फर्जी प्रमाणपत्र से नौकरी पाई, 2016 में रिटायर्ड प्रधानाध्यापक, अब मिली 5 साल की सजा
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29/11/20247:42 am
दस्तक पहाड न्यूज / टिहरी।
उत्तराखंड में सरकारी सेवा में फर्जी प्रमाणपत्रों के इस्तेमाल का एक और मामला सामने आया है। उप शिक्षाधिकारी नरेंद्रनगर ने 2018 में दर्ज शिकायत में खुलासा किया कि राजकीय प्राथमिक स्कूल सिलकणी, नरेंद्रनगर से 2016 में सेवानिवृत्त प्रधानाध्यापक नरेंद्र कुमार ने अपनी नियुक्ति के लिए फर्जी शैक्षिक प्रमाणपत्र प्रस्तुत किए थे। प्रमाणपत्रों की जांच में पता चला कि उनका बीटीसी प्रमाणपत्र, जो राजकीय दीक्षा विद्यालय फरीदपुर, बरेली (उत्तर प्रदेश) से होने का दावा किया गया था, असल में फर्जी था। यह जानकारी परीक्षा नियामक प्राधिकारी प्रयागराज (इलाहाबाद) की रिपोर्ट में सामने आई।
पुलिस जांच और न्यायालय में पेश की गई रिपोर्ट के आधार पर न्यायिक मजिस्ट्रेट श्रेय गुप्ता की अदालत ने आरोपी शिक्षक को दोषी करार दिया। अदालत ने नरेंद्र कुमार को सरकारी सेवा के लिए फर्जी प्रमाणपत्र प्रस्तुत करने के अपराध में पांच साल की कठोर कारावास की सजा सुनाई। इसके साथ ही उन पर आर्थिक दंड भी लगाया गया। यह फैसला सरकारी तंत्र में पारदर्शिता सुनिश्चित करने और फर्जीवाड़े पर रोक लगाने की दिशा में एक सख्त संदेश देता है।
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फर्जी प्रमाणपत्र से नौकरी पाई, 2016 में रिटायर्ड प्रधानाध्यापक, अब मिली 5 साल की सजा
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दस्तक पहाड न्यूज / टिहरी।
उत्तराखंड में सरकारी सेवा में फर्जी प्रमाणपत्रों के इस्तेमाल का एक और मामला सामने आया है। उप शिक्षाधिकारी नरेंद्रनगर ने 2018 में दर्ज शिकायत में खुलासा
किया कि राजकीय प्राथमिक स्कूल सिलकणी, नरेंद्रनगर से 2016 में सेवानिवृत्त प्रधानाध्यापक नरेंद्र कुमार ने अपनी नियुक्ति के लिए फर्जी शैक्षिक प्रमाणपत्र
प्रस्तुत किए थे। प्रमाणपत्रों की जांच में पता चला कि उनका बीटीसी प्रमाणपत्र, जो राजकीय दीक्षा विद्यालय फरीदपुर, बरेली (उत्तर प्रदेश) से होने का दावा
किया गया था, असल में फर्जी था। यह जानकारी परीक्षा नियामक प्राधिकारी प्रयागराज (इलाहाबाद) की रिपोर्ट में सामने आई।
अदालत का सख्त फैसला, दोषी शिक्षक को 5 साल की जेल
पुलिस जांच और न्यायालय में पेश की गई रिपोर्ट के आधार पर न्यायिक मजिस्ट्रेट श्रेय गुप्ता की अदालत ने आरोपी शिक्षक को दोषी करार दिया। अदालत ने नरेंद्र
कुमार को सरकारी सेवा के लिए फर्जी प्रमाणपत्र प्रस्तुत करने के अपराध में पांच साल की कठोर कारावास की सजा सुनाई। इसके साथ ही उन पर आर्थिक दंड भी लगाया गया।
यह फैसला सरकारी तंत्र में पारदर्शिता सुनिश्चित करने और फर्जीवाड़े पर रोक लगाने की दिशा में एक सख्त संदेश देता है।