अगस्त्यमुनि / हेमन्त चौकियाल पहाड़ की पहाड़ जैसी समस्याओं को बौना बनाकर स्वयं पहाड़ जैसी हिम्मत दिखाकर, शैलेन्द्र लगातार पशुपालन व दुग्ध व्यवसाय के क्षेत्र में सफलता की सीढ़ियां चढ़कर

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एक नजीर पेश कर रहे हैं। ‘अपना हाथ जगन्नाथ’ यह उक्ति हम सबने बचपन से ही सुनी है, परन्तु इसके वास्तविक अर्थ को यथार्थ जीवन में उतारा है डाँगी कोयलपुरके के युवा शैलेन्द्र सिंह रौतेला ने। अपनी लगन और मेहनत के बल पर स्वरोजगार को अपनाकर शैलेन्द्र आज रोजगार के लिए भटक रहे उन हजारों युवाओं के लिए मिशाल बन गये हैं, जो रोजगार की तलाश में समय व धन की बर्बादी करते हैं। मात्र तीन वर्षों के संघर्ष में ही शैलेन्द्र ने दुग्ध व्यवसाय में अपने आप को स्थानीय दुग्ध बाजार में एक ब्राण्ड के रूप में स्थापित कर लिया है। घर पर ही गोपालन के गुर सीखकर शैलेन्द्र ने अपने घर के पास ही तीन गायों के साथ अपनी गोशाला स्थापित कर, न केवल अपनी ही आमदनी बढ़ाई बल्कि अपने साथ एक और युवा को भी रोजगार का अवसर प्रदान किया है। आम मध्यम वर्गीय परिवार के युवा की तरह ही इस नौजवान ने भी पारिवारिक परिस्थितियों के चलते स्नातक अंतिम वर्ष की पढ़ाई बीच में ही छोडकर रोजगार की तलाश में शहरों का रूख किया। कम्प्यूटर और आई टी आई मैकैनिकल का सर्टिफिकेट हाथ में लिए हुए इस युवा ने कई फैक्ट्रियों के दरवाजों पर दस्तक दी, परन्तु कहीं भी मेहनत के बराबर का सम्मान नहीं मिला। तीन सालों तक शहरी जीवन का अनुभव लेकर शैलेन्द्र ने गाँव में ही स्वरोजगार करने का संकल्प लेकर घर का रूख किया। संघर्ष के प्रारंभिक दिनों का जिक्र करते हुए शैलेन्द्र बताते हैं कि फैक्टरियों में जी तोड़ मेहनत के बाद भी इतनी आमदनी नहीं बच पाती थी कि घर का खर्च भी चलाया जा सके, क्योंकि आमदनी का अधिकांश हिस्सा कमरे के किराये और आने-जाने पर ही व्यय हो जाता था, अतः मैंने निश्चय कर लिया था कि गाँव लौटकर अपना व्यवसाय ही शुरू करना है। तिलवाड़ा के सफल कपड़ा व्यवसायी महावीर सिंह जगवाण और अपने ही परिवार के बड़े भाई शिक्षक गजेन्द्र रौतेला से विचार विमर्श कर मैंने गोपालन का व्यवसाय करने का निश्चय किया। बड़े भाई गजेन्द्र रौतेला, जिन्हें कि ऐसे व्यवसाय की बहुत अच्छी जानकारी है, से समय समय पर विचार विमर्श कर पूरी लगन के साथ नजदीकी गोपालकों व यू ट्यूब से गोपालन के गुर सीखने प्रारंभ किये और घर की गौशाला से एक गाय के साथ ही व्यवसाय शुरू किया। पहली गाय हरियाणा से एच एफ नस्ल की खरीदी। 20 किलो दूध के साथ ही छः माह में इतनी आमदनी कर ली कि दूसरी गाय भी खरीद ली। इसी बीच सरकारी मदद लेने की भी कोशिश की परन्तु कई प्रकार की औपचारिकताओं, जिनमें सरकारी सेवक के गारन्टर होने की शर्त के साथ हैसियत प्रमाण पत्र सहित कई बैंकिग औपचारिकताओं के चलते बहुत दिक्कतों का सामना करना पड़ा। इस युवा का हौसला देखिए कि बैंकिंग औपचारिकताओं को जानने-सीखने के उद्देश्य से शैलेन्द्र ने व्यवसाय को बीच में ही रोककर आठ माह बैंक की भी नौकरी की। बैंक व सरकार से )ण लेने की बारीकियों को समझ कर पुनः आठ माह बाद व्यवसाय शुरू कर दिया। इसी बीच शैलेन्द्र विवाह बंधंन में भी बध गये। सौभाग्य वश जीवनसंगिनी ने भी जब व्यवसाय में मदद करने की हामी भरी तो शैलेन्द्र ने घर से तीन किलोमीटर की दूरी पर एक कमरे और एक हाॅल का निर्माण कर पुनः तीन गायों के साथ व्यवसाय नवम्बर 2019 में शुरू किया। ईमानदारी और शु(ता को अपने व्यवसाय का मूलमंत्र मानने वाले इस युवा व्यवसायी ने स्थानीय बाजार में अपनी इतनी पैठ बना ली कि, आज हर परिवार और दुकानदार शैलेन्द्र से ही दूध खरीदना चाहता है। शैलेन्द्र एक बेहद अनुशासित व निश्चित टाइम टेबल के साथ गायों का पालन पोषण के साथ घर परिवार के लिए भी पूरा समय निकालते हैं, साथ ही सामाजिक सरोकारों को भी पूरा समय देते हैं। अपने सौम्यता और खुशमिजाजी के कारण शैलेन्द्र रौतेला स्थानीय युवाओं में भी खाशे लोकप्रिय हैं।शैलेन्द्र का कहना है कि यदि सरकारी इमदाद भी हासिल हो तो वे दस गायों के साथ व्यवसाय को नया आयाम देंगे। दुग्ध व्यवसाय के साथ साथ शैलेन्द्र खेती, सब्जी व फूलों, मधुमक्खियों के व्यवसाय की भी बारीकियां सीख रहे हैं। शैलेन्द्र का कहना है कि यदि पूरी लगन, मेहनत व व्यावसायिक निष्ठा के साथ काम किया जाये तो पहाड़ में ही बेहतरीन रोजगार स्थापित किया जा सकता है। आगे की योजनाओं पर बात करते हुए शैलेन्द्र कहते हैं कि ज्यों-ज्यों बचत बढ़ती जायेगी, वैसे वैसे व्यवसाय को बढ़ाने के साथ साथ अन्य युवाओं को भी रोजगार देना उनका उद्देश्य है। ये शैलेन्द्र की ही मेहनत का कमाल है कि उनके हुनर की सौंधी महक जिला प्रशासन रूद्रप्रयाग तक पहुंची, तभी तो वर्ष 2019-20 में उन्हें कृकृषक रत्न सम्मान से नवाजा गया। राष्ट्रीय स्तर की पत्रिका चन्द्रदीप्ति ने उन्हें चन्द्रदीप्ति सम्मान प्रदान कर उनकी मेहनत को सम्मान देकर, समाज को भी मेहनती होने का संदेश दिया। हाल में ही पशुपालन विभाग रूद्रप्रयाग द्वारा उन्हें दुग्ध उत्पादन के साथ - साथ, पशुपालन और कुक्कुट पालन के लिए भी प्रशस्ति पत्र और ट्राॅफी भेंट कर सम्मानित किया। शैलेन्द्र न केवल अपने पैरों पर खड़े होकर मेहनत को सम्मान दिलाया है बल्कि वे स्वयं औरों को भी प्रेरित कर रहे हैं। पहाड़ की पहाड़ जैसी समस्याओं को बौना बनाकर स्वयं पहाड़ जैसी हिम्मत दिखाकर, शैलेन्द्र लगातार पशुपालन व दुग्ध व्यवसाय के क्षेत्र में सफलता की सीढ़ियां चढ़कर एक नजीर पेश कर रहे हैं। [caption id="attachment_24477" align="aligncenter" width="150"] हेमन्त चौकियाल[/caption]