वरिष्ठ साहित्यकार रमाकांत बेंजवाल का विशेष आलेख [caption id="attachment_24353" align="aligncenter" width="150"] रमाकांत बेंजवाल[/caption] स्वतंत्रता से पूर्व गढ़वाली भाषा के शब्द संग्रह पर गढ़वाल के पहले प्रकाशक विशालमणि शर्मा जी और उसके साथ ही गढ़वाली साहित्य परिषद, लाहौर के विशेष सदस्य

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पं० बलदेव प्रसाद नौटियाल जी ने विचार किया। शर्मा जी ने गढ़वाली के कुछ शब्दों का संग्रह भी किया था। बलदेव प्रसाद नौटियाल जी ने एक शब्दाकोश निर्माण समिति का गठन किया था, जिसके संयोजक पं० श्रीधरानंद घिल्डियाल एवं पं० शिव प्रसाद घिल्डियाल जी बनाए गए। लाहौर के बाहर से भी चक्रधर बहुगुणा जी, भगवती प्रसाद पांथरी जी, महंत योगेन्द्र पुरी जी, पं० श्रीधरानंद नैथानी जी, भक्त दर्शन जी आदि विभूतियाँ इस समिति में सम्मिलित की गई थीं। नमूने के तौर पर इस शब्दकोश के कुछ पन्ने प्रकाशित भी हुए। देश की आजादी के बाद पाकिस्तान अलग देश बन गया। समिति द्वारा जितना भी गढ़वाली शब्दों का संग्रह किया गया था इस राजनैतिक घटनाक्रम के कारण वह शब्दकोश का रूप नहीं ले पाया। ये संकलित शब्द किसके पास हैं, यह भी जानकारी नहीं है। गढ़वाली का पहला शब्दकोश मास्टर जयलाल वर्मा जी द्वारा वर्ष 1982 में प्रकाशित किया गया। इसकी पांच सौ प्रतियाँ छपीं। इसका दूसरा संस्करण कुंवर सिंह नेगी ‘कर्मठ’ जी द्वारा 1992 में प्रकाशित किया गया। 168 पृष्ठों के इस कोश में लगभग पांच हजार शब्द संकलित हैं। मूल प्रविष्टि गढ़वाली में है। उसके बाद व्याकरणिक कोटि और फिर शब्द का अर्थ दिया गया है। दूसरा गढ़वाली शब्दकोश मालचंद रमोला जी द्वारा सन् 1994 में श्रद्धम, पौड़ी द्वारा प्रकाशित किया गया। 228 पृष्ठों के इस शब्दकोश में भी लगभग पांच हजार शब्द संगृहीत हैं। इस शब्दकोश में गढ़वाली शब्दावली राजभाषा के नजदीक है। उमाशंकर सतीस जी ने भी जौनसारी शब्दों के उच्चारण पर कार्य किया है, जिसे लाल बहादुर शास्त्री अकादमी, मसूरी ने तैयार करवाया था।  तीसरा गढ़वाली हिंदी शब्दकोश वर्ष 2007 में अरविंद पुरोहित जी एवं बीना बेंजवाल जी द्वारा प्रकाशित किया गया, जिसका संपादन रमाकान्त बेंजवाल ने किया। इसकी भूमिका डॉ० गोविंद चातक जी द्वारा लिखी गई है। इसका द्वितीय संस्करण सन् 2013 में प्रकाशित हुआ। 520 पृष्ठों के इस शब्दकोश में लगभग 21 हजार शब्द संकलित हैं। मूल प्रविष्टि गढ़वाली में दी गई है और उसके बाद कोष्ठक में व्याकरणिक कोटि, कुछ शब्दों का स्रोत तथा फिर शब्दार्थ दिया गया है। कतिपय शब्दों के समानार्थी, विलोम तथा कहीं-कहीं शब्दों की व्याख्या में कोई पदबंध या छोटा-सा वाक्य दिया गया है जिससे शब्द का प्रयोग अधिक स्पष्ट हो जाता है। पाठकों की सुविधा के लिए इस शब्दकोश में वर्गीकृत शब्दावली की एक लम्बी सूची दी गई है। प्राकृतिक वनस्पति, वनौषधि, जल, पत्थर, लकड़ी, रिंगाल से संबंधित, लोक परंपराएं, लोक व्यवसाय, लोक विश्वास, मानव स्वभाव, लोक वाद्य, लोक गीत, मकान, बर्तन, पशु एवं कीट, अनाज, सब्जी, फल, वस्त्र, आभूषण, भोजन, पक्षी, कृषि उपकरण, शरीर के अंग, पहर, शारीरिक विकार/बीमारियों से संबंधित शब्द, रिश्ते-नाते, रिश्ते के गाँव, ऋतुएँ/मौसम, तंत्र-मंत्र संबंधी शब्दावली, गाँव के स्थान नाम, रंग, गिनती, दिन, राशि, नक्षत्र, तिथि, महीने, अनुभूति बोधक, ध्वन्यर्थक, गंध बोधक, स्वाद बोधक, स्पर्श बोधक, समूह वाचक, संख्यावाची शब्द, बचपन के खेल-खिलौने, मात्रक आदि वर्गीकृत शब्दावली परिशिष्ट में दी गई है। इनके अतिरिक्त गढ़वाली, जौनसारी एवं भोटिया शब्दों की तुलनात्मक सूची के साथ पर्यायवाची शब्द, विलोम शब्द, शब्द युग्म, अनेकार्थी शब्द, समानता सूचक शब्द, मुहावरे, लोकोक्तियाँ, पहेलियाँ आदि भी संक्षिप्त रूप में दिए गए हैं। चौथा शब्दकोश अखिल गढ़वाल सभा, देहरादून द्वारा संस्कृति विभाग उत्तराखण्ड के आर्थिक सहयोग से तैयार करवाया गया। वर्ष 2014 में प्रकाशित इस शब्दकोश के प्रधान संपादक डॉ० अचलानंद जखमोला जी एवं प्रबन्ध एवं संयोजक संपादक भगवती प्रसाद नौटियाल जी और सम्पादक मण्डल में शिवराज सिंह रावत ‘निःसंग’ जी, डॉ० आर० एस० असवाल जी, रामकुमार कोटनाला जी हैं। गढ़वाली हिंदी अंग्रेजी के इस पहले त्रिभाषी शब्दकोश में 748 पृष्ठ हैं। मूल प्रविष्टि गढ़वाली में दी गई है। फिर व्याकरणिक कोटि और उसके बाद शब्दों का अर्थ हिंदी तथा अंग्रेजी में दिया गया है। मूल प्रविष्टि में कई शब्दों के औच्चारणिक विभेद एक साथ दिए गए हैं। प्रविष्टि के पहले शब्द को मानक माने जाने की बात कही गई है। संस्कृति विभाग उत्तराखण्ड द्वारा प्रकाशित यह शब्दकोश आम पाठक तक नहीं पहुँच सका। अखिल गढ़वाल सभा, देहरादून द्वारा सन् 2016 में इसे स्वयं प्रकाशित किया। संस्कृति विभाग द्वारा प्रकाशित शब्दकोश की तुलना में टाइप सेटिंग के कारण इसमें पृष्ठ भले ही कम हैं लेकिन कुछ और शब्द जोड़ने से शब्द संख्या बढ़ी है। 640 पृष्ठों के इस संस्करण में एक पृष्ठ में 30 से 35 प्रविष्टियाँ हैं यदि एक पेज की 33 प्रविष्टि भी लगाएँ तो कुल शब्दों की प्रविष्टियों की संख्या 21,120 के आसपास होती है। हिंदी कुमाउंनी गढ़वाली जौनसारी शब्दकोश वर्ष 2015 में प्रकाशित हुआ। इस कोश की संपादक भारती पाण्डे जी हैं। इस कोश में गढ़वाली के लिए बीना बेंजवाल जी तथा जौनसारी के लिए रतन सिंह जौनसारी जी ने कार्य किया है। 252 पृष्ठों के इस शब्दकोश में मूल प्रविष्टि हिंदी में दी गई है फिर कुमाउंनी, गढ़वाली और जौनसारी भाषा के शब्द क्रमशः दिए गए हैं। परिशिष्ट में वर्गीकृत शब्दावली भी दी गई है। डॉ० अचलानंद जखमोला जी द्वारा इंगलिश गढ़वाली हिंदी डिक्शनरी सन् 2016 में प्रकाशित की गई। 246 पृष्ठों के इस शब्दकोश में लगभग 6-7 हजार शब्द हैं। मूल प्रविष्टि अंग्रेजी भाषा में दी गई है फिर व्याकरणिक कोटि, उसके बाद गढ़वाली और हिंदी में अर्थ दिया गया है। पीपुल्स लिंग्वेस्टिक सर्वे ऑफ इंडिया द्वारा उत्तराखण्ड की 13 भाषाओं का सर्वेक्षण होने के बाद इन भाषाओं का एक व्यावहारिक शब्दकोश ‘झिक्कल काम्ची उडायली’ नाम से प्रकाशित हुआ। 1500 व्यावहारिक शब्दों के इस कोश में मूल प्रविष्टि हिंदी में है उसके बाद कुमाउंनी, गढ़वाली, जाड, जौहारी, जौनपुरी, जौनसारी, थारू, बंगाणी, बोक्साड़ी, मार्च्छा, रं-ल्वू, रवांल्टी फिर राजी के शब्द दिए गए हैं। केन्द्रीय हिन्दी संस्थान, आगरा द्वारा भी हिंदी की उपभाषाओं के व्यावहारिक शब्दों का एक शब्दकोश बनाया गया है, जिसमें गढ़वाली और कुमाउनी भी सम्मिलित हैं । हिंदी गढ़वाली (रोमन रूप सहित) अंग्रेजी त्रिभाषी कोश रमाकान्त बेंजवाल एवं बीना बेंजवाल द्वारा वर्ष 2018 में प्रकाशित किया गया। 480 पृष्ठों के इस कोश में मूल प्रविष्टि हिंदी में फिर व्याकरणिक कोटि तब गढ़वाली अर्थ, अंग्रेजी अर्थ और गढ़वाली का रोमन रूप भी दिया गया है। लगभग दस हजार शब्दों के इस कोश मेें पूर्व में प्रकाशित गढ़वाली हिंदी शब्दकोश में संकलित वर्गीकृत शब्दावली भी दी गई है। इनके अतिरिक्त कन्हैयालाल डंडरियाल जी द्वारा संकलित शब्दकोश, कुंज बिहारी मुंडेपी जी का ‘तमळि उंद गंगा’ गढ़वाली हिंदी अंग्रेजी शब्दकोश और महेशानंद जी के गढ़वाली हिंदी शब्दकोश निर्माण पर कार्य किया जा रहा है।  अभी तक शिक्षार्थी कोश पर कार्य हुए हैं। अब मानक शब्दकोश, व्युत्पत्ति कोश तथा आन लाइन मोबाइल एप शब्दकोश पर कार्य करने की आवश्यकता है, जिसके लिए प्रयास जारी हैं। -रमाकान्त बेंजवाल