ये शब्द उस व्यथा के है जिसमें विभागों के दोहरे मानकों, कोर्ट की अनदेखी और नियमों की हीलाहवाली भारी पड़ी। भुक्तभोगी बनकर पलायन को मजबूर लोगों के बहुत गहरे और वाजिब सवाल है आखिर उनके साथ दोहरे मानक क्यों..?

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यह उजाड़ और वीरान सा दिखने वाला बाजार कभी आबाद हुआ करता था ।कभी यहाँ सड़क के दोनों ओर दुकानें हुआ करती थी जहाँ दिनभर चहल - पहल रहा करती थी । दर्जनों गांवों के लोग यहाँ खरीदारी करने आया करते थे । कई लोगों का यहां अच्छा-खासा रोजगार था । पर 2013 की केदारनाथ आपदा में नदी की तरफ वाली दुकानें व मकानें बाढ़ में वह गये और बाजार आधा रह गया । जिन लोगों के मकान बहे उनमें से अधिकांश देहरादून बस गये । जिनकी दुकानें थी उन्होंने जैसे- तैसे अपने व्यवसाय को फिर से स्थापित किया । इसके बाद 2018 में शुरू हुई चार धाम को जोड़ने वाली सड़क परियोजना ने तो इस बाजार का अस्तित्व ही खत्म कर दिया । यह सिल्ली है ... जनपद रुद्रप्रयाग की मंदाकिनी घाटी में जिला मुख्यालय से 14 कि0मी0 रुद्रप्रयाग- गौरीकुण्ड राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित एक पुराना कस्बा ... जो लगभग 1952 से बसना प्रारंभ हो गया था । बाद में यहाँ अच्छा खासा बाजार बन गया था जो अब विकास के नाम पर खण्डहर में तब्दील हो गया है । यह भी विडम्बना है कि जिस उत्तराखंड राज्य की स्थापना के पीछे पलायन को रोकना , रोजगार को बढ़ावा देना तथा यहाँ के अनुरूप विकास परियोजनाओं को लागू करना मुख्य मकसद था वहीं राज्य बनने के बाद ठीक इसके विपरीत बड़ी - बड़ी परियोजनाएं थोप कर यहां पलायन और बेरोजगारी को ही बढ़ावा मिला है । सिल्ली के साथ भी यही हुआ है । यहाँ किसी के मकान गये , किसी की दुकान गई, किसी के खेत गये । कहने को प्रभावितों को मुआवजा दिया गया ... लेकिन उतने से आज के समय में जमीन भी उपलब्ध हो जाए तो गनीमत है । मकान बनाना तो दूर की बात है । यह केवल राष्ट्रीय राजमार्ग के नाम पर सड़क चौड़ीकरण की बात नहीं है ।यह वर्षों से अपने घर- मकान में रह रहे लोगों का घर से बेदखल होने होने की दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति भी है । कई लोगों की जमी - जमाई दुकानों के छिन जाने का दुःख भी है । अब एक बार फिर से सड़क चौड़ीकरण परियोजना प्रभावितों में से कुछ ने यहाँ से पलायन कर अन्यत्र मकान बना लिये हैं तो कुछ अब जाने की तैयारी में हैं । ऐसे ही यहाँ के दुकानदारों ने भी मजबूरी में अपनी दुकानें इधर-उधर व्यवस्थित कर ली हैं । पर सिल्ली बजार के ये खण्डहर अब क्या ही फिर से नये रूप में दुकानों- मकानों का रूप ले सकेंगे क्योंकि यहाँ सड़क नाप के साथ ही 24 मीटर तक की भूमि और भवनों का अधिग्रहण कर लिया गया है जिसके चलते अब यहाँ कोई भी नया निर्माण सम्भव नहीं है । ऐसे में अन्य बड़ी परियोजनाओं में विकास की भेंट चढ़े गाँवों और बाजारों की तरह सिल्ली बाजार भी अपने अस्तित्व और पहचान को खोने के लिये अभिशप्त हुआ है ।