दस्तक पहाड न्यूज  / रुद्रप्रयाग/अगस्त्यमुनि – उत्तराखंड पुलिस का इकबाल एक बार फिर सवालों के घेरे में है। जनपद रुद्रप्रयाग के अगस्त्यमुनि थाने में तैनात एक सिपाही की करतूत से विभाग की साख को गहरा धक्का लगा है। जिस पुलिस को कानून का पालन कराना होता है, वहीं उसका एक सिपाही अवैध गतिविधियों को संरक्षण देता नजर आया। मामला तब सामने आया जब अगस्त्यमुनि के अपर उपनिरीक्षक जावेद अली की टीम त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के दौरान अवैध शराब तस्करी पर कार्रवाई कर रही थी। मौके पर पहुंची पुलिस टीम ने जब शराब से लदी गाड़ी को रोका, तभी सिपाही महेंद्र ने खुद की गाड़ी पुलिस वाहन के आगे अड़ा दी और तस्करों को बचाने की कोशिश करने लगा। पुलिसकर्मियों ने पूरे घटनाक्रम को कैमरे में कैद कर लिया। मामला जब उच्च अधिकारियों तक पहुँचा तो पहले तो सिपाही को निलंबित किया गया, लेकिन जब दबाव

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बढ़ा, तब जाकर आरोपी के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया। सिपाही महेंद्र कोई नया विवादित नाम नहीं है। पहले भी वह पुलिस महकमे की छवि को धूमिल करता रहा है। देहरादून के सहसपुर थाने में कॉल गर्ल प्रकरण में उसका नाम सामने आ चुका है। उस प्रकरण के बाद उसे चमोली ट्रांसफर कर दिया गया था। लेकिन चमोली में भी उसकी गतिविधियाँ संदिग्ध बनी रहीं — यहां उस पर चरस तस्करों से मिलीभगत के आरोप लगे। जानकारी यह भी सामने आई है कि आरोपी सिपाही पर किसी का वरदहस्त है और उसी संबंध के चलते अब तक उसे गंभीर मामलों में सजा की जगह केवल सस्पेंशन का सामना करना पड़ा। अब जब रुद्रप्रयाग में उसकी करतूतें एक बार फिर उजागर हो चुकी हैं, सवाल यह उठता है कि क्या विभागीय कार्यवाही महज़ दिखावा थी? क्या उसे लगातार बचाने की कोशिशें इसी संबंध के कारण हो रही हैं? पुलिस विभाग की छवि पर सवाल खड़े करने वाले इस मामले ने पूरे महकमे में हलचल मचा दी है। जनता का विश्वास पुलिस पर टिका है, लेकिन जब रक्षक ही भक्षक बनने लगें, तो फिर व्यवस्था पर सवाल उठना लाजमी है। अब देखना यह होगा कि इस बार आरोपी सिपाही पर कठोर कार्रवाई होती है या फिर एक बार फिर वह रिश्तों की ढाल में बच निकलता है। (यह खबर उत्तराखंड पुलिस के भीतर की कार्यशैली, आंतरिक जांच की निष्पक्षता और प्रभावशाली रिश्तों की भूमिका पर गंभीर सवाल खड़े करती है।)