हरीश गुसाई  / अगस्त्यमुनि। दस्तक पहाड़ न्यूज ब्यूरो। रूद्रप्रयाग के तीन युवाओं द्वारा बनाई गई शॉर्ट फिल्म ‘पातल ती‘ विदेशी फिल्म फेस्टिबलों में अपनी चमक बिखेरने के बाद नेशनल फिल्म फेस्टिबल में भी अपना जलवा दिखाने को तैयार है। ‘पाताल-ती‘ का प्रीमियर अब भारत के 53 वें अंतरराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल ऑफ़ इंडिया (आईएफएफआई-गोवा ) मंे हो रहा है। इस शॉर्ट फिल्म का चयन इंडियन पैनोरमा के नॉन फीचर फिल्म श्रेणी में हुआ है।

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‘पाताल-ती‘ अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर बुसान, इटली, मॉस्को में धूम मचाने के बाद 6 नवम्बर को कनाडा में 17 वें हैमिल्टन फिल्म फेस्टिवल में अपना जलवा दिखाने को तैयार है। ‘पाताल-ती‘ का चयन इंटरनेशनल शॉर्ट फिल्म कम्पटीशन में हुआ है जिसमें पूरी दुनिया से 6 फिल्मों का चयन हुआ है। हैमिलटन फिल्म फेस्टिवल में ‘पाताल-ती‘ का चयन कैनेडियन फिल्म मार्केट सेक्शन के लिए भी हुआ है जहां फिल्म को कनाडा के मार्केट में बेचा जाता है। हैमिलटन फिल्म फेस्टिवल के बाद वर्ष के अन्त में ‘पाताल-ती‘ का नेशनल प्रीमियर भारत के 53 वें अंतरराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल ऑफ़ इंडिया (आईएफएफआई-गोवा ) मंे होगा। आईएफएफआई-गोवा भारत का सबसे प्रतिष्ठित फिल्म फेस्टिवल है जो भारत के संस्कृति मंत्रालय द्वारा चलाया जाता है और ये इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ़ फिल्म प्रोडूसर एसोसिएशन (एफआईएपीएफ) से मान्यता प्राप्त है। ‘पाताल-ती‘ का चयन इंडियन पैनोरमा के नॉन फीचर फिल्म श्रेणी में हुआ है। इंडियन पैनोरमा में एक फीचर फिल्म और दूसरी नॉन फीचर फिल्म श्रेणी होती है। इस बार पूरे देश से 25 फीचर फिल्म और 20 नॉन फीचर फिल्म का चयन हुआ है। ‘पातल-ती‘ का निर्माण करने वाली ‘स्टूडियो यूके 13‘ की टीम के प्रमुख सूत्रधार रुद्रप्रयाग जिले के तीन युवा है। फिल्म के निर्माता-निर्देशक संतोष रावत क्यूडी दशज्यूला, सिनोमेटोग्राफर बिट्टू रावत चोपता जाखणी, एक्सिक्यूटिव प्रोड्यूसर गजेन्द्र रौतेला और उनके बेटे कैमरामेन दिव्यांशु रौतेला कोयलपुर ( डांगी गुनाऊं) के निवासी हैं। ‘भोटिया भाषा की लोक कथा’ पर बनाई गई शार्ट फ़िल्म ‘पातल ती’ (होली वाटर) का कम समय में राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय फलक पर चमक बिखेरना समस्त उत्तराखंड वासियों के लिए गर्व का क्षण है। यह फिल्म उत्तराखंड और ख़ासकर भोटिया जनजाति को एक नये नजरिए से देश दुनिया के सामने लाई है। फिल्म के एक्सिक्यूटिव प्रोड्यूसर और रूद्रप्रयाग जिले के रचनाधर्मी शिक्षक गजेन्द्र रौतेला बताते है कि फ़िल्म की कथा पहाड़ के ‘जीवन दर्शन’ को दर्शाती है। उन्होंने इसके लिए उन बुजुर्गों का धन्यवाद ज्ञापित किया जिनके अनुभवों के आधार पर यह फिल्म बन पाईं साथ ही उन्होंने हंस फाउंडेशन, माता श्री मंगला जी और भोले जी महाराज का दिल का भीधन्यवाद ज्ञापिवत किया। जिनकी सहयोग से यह फिल्म अंतराष्ट्रीय स्तर के फिल्म फेस्टिवल में पहुंच पाई।