हरीश गुर्साइं / अगस्त्यमुनि। दस्तक पहाड न्यूज ब्यूरो। केदारनाथ यात्रा मार्ग पर रूद्रप्रयाग से 17 किमी की दूरी पर बसा अगस्त्यमुनि नगर हर वर्ष केदारनाथ आने वाले तीर्थयात्रियों की आवाजाही का गवाह तो बनता है परन्तु उसका हिस्सा नहीं बन पाता है। पूरे यात्राकाल में इस नगर को यात्रा से कोई लाभ नहीं मिल पाता है। यह स्थान केवल आपात स्थिति जैसे मार्ग अवरूद्ध होने या कहीं जाम लगने से ही गुलजार होता है। अन्यथा यात्रियों का सैलाब सीधे अन्तिम पड़ाव पर पहुंचने की जल्दी में रहता है। जबकि यह स्थान

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जनकल्याण के लिए समुद्र को अंजुलि में भरकर पीने वाले और भगवान श्रीराम के गुरू महर्षि अगस्त्य की प्राचीन सिद्ध तपस्थली है। ऋग्वेद के मंत्रदृष्टा मुनि अगस्त्य से इसी स्थान पर शिवपुत्र कार्तिक स्वामी द्वारा ज्ञान प्राप्त किया गया था, यही भगवान अगस्त्य द्वारा दैत्यों के दमन के लिए अपने शरीर से नौ शक्तियों को प्रकट किया गया था। जो इसी परिक्षेत्र में अलग अलग स्थानों पर स्थापित हुई हैं। भगवान शिव के विवाह में समस्त देवताओं के एकसाथ एकत्रित होने पर जब पृथ्वी का असंतुलन हो गया तब इन्ही महर्षि अगस्त्य को दक्षिण भेज कर संतुलन किया गया था। अपने घमंड से पृथ्वी पर सूर्य चंद्र की किरणों को बाधित करने वाले विध्यांचल का मान मर्दन भी इन्ही भगवान अगस्त्य द्वारा किया गया था। [caption id="attachment_37321" align="alignnone" width="696"] महर्षि अगस्त्य मन्दिर[/caption] इतने बड़े पौराणिक धार्मिक महत्व के बावजूद भी इस स्थान को केदारनाथ यात्रा से जोड़ने और इसके पौराणिक महत्व को उजागर करने के लिए अभी तक न तो किसी जनप्रतिनिधि ने कोई पहल की है, और न ही मन्दिर से जुड़े हकहकूकधारी समाज अथवा किसी अन्य प्रतिनिधि ने। हालांकि लंबे समय बाद ही सही रुद्रप्रयाग जिले के नये जिलाधिकारी डॉ. सौरव गहरवार ने इस कस्बे की धार्मिक पौराणिक महत्ता को बढ़ाने तथा इसे पर्यटक स्थल के तौर पर विकसित करने के लिए अनूठी पहल शुरू की है। जिसमें वॉल पेंटिंग के साथ मंदिर मार्ग पर भव्य द्वार, सड़क से सटी खाली भूमि पर इंटरलॉक टाइल्स से नगर का भव्य सौन्दर्यीकरण किया गया। जिसकी स्थानीय जनता ने सराहना भी की है। सड़कों पर बेतरतीब वाहनों के खड़े होने से जाम की समस्या को दूर करने के लिए नगर के प्रारम्भिक एवं अन्तिम छोर पर पार्किंग बनाई गई है। साथ ही खेल मैदान में अस्थाई पार्किंग की व्यवस्था की गई है। नगर के प्रारम्भ में पार्किंग स्थल के साथ पार्क बनाकर उसे पर्यटक एवं सेल्फी प्वाइंट के रूप में विकसित किया गया है। नगर की दीवारों का रंगरोगन कर ऋषि मुनियों के चित्र बनाये गये हैं। जो यात्रियों के साथ ही स्थानीय जनता को भा रहे हैं। वहीं विजयनगर के झूला पुल को रंगरोगन के साथ लाइटें लगाकर आकर्षण का केन्द्र बना दिया है। पुराना देवल में भी सड़क किनारे पैदल पथ बनाया जा रहा है जो मैरीन ड्राइव जैसा खूबसूरत लगेगा। सड़क के किनारे बिजली के पोलों पर भगवान केदारनाथ के चित्र लगाये गये हैं जो रात्रि को लाइट से चमकते रहते हैं। मुख्य मार्ग से महर्षि अगस्त्य के मन्दिर मार्ग पर बने द्वारों को नया स्वरूप दिया गया है। वहीं मन्दिर के मठाधिपति पं0 योगेश बेंजवाल बताते है कि आमजन को मंदिर के महत्व को बताने के लिए मंदिर दीवारों पर भगवान अगस्त्य की प्राचानी कथानकों को उकेरा गया है, साथ ही मन्दिर का रंगरोगन और शिखर छतरी की नया निर्माण किया है। जो अब काफी आकर्षक लग रहा है। [caption id="attachment_37324" align="alignnone" width="696"] वाॅल पेंटिंग[/caption] केदारनाथ विधायक श्रीमती शैलारानी रावत ने बताया कि वे श्री अगस्त्य मन्दिर की महिमा के प्रचार प्रसार हेतु कार्ययोजना तैयार करा रही हैं। मन्दिर को कार्तिक स्वामी सर्किट से जोड़ने का प्रयास करने के साथ ही इसे महर्षि के आश्रम के तौर पर विकसित करने का प्रयास किया जा रहा हैं विगत दिनों प्रदेश के मुख्यमंत्री धामी जी ने अगस्त्यमुनि आगमन पर इस हेतु घोषणा भी की है। [caption id="attachment_37322" align="alignnone" width="696"] नगर के निकट 9 वी सदी के प्राचीन मंदिर समूह[/caption] -अगस्त्यमुनि निकट धार्मिक स्थल अगस्त्यमुनि नगर की शुरुआत में दो किमी पहले गंगतल महादेव का मन्दिर है। जिसके दर्शन दुर्लभ माने गए है। यही से एक पक्की सड़क दुर्गाधार को जाती है, जहाँ उत्तराखण्ड पर्यटन विभाग द्वारा सुदंर शैली में मंदिर सौन्दर्यीकरण और आवसीय भवन बनाया गया है। इस स्थान से आगे दो किलोमीटर पर फलासी गांव में प्रसिद्ध तुंगेश्वर महादेव मन्दिर है। जो द्वितीय केदार भगवान तुंगनाथ जी का ही प्रतिरूप है। अगस्त्यमुनि नगर से नदी के दाँए तट पर 10 किमी की दूरी पर 9 वीं सदी में बने रायड़ी में रणजीत महाराज और सिल्ला गांव में साणेश्वर महाराज मन्दिर समूह दर्शनीय है। इस स्थान से चार किमी आगे गुप्तकाशी की ओर चलने पर बसुकेदार में अष्ट बसुओं और वीरों देवल गाँव में माँ चण्डिका का एक और प्राचीन मंदिर समूह है। इसके साथ ही अगस्त्यमुनि से कार्तिक स्वामी, पद्मावती मंदिर, धार गाँव और पिल्लू गाँव का कर्मजीत मंदिर का बड़ा महत्व है। इस मंदिर को सर्पदंश से मुक्ति का धाम माना जाता है।