सामूहिक वृक्षसंहार की ये तस्वीरें चीख चीख के कह रही हैं कि आबोहवा का “हौबा” दिखा कोई तो भरमा रहा है हम पहाड़ियों को
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23/07/20225:58 pm
अजय रावत / सचिव पलायन एक चिंतन
दस्तक पहाड़ न्यूज पोर्टल विशेष :÷ अभी ‘हरेला’ की धकाधूम जारी है। शहरों में तो अब धनिये का पौधा उगाने तक तो मिट्टी की सतह नज़र नहीं आ रही, लिहाज़ा इस सरकारी “इवेंट” के टारगेट भी पहाड़ में ही हासिल किए जा रहे होंगे। बेशक, पर्यावरण हमारे जीवन का आधार है और पर्यावरण का आधार यही वृक्ष हैं। लेकिन तस्वीरें कुछ और बोलती हैं, देहरादून-दिल्ली एक्सप्रेस वे की खातिर करीब 11 हज़ार दरख्तों की कुर्बानी लेने की परमिशन तक मिल चुकी। यह दीगर बात है कुर्बानी की तादात परमिशन के मुकाबले कहीं अधिक होगी। वहीं देहरादून में ही सहस्रधारा मार्ग पर भी दो हज़ार से ज्यादा वृक्षों को धराशाही करने का कार्य शुरू हो चुका है। आने वाले समय में प्रस्तावित विस भवन और सचिवालय की खातिर भी हज़ारों वृक्षों को बलिदान देना पड़ेगा।
यानी कि कोई न कोई पर्दे के पीछे है जो पहाड़ को पर्यावरण का “हौबा” दिखाकर एक सम्पूर्ण अभयारण्य में तब्दील करना चाहता है। दुर्भाग्य से ये तथाकथित ताकतें देहरादून में या देहरादून के लिए हो रहे सामूहिक वृक्षसंहार को लेकर उतने मुखर नहीं हैं। ऐसे कथित ‘पर्यावरणविदों’ की इन सामूहिक वृक्षसंहार के प्रति उदासीनता चिंता का सबब है। कहीं पहाड़ से यहां के मूल निवासियों को सॉफिस्टिकेटेड तरीके से बेदखल करने या उन्हें पहाड़ में हतोत्साहित कर पलायन के लिए मजबूर करने की साजिश तो नहीं चलाई जा रही..? वह सरकारी व प्रभावशाली ताकतों के संरक्षण में..
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सामूहिक वृक्षसंहार की ये तस्वीरें चीख चीख के कह रही हैं कि आबोहवा का “हौबा” दिखा कोई तो भरमा रहा है हम पहाड़ियों को
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अजय रावत / सचिव पलायन एक चिंतन
दस्तक पहाड़ न्यूज पोर्टल विशेष :÷ अभी 'हरेला' की धकाधूम जारी है। शहरों में तो अब धनिये का पौधा उगाने तक तो मिट्टी की सतह नज़र नहीं आ रही, लिहाज़ा इस सरकारी
"इवेंट" के टारगेट भी पहाड़ में ही हासिल किए जा रहे होंगे। बेशक, पर्यावरण हमारे जीवन का आधार है और पर्यावरण का आधार यही वृक्ष हैं। लेकिन तस्वीरें कुछ और
बोलती हैं, देहरादून-दिल्ली एक्सप्रेस वे की खातिर करीब 11 हज़ार दरख्तों की कुर्बानी लेने की परमिशन तक मिल चुकी। यह दीगर बात है कुर्बानी की तादात परमिशन के
मुकाबले कहीं अधिक होगी। वहीं देहरादून में ही सहस्रधारा मार्ग पर भी दो हज़ार से ज्यादा वृक्षों को धराशाही करने का कार्य शुरू हो चुका है। आने वाले समय में
प्रस्तावित विस भवन और सचिवालय की खातिर भी हज़ारों वृक्षों को बलिदान देना पड़ेगा।
यानी कि कोई न कोई पर्दे के पीछे है जो पहाड़ को पर्यावरण का "हौबा" दिखाकर एक सम्पूर्ण अभयारण्य में तब्दील करना चाहता है। दुर्भाग्य से ये तथाकथित ताकतें
देहरादून में या देहरादून के लिए हो रहे सामूहिक वृक्षसंहार को लेकर उतने मुखर नहीं हैं। ऐसे कथित 'पर्यावरणविदों' की इन सामूहिक वृक्षसंहार के प्रति
उदासीनता चिंता का सबब है। कहीं पहाड़ से यहां के मूल निवासियों को सॉफिस्टिकेटेड तरीके से बेदखल करने या उन्हें पहाड़ में हतोत्साहित कर पलायन के लिए मजबूर
करने की साजिश तो नहीं चलाई जा रही..? वह सरकारी व प्रभावशाली ताकतों के संरक्षण में..