दस्तक पहाड न्यूज फाटा। केदारघाटी में वन्यजीवों का आतंक लगातार बढ़ता जा रहा है और प्रशासन की लापरवाही अब जानलेवा साबित हो रही है। गुरुवार शाम लगभग 3 बजे तरसाली गांव के पास खेतों में घास लेने गई 61 वर्षीय पूर्णी देवी, पत्नी धर्मानंद सेमवाल, पर भालू ने अचानक हमला कर दिया। हमले में उनके सिर सहित शरीर के कई हिस्सों पर गंभीर चोटें आई हैं। साथ मौजूद महिलाओं ने शोर मचाकर किसी तरह भालू को भगाया और ग्रामीणों की मदद से घायल महिला को तत्काल सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र फाटा पहुँचाया गया, जहाँ प्राथमिक उपचार के बाद उन्हें जिला अस्पताल रुद्रप्रयाग रेफर किया गया। जिला अस्पताल में स्थिति नाजुक देखते हुए डॉक्टरों ने उन्हें 108 सेवा से हायर सेंटर श्रीकोट भेज दिया, जहाँ उनका उपचार जारी है।इस घटना के बाद तरसाली और आसपास के क्षेत्रों में गहरी दहशत फैल गई है। ग्रामीणों का

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कहना है कि केदारघाटी में भालू और गुलदार के हमले अब आम बात हो चुकी है। लोग खेतों, जंगलों और घास के मैदानों में जाना बंद कर रहे हैं, बच्चों और बुजुर्गों को अकेले बाहर भेजने में डर लग रहा है और गांव में हर कोई असुरक्षित महसूस कर रहा है। ग्रामीणों का आरोप है कि उत्तराखंड सरकार और वन विभाग सिर्फ गोष्ठियों, बैठकों और जन-जागरूकता कार्यक्रमों तक सीमित हैं। लेकिन सवाल यह है कि क्या सिर्फ जागरूकता से इंसानों की जान बच पाएगी? क्या कागज़ी कार्यक्रमों से आदमखोर हो चुके गुलदार और भालू के हमलों को रोका जा सकता है? लोगों का कहना है कि वे वर्षों से मांग कर रहे हैं कि पहाड़ी क्षेत्रों में वन विभाग की गश्त बढ़ाई जाए, पिंजरे लगाए जाएँ, ट्रैंक्विलाइजिंग टीमें सक्रिय हों और तत्काल प्रतिक्रिया देने वाली टीमें तैनात की जाएँ, लेकिन जमीनी हकीकत इसके बिल्कुल उलट है। हमले बढ़ रहे हैं, घटनाएँ बढ़ रही हैं, पर कार्रवाई सिर्फ कागज़ों में सीमित है। ग्रामीणों ने निराशा जताते हुए कहा कि गांवों में रहना अब हर दिन मौत का जोखिम उठाने जैसा हो गया है, जबकि सरकार सिर्फ बयानबाजी कर रही है। तरसाली गांव में हुए इस ताज़ा हमले ने फिर साबित कर दिया है कि केदारघाटी में मानव-वन्यजीव संघर्ष खतरनाक स्तर पर पहुँच चुका है। ग्रामीणों का कहना है कि अगर जल्द ही ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो पहाड़ में जीवन बचा पाना कठिन होता जाएगा। पूर्णी देवी के साथ परिजन और वन विभाग के कर्मचारी श्रीकोट अस्पताल में मौजूद हैं और उनका इलाज जारी है। यह घटना उस सच्चाई को पुनः उजागर करती है कि अब पहाड़ के लोगों की सुरक्षा भगवान भरोसे नहीं छोड़ी जा सकती—सरकार को जागना ही होगा।