केदारनाथ से पूर्व विधायक शैला रानी रावत के नामाकंन पत्र लिए जाने से उठ रहे कयासो पर आज उनकी बड़ी प्रतिक्रिया सामने आई है। दस्तक न्यूज पोर्टल ने उनकी इस खबर को प्रमुखता से प्रकाशित किया था जिस पर पूर्व विधायक शैलारानी रावत ने अपने फेसबुक पेज के माध्यम से कहा है कि मैंने निर्दलीय नहीं भाजपा से टिकट मिलने की प्रत्याशा में नामांकन पत्र लिया है, टिकट आवंटन में हो रही देरी के कारण बाद में समस्या न हो और सम्बधित प्रक्रिया तय समय पर पूर्ण कर ली जाए इसलिए पहले ही नामांकन पत्र लिया गया है। मुझे पूर्ण उम्मीद और विश्वास है कि आगामी केदारनाथ विधानसभा में मुझे ही भाजपा प्रत्याशी बनाया जाएगा।

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  भाजपा द्वारा 70 में से 59 सीटों पर अपने प्रत्याशी घोषित कर दिए गए है जबकि 11 पर घोषणा होनी बाकी है, जिनमें केदारनाथ सीट प्रमुख है। हालांकि पूर्व में भाजपा यहां से डा0 हरक सिंह रावत को टिकट देने का मन बना चुकी थी, लेकिन उनके कांग्रेस में जाने की आहट को भांपते हुए भाजपा ने तुरंत कार्यवाही करते हुए उन्हें मंत्रीमण्डल समेत छः साल के लिए पार्टी से निष्कासित कर दिया। जिसके बाद से इस सीट पर संशय बरकरार है। केदारनाथ सीट पर पूर्व विधायक शैला रानी रावत समेत पूर्व विधायक आशा नौटियाल, पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष चण्डी प्रसाद भट्ट, युवा नेता जयवर्धन काण्डपाल, जिलाध्यक्ष भाजपा दिनेश उनियाल, संजय शर्मा दरमोड़ा, पूर्व उपाध्यक्ष बीकेटीसी अशोक खत्री, अनूप सेमवाल, दिनेश बगवाड़ी, बीर सिंह बुडेरा समेत एक दर्जन से अधिक की दावेदारी कर रहे है। दावेदारी को लेकर मची रार से परेशान होकर भाजपा हाईकमान ने डा0 हरक सिंह रावत को यह सीट देने का फैसला कर लिया था। टिकट आवंटन के बाबत भाजपा के फायरब्रांड नेता रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ की दखलदंाजी के बाबत सूत्रों की माने तो इस सीट पर टिकट मिलने के सबसे जादा आसार अब पूर्व विधायक आशा नौटियाल के लग रहे है। आशा ‘निशंक’ की करीबी मानी जाती है, पूर्व में भी आशा को टिकट दिए जाने पर निशंक का ही वरदहस्त था। तब टिकट मिलने के बाद आशा दो बार केदारनाथ की विधायक बनी, लेकिन वर्ष 2012 में वो कांग्रेस की प्रत्याशी शैलारानी रावत से चुनाव हार गयी। वर्ष 2017 में भाजपा में शामिल हो चुकी शैलारानी रावत को टिकट दिए जाने पर नाराज होकर आशा ने बगावत कर चुनाव लड़ा और स्वयं के साथ शैलारानी रावत को भी हार की सौगात दे दी। उनके इस कदम से पार्टी ने आशा को निष्काशित कर दिया था, लेकिन बाद में वो पुनः पार्टी में शामिल होकर सक्रिय हो गयी। इस बार टिकट आवंटन में बड़ी संख्या में निशंक समर्थको को टिकट मिलने से आशा की सोई हुइ उम्मीदों को भी नया बल मिल गया। इधर आशा को टिकट मिलता देख पूर्व विधायक शैलारानी रावत ने भी अब कमर कस ली है। हालांकि हरक सिंह की दुबारा बगावत के बाद कांग्रेस से भाजपा में आए नेताओं के लिए टिकट की डगर पहले जैसी आसान नहीं रही है लेकिन भाजपा और निरन्तर क्षेत्र में सक्रिय होने के साथ शैलारानी ने अपनी दावेदारी को लेकर नामांकन पत्र के जरिए पार्टीहाईकमान पर अपनी दावेदारी का दबाव जरूर बढ़ा दिया है। हांलाकि उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ने से इंकार किया है और पार्टी से टिकट मिलने पर पूरा भरोसा जताया है। भाजपा की एक स्थानीय लाॅबी हालांकि उन्हें टिकट दिए जाने की पक्षधर नहीं है, लेकिन पार्टी में टिकट किसे मिले इसे लेकर भी विधानसभा स्तर पर भी पार्टी कार्यकत्र्ता एकमत नहीं है। दावेदारों की लंबी फौज में हर किसी की लामबंदी सामने आना अब पार्टी के लिए दुविधा का निर्णय है। इसीलिए टिकट को लेकर निर्णय में देरी हो रही है। शैलारानी राजनीति की धुरधंरा खिलाड़ी रही है, उनकी नेतृत्व क्षमता के भी मुरीद बड़ी संख्या में है। बतौर विधायक और उसके बाद भी वो क्षेत्र में निरन्तर सक्रिय होने के कारण अपनी दावेदारी को पुख्ता करती रही है। उन्हें टिकट न दिए जाने के फलस्वरूप अगर वो निर्दलीय चुनाव लड़ेगी तो भाजपा को इससे बड़ा नुकसान होगा और पूरे आसार है कि भाजपा इस सीट को पिछली बार की तरह आसानी से गंवा देगी। इसलिए पार्टी पर शैलारानी को टिकट दिए जाने का दबाव पड़ गया है, हालांकि पार्टी का अंतिम निर्णय सभी को स्वीकार करना होगा।