उत्तराखंड में रिक्तियों का पहाड़, डेढ़ लाख विद्यार्थी लाचार; पठन-पाठन ठप्प, शिक्षा व्यवस्था चरमराई
1 min read25/08/2025 2:53 pm
दस्तक पहाड न्यूज अगस्त्यमुनि।।
गुणवत्तायुक्त स्कूली शिक्षा का सपना संजोये दूरदराज के ग्रामीण क्षेत्रों के विद्यार्थियों को अब गुणवत्तापरक शिक्षा तो दूर, नियमित पठन-पाठन की उम्मीद भी धूमिल हो रही है। पहले ही प्रधानाचार्य, प्रधाध्यापक, एलटी और प्रवक्ताओं के 9810 पद रिक्त हैं। जाे शिक्षक शेष हैं वे अपनी मांगों को लेकर पिछले एक सप्ताह से हड़ताल पर हैं।यहां तक कि प्रधानाचार्य व प्राधानाध्यापक का प्रभार देख रहे शिक्षकों ने इस व्यवस्था से त्यागपत्र दे दिया है। इसका सीधा असर राज्य के हाईस्कूल और इंटर कालेजों में छह से 12वीं तक के 1,51812 छात्र-छात्राओं पर पड़ रहा है।प्रदेश में शिक्षा व्यवस्था में सुधार के लगातार दावे तो किए जा रहे हैं, लेकिन धरातलीय स्थिति इनसे मेल नहीं खा रही है। आंकड़ों के मुताबिक राज्य के 1385 राजकीय इंटर कालेजों में से 1180 में नियमित प्रधानाचार्य नहीं हैं। यहीं नहीं, 910 हाईस्कूलों में से 830 में नियमित प्रधानाध्यापक नहीं हैं। इंटर कालेजों में सहायक अध्यापक (एलटी) के 3055 एवं प्रवक्ता के 4745 पद रिक्त चल रहे हैं। वहीं, पदोन्नति न होने से गुस्साए राजकीय शिक्षक संघ से जुड़े शिक्षक 18 अगस्त से चाकडाउन कार्य बहिष्कार पर हैं। इसके अलावा 1180 राजकीय इंटर कालेजों में प्रधानाचार्य और 830 हाईस्कूल के प्रधानाध्यापकों का प्रभार देख रहे शिक्षकों ने प्रभारी व्यवस्था से त्यागपत्र दे दिया है। अस्थायी व्यवस्था के तहत जो अतिथि शिक्षक रखे गए हैं, वे भी नियमितीकरण के लिए कई बार आंदोलन कर चुके हैं।राजकीय शिक्षक संघ की मांग है कि विभाग पहले पदोन्नति प्रारंभ करें। विभाग पदोन्नति इसलिए शुरू नहीं कर पा रहा है कि कई शिक्षक पदोन्नति में वरिष्ठता निर्धारण की अनदेखी को लेकर न्यायालय गए हुए हैं। स्थानांतरण विवाद भी न्यायालय में विचाराधीन है। सरकार ने प्रधानाचार्य के 1385 पदों पर 50 प्रतिशत पद विभागीय सीमित भर्ती परीक्षा और 50 प्रतिशत पद पदोन्नति से भरने का निर्णय लिया,लेकिन यह फार्मूला राजकीय शिक्षक संघ को रास नहीं आ रहा है।उसकी मांग है कि प्रधानाचार्य पद शत प्रतिशत पदोन्नति से भरे जाएं। इन विवादों के चलते करीब आठ साल से शिक्षकों की पदोन्नति ठप है। शिक्षक संघ, विभाग व सरकार पर दबाव बना रहा है कि वह समाधान का रास्ता तलाशे, लेकिन विभाग के विकल्प सीमित हैं। ऊपर से कानूनी अड़चन और विभागीय नियमावली का पालन भी अनिवार्य है।
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