दस्तक पहाड़ न्यूज, देहरादून।। उत्तराखंड में नजूल भूमि के फ्री होल्ड पर पूरी तरह से रोक लगाने के आदेश जारी हो गए हैं. शासन के इस आदेश से प्रदेश के हजारों लोगों को बड़ा झटका लगा है. हालांकि, राज्य सरकार को हाईकोर्ट के निर्देशों के बाद यह फैसला लेना पड़ा है. इस तरह अब राज्य में नजूल नीति 2021 नजूल भूमि के फ्री होल्ड को लेकर अप्रभावी हो गई है। नजूल भूमि के फ्री होल्ड पर लगी रोक: उत्तराखंड के मैदानी जिलों में रहने वाले हजारों लोगों को शासन के एक आदेश से तगड़ा झटका लगा है. मामला नजूल भूमि के फ्री

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होल्ड से जुड़ा हुआ है. जिसके तहत नजूल भूमि पर रहने वाले लोग इस भूमि को फ्री होल्ड नहीं करवा पाएंगे. इस संदर्भ में शासन ने मंडलायुक्त और जिलों के जिलाधिकारियों को सूचना भेज दी है। विवादों में रहा नजूल भूमि के फ्री होल्ड का मामला: उत्तराखंड में नजूल भूमि के फ्री होल्ड का मामला शुरू से ही विवादों में रहा है. तमाम सरकारों ने नजूल भूमि के फ्री होल्ड को लेकर जनता से वादे भी किए और समय-समय पर राज्य सरकार ने इसको लेकर कुछ कदम भी उठाए हैं, लेकिन यह मामला बार-बार न्यायिक पचड़ों में फंसने के कारण विवादों में आता रहा है। क्या है नजूल भूमि: खास बात ये है कि नजूल भूमि राज्य में कई लोगों को लीज पर दी जाती रही है. हालांकि, बड़ी संख्या में लोगों ने ऐसी नजूल भूमि पर कब्जे भी किए हैं. नजूल भूमि उसे जमीन को कहा जाता है, जो आजादी से पहले अंग्रेजों ने रियासतों के राजाओं से उनकी हार के बाद कब्जे में ले ली थी, लेकिन आजादी के बाद रियासतों से जुड़े राजघराने इससे जुड़े कोई दस्तावेज नहीं दिखा पाए। नजूल भूमि को फ्री होल्ड के जरिए ऐसे लोगों को इसका स्वामित्व देने का प्रयास राज्य सरकार की ओर से किया गया है, जो इसमें काबिज हैं. इसके लिए इन लोगों को कुछ नियत शुल्क जमा करना होता है और इसके बाद इस भूमि पर इन्हीं लोगों का स्वामित्व माना जाता है. इसके लिए नजूल नीति 2009 पूर्व में लाई गई थी, लेकिन इसे तब हाई कोर्ट नैनीताल में चुनौती दी गई। जून 2018 में हाईकोर्ट ने करार दिया था असंवैधानिक: जून 2018में हाईकोर्ट ने नजूल भूमि को फ्री होल्ड करने की इस नीति को ही असंवैधानिक करार दे दिया था. इसमें कहा गया कि सरकारी भूमि को इस तरह कब्जाधारी को स्वामित्व के रूप में नहीं दिया सकता। हाईकोर्ट के इस आदेश के बाद करीब 8000 से ज्यादा परिवारों को तगड़ा झटका लगा था. क्योंकि, ये वो परिवार थे, जो नजूल नीति 2009 के तहत सरकार को तयशुदा शुल्क देकर जमीन पर स्वामित्व ले चुके थे, लेकिन हाई कोर्ट के आदेश के बाद ऐसे लोगों को भी इस जमीन से स्वामित्व खोना पड़ा। 31 दिसंबर 2021 को सुप्रीम कोर्ट ने लगाया स्टे:नैनीताल हाईकोर्ट की आदेश के बाद राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंची और इस आदेश को चुनौती दी. जिस पर 31 दिसंबर 2021 को सुप्रीम कोर्ट ने स्टे यानी रोक लगा दिया, उसके बाद से ही यह मामला अब तक विचाराधीन है। राज्य सरकार ने नजूल नीति 2021 को दी मंजूरी: खास बात ये है कि राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के विचाराधीन होने के बावजूद नजूल नीति 2021को मंजूरी दे दी. सुप्रीम कोर्ट से बिना अनुमति लिए नजूल नीति 2021 लाने के बाद एक बार फिर राज्य में नजूल भूमि पर फ्री होल्ड की प्रक्रिया को शुरू कर दिया गया।नजूल नीति को 1 साल के लिए लागू किया गया. हालांकि, इसकी अवधि समाप्त होने के बाद पहले इसे 10 दिसंबर 2023 तक के लिए बढ़ाया गया. इसके बाद शासन स्तर पर एक आदेश जारी कर फ्री होल्ड की प्रक्रिया को आगे भी जारी रखा गया यानी नजूल भूमि पर कब्जे धारी को स्वामित्व देने का काम होता रहा। 16 अप्रैल 2025 को हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने इस प्रक्रिया पर लगाई रोक:  नजूल भूमि को कब्जा धारियों के हक में फ्री होल्ड करने का मामला एक बार फिर से तब विवादों में आ गया, जब हाल में ही 16 अप्रैल 2025 को नैनीताल हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने इस प्रक्रिया पर रोक लगाने के आदेश दे दिए. मामला गंभीर था. लिहाजा, हाईकोर्ट के आदेशों का पालन करते हुए शासन ने भी फौरन नजूल भूमि के फ्री होल्ड पर रोक लगाने के आदेश जारी कर दिए हैं। नजूल भूमि पर काबिज हैं करीब डेढ़ लाख लोग: उत्तराखंड में नजूल भूमि उधम सिंह नगर, नैनीताल और देहरादून में मौजूद हैं. इस भूमि पर कई बस्तियां और कालोनियां बन चुकी हैं, जिसमें करीब डेढ़ लाख लोग काबिज है. इतना ही नहीं कई लोग नजूल नीति के तहत फ्री होल्ड भी करवा चुके हैं। सचिव आवास आर मीनाक्षी सुंदरम ने की पुष्टि: हालांकि, अब शासन की इस आदेश के बाद भविष्य में नजूल नीति के फ्री होल्ड पर रोक लगाई गई है. सचिव आवास आर मीनाक्षी सुंदरमने नजूल भूमि के फ्री होल्ड पर रोक लगाई जाने के आदेश की पुष्टि की है।