दीपक बेंजवाल  / दस्तक पहाड न्यूज।। सब कुछ खत्म ह्वेगी....83 वर्षीय नारायणी देवी के रूंधे गले से निकलने वाले पीड़ा के ये एक-एक शब्द अंतस को झकझोर रहे थे। उन बूँढी आँखों में तैरते आँसू से असहज सा हो गया था इस पूरी त्रासदी की दास्ताँ को बयाँ करना। उनके दोनों बेटे दिनेश सिंह सजवाण और महेंद्र सिंह सजवाण के मकान का नामोनिशान तक नहीं बचा। बारिश की रात ने सब कुछ निगल लिया घर, रास्ते, जीवन…और उम्मीदें। हम कुछ पूछना चाहते थे, पर कैसे? उनके आँसू ही जवाब बन गए थे।गाँव के लोग उनके इर्द-गिर्द खड़े थे – कोई चुप,

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कोई सहमा हुआ। लेकिन सबकी आँखें भीग रही थीं। क्योंकि उस पल कोई भी इतना मजबूत नहीं था कि नारायणी देवी के दर्द को शब्द दे सके। जब उनका दर्द जानना चाहा तो वो बोली "सब कुछ खत्म ह्वेगी...उनके रूंधे गले से निकलते हर शब्द के साथ एक-एक कहानी दफ़न हो रही थी – संघर्ष की, जतन की, और उस आशियाने की जिसे उन्होंने वर्षों की तपस्या से खड़ा किया था। भारी बारिश और भूस्खलन ने उनके जीवन की वो नींव छीन ली, जिसे वो एक अरसे से संजोए हुए थीं। मिट्टी से सने उनके पैर, कांपते हाथ और नम आँखों में एक ही सवाल था – अब क्या बचा ? उनका टूटा हुआ घर केवल ईंट और पत्थरों का ढेर नहीं था, वो उनकी यादों का संग्रह था, उनकी आत्मा का विस्तार था। उस घर के हर कोने में उनके पति की यादें थीं, बच्चों की खिलखिलाहट थी, और जीवन की मेहनत भरी मुस्कानें थीं। लेकिन अब वहाँ सिर्फ़ मलबा है... और उसके नीचे दबी हुई नारायणी देवी की पूरी ज़िंदगी। उनकी आँखों में तैरते आँसू बस गवाही दे रहे थे – कि इस बार केवल मकान नहीं ढहे, बल्कि उम्मीदें, सपने और जीवन की बची-खुची ठौर भी बह गई। गाँव के लोग उन्हें ढाढ़स बंधा रहे थे, पर शायद कुछ घाव ऐसे होते हैं जो केवल भगवान ही भर सकता है। और पहाड़... वो तो हर साल किसी नारायणी देवी की आवाज़ में रोता है "सब कुछ खत्म ह्वेगी..." यह सिर्फ़ एक हकीकत नहीं, यह पूरी त्रासदी की आवाज़ है। एक ऐसी पुकार, जो प्रशासन, समाज और हमारी संवेदनशीलता से जवाब मांग रही है। इस गाँव में अब सिर्फ़ मलबा नहीं, एक अधूरी ज़िंदगी की कहानी बिखरी है जहाँ शब्द बस केवल आँसू बन रहे थे।