पापा! हम नहीं बचेंगे… उत्तरकाशी आपदा में लापता बेटे से नेपाली पिता की वो 2 मिनट की बातचीत
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08/08/20255:40 pm
दस्तक पहाड न्यूज, उत्तरकाशी।।
उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले की हर्षिल घाटी में मंगलवार को प्रकृति ने अपना रौद्र रूप दिखाया। भारी बारिश के बाद बादल फटने से अचानक आई बाढ़ और भूस्खलन ने पूरे क्षेत्र को तबाही के मुंह में धकेल दिया। धराली गांव, जो गंगोत्री के रास्ते में एक प्रमुख पड़ाव है, इस आपदा की चपेट में आ गया। घर, पेड़, वाहन सब कुछ बाढ़ के तेज बहाव में बह गया। इस त्रासदी में कम से कम पांच लोगों की जान चली गई, जबकि दर्जनों लोग अभी भी मलबे में दबे हो सकते हैं।
नेपाल से आए मजदूरों का दर्द – नेपाल से आए मजदूर दंपति काली देवी और विजय सिंह इस आपदा के बीच एक ऐसी कहानी बयां करते हैं, जो सुनने वाले का दिल दहला दे। ये दंपति सड़क और पुल निर्माण के लिए हर्षिल घाटी में 26 लोगों के समूह के साथ आए थे। मंगलवार दोपहर करीब 12 बजे ये दोनों अपने काम खत्म कर भटवारी के लिए रवाना हो गए, जो घाटी से लगभग 47 किलोमीटर दूर है। उस वक्त उन्हें जरा भी अंदाजा नहीं था कि वे अपने बच्चों और साथियों को ऐसी भयानक आपदा के हवाले छोड़ रहे हैं।
आखिरी फोन कॉल का दर्द – एनडीटीवी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, विजय सिंह को अपने बेटे के साथ हुई आखिरी दो मिनट की फोन बातचीत आज भी सताती है। विजय ने बताया, “मेरा बेटा फोन पर रो रहा था। उसने कहा, ‘पापा, हम नहीं बचेंगे, नाले में बहुत सारा पानी आ गया है।'” इसके बाद फोन कट गया, और बेटा लापता हो गया। काली देवी की आंखों में आंसुओं के साथ बस एक ही पुकार है, “अगर मुझे पता होता कि ऐसी आपदा आने वाली है, तो मैं अपने बच्चों को कभी नहीं छोड़ती। सरकार हमें हर्षिल घाटी ले जाए, हम अपने बच्चों को खुद ढूंढ लेंगे।”
टूटा संपर्क, बिखरा परिवार – बुधवार को दंपति गंगावाड़ी तक पैदल पहुंचे, जो हर्षिल घाटी की ओर जाता है, लेकिन भगीरथी नदी पर बना बॉर्डर रोड्स ऑर्गनाइजेशन का एक महत्वपूर्ण पुल बाढ़ में बह गया था। इसके चलते वे आगे नहीं बढ़ सके। उनके साथ आए 24 अन्य मजदूरों से भी कोई संपर्क नहीं हो सका। दंपति की तरह ही घाटी में मौजूद सेना के 11 जवान भी लापता बताए जा रहे हैं।
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उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले की हर्षिल घाटी में मंगलवार को प्रकृति ने अपना रौद्र रूप दिखाया। भारी बारिश के बाद बादल फटने से अचानक आई बाढ़ और भूस्खलन ने
पूरे क्षेत्र को तबाही के मुंह में धकेल दिया। धराली गांव, जो गंगोत्री के रास्ते में एक प्रमुख पड़ाव है, इस आपदा की चपेट में आ गया। घर, पेड़, वाहन सब कुछ बाढ़
के तेज बहाव में बह गया। इस त्रासदी में कम से कम पांच लोगों की जान चली गई, जबकि दर्जनों लोग अभी भी मलबे में दबे हो सकते हैं।
नेपाल से आए मजदूरों का दर्द - नेपाल से आए मजदूर दंपति काली देवी और विजय सिंह इस आपदा के बीच एक ऐसी कहानी बयां करते हैं, जो सुनने वाले का दिल दहला दे। ये दंपति
सड़क और पुल निर्माण के लिए हर्षिल घाटी में 26 लोगों के समूह के साथ आए थे। मंगलवार दोपहर करीब 12 बजे ये दोनों अपने काम खत्म कर भटवारी के लिए रवाना हो गए, जो घाटी
से लगभग 47 किलोमीटर दूर है। उस वक्त उन्हें जरा भी अंदाजा नहीं था कि वे अपने बच्चों और साथियों को ऐसी भयानक आपदा के हवाले छोड़ रहे हैं।
आखिरी फोन कॉल का दर्द - एनडीटीवी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, विजय सिंह को अपने बेटे के साथ हुई आखिरी दो मिनट की फोन बातचीत आज भी सताती है। विजय ने बताया, "मेरा
बेटा फोन पर रो रहा था। उसने कहा, 'पापा, हम नहीं बचेंगे, नाले में बहुत सारा पानी आ गया है।'" इसके बाद फोन कट गया, और बेटा लापता हो गया। काली देवी की आंखों में
आंसुओं के साथ बस एक ही पुकार है, "अगर मुझे पता होता कि ऐसी आपदा आने वाली है, तो मैं अपने बच्चों को कभी नहीं छोड़ती। सरकार हमें हर्षिल घाटी ले जाए, हम अपने
बच्चों को खुद ढूंढ लेंगे।"
टूटा संपर्क, बिखरा परिवार - बुधवार को दंपति गंगावाड़ी तक पैदल पहुंचे, जो हर्षिल घाटी की ओर जाता है, लेकिन भगीरथी नदी पर बना बॉर्डर रोड्स ऑर्गनाइजेशन का एक
महत्वपूर्ण पुल बाढ़ में बह गया था। इसके चलते वे आगे नहीं बढ़ सके। उनके साथ आए 24 अन्य मजदूरों से भी कोई संपर्क नहीं हो सका। दंपति की तरह ही घाटी में मौजूद
सेना के 11 जवान भी लापता बताए जा रहे हैं।