया गया होगा। प्रथम दृष्टया यह प्रतीत होता है कि अफसर अपनी सहूलियत को देखते हुए मनमाने तरीक़े से काम कर यहां के अपरिपक्व नेताओं का उल्लू बना रहे हैं।
और यदि इस सारी कसरत का भान सरकार बहादुर को भी है तो साफ है इस प्रदेश की भोली भाली जनता की भावनाओं का नेता-अफसर मिलकर उपहास उड़ा रहे हैं। जो राज्य भयंकर कर्ज़ तले दबा हो, जहां राजस्व के स्रोत सीमित हों, नॉन-प्लान का बजट एवेरेस्ट की ऊंचाइयों को चूम रहा हो वहां एक नितांत अस्थायी अथवा ग्रीष्मकालीन राजधानी में इतना अपव्यव क्यों..जबकि सरकार व शासन चलाने को फिलवक्त वहां पर्याप्त भवन मौजूद हैं।
यदि यह खबर पुख्ता है तो अब उत्तराखंड के भविष्य की चिंता करने वालों को इस खुशफ़हमी में नहीं रहना चाहिए कि इस सूबे इस पहाड़ के कभी अच्छे दिन आएंगे..
धिक्कार धिक्कार धिक्कार धिक्कार…..
सूचना स्रोत: Atul Bartariya
आखिर इस उत्तराखंड को चलाता कौन है “ग्याडू” (अपरिक्व) नेता या “चालू” अफसर
दस्तक पहाड़ की से ब्रेकिंग न्यूज़:
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★खुशखबरी::: देहरादून में बनेगा नया विधानसभा भवन व सचिवालय भवन★
●सवाल:: आखिर इस उत्तराखंड को चलाता कौन है "ग्याडू" (अपरिक्व) नेता या "चालू" अफसर●
अजय रावत / दस्तक पहाड़ न्यूज पोर्टल -
खबर आ रही है कि उत्तराखंड की अस्थायी या ग्रीष्मकालीन राजधानी में नए विधानसभा भवन व सचिवालय के निर्माण का रास्ता साफ कर लिया गया है। जो वन महकमा पहाड़ में
अपनी जमीन पर सड़क की मिट्टी तक न डालने दे रहा उसने रायपुर क्षेत्र में 60 हेक्टयर जमीन इस हेतु उदारता से देने की हामी भर ली है। सुना है '75 हज़ार करोड़ के कर्ज़ तले
दबी उत्तराखंड की "अमीर सरकार" ने वन महकमे को बयाना तक भी दे डाला है।
जाहिर सी बात है इतने बड़े फारेस्ट क्लीयरेंस के लिए सिस्टम यानी अफसरों ने दिन रात जी तोड़ मेहनत की होगी,फाइलों को बाई एयर देहरादून से दिल्ली दौड़ाया गया
होगा। प्रथम दृष्टया यह प्रतीत होता है कि अफसर अपनी सहूलियत को देखते हुए मनमाने तरीक़े से काम कर यहां के अपरिपक्व नेताओं का उल्लू बना रहे हैं।
और यदि इस सारी कसरत का भान सरकार बहादुर को भी है तो साफ है इस प्रदेश की भोली भाली जनता की भावनाओं का नेता-अफसर मिलकर उपहास उड़ा रहे हैं। जो राज्य भयंकर कर्ज़
तले दबा हो, जहां राजस्व के स्रोत सीमित हों, नॉन-प्लान का बजट एवेरेस्ट की ऊंचाइयों को चूम रहा हो वहां एक नितांत अस्थायी अथवा ग्रीष्मकालीन राजधानी में इतना
अपव्यव क्यों..जबकि सरकार व शासन चलाने को फिलवक्त वहां पर्याप्त भवन मौजूद हैं।
यदि यह खबर पुख्ता है तो अब उत्तराखंड के भविष्य की चिंता करने वालों को इस खुशफ़हमी में नहीं रहना चाहिए कि इस सूबे इस पहाड़ के कभी अच्छे दिन आएंगे..
धिक्कार धिक्कार धिक्कार धिक्कार.....
सूचना स्रोत: Atul Bartariya